सावन
सावन
संस्कृत के शब्द श्रावण से बना सावन, बारिश की बूंदों को समाए ....हरियाली की चादर ओढ़े ....प्यार का इत्र लगाए और भगवान भोले का आशीर्वाद लेकर हम सबसे मिलने को बेताब है।मौसम अचानक से नहीं बदलता है ....एक प्रक्रिया से गुजरता है तब वह अपने वर्तमान स्वरुप को छोड़कर नए लिबास और नए विचारों को धारण करता है।आज कल जो मौसम इतना इतरा रहा है ....थोड़ा थोड़ा हमको तरसा रहा है ......ये एक माहौल बना रहा है कल से शुरू होने वाले सावन महीने के लिए। ये मास कुछ तो खास होगा ही जब इसकी शुरुआत से एक दिन पहले मतलब आज गुरुपूर्णिमा के अवसर पर हम सब अपने अपने आराध्य गुरुओं को नमन कर रहें हैं ......कहते हैं न .....किसी भी काम की शुरुआत अगर आशीर्वाद से किया जाए तो वह काम ज़रूर पूरा होता है।वैसे भी सावन मास में सोमवार के व्रतों का भी अपना अलग महत्त्व है ...जिन व्रतों के फल स्वरुप आशीर्वाद खुद शिव शंकर से मिलता हो और उसके साथ गुरु की कृपा हो ......तो आप ये समझ लीजिये आपकी सिद्दत आपको आपकी मंज़िल तक पंहुचा ही देगी।
फूलों ने वर्षा अथवा बादल में पानी की सूक्ष्म बूँदों अथवा कणों पर पड़नेवाली सूर्य किरणों के विक्षेपण से बने इंद्रधनुष से अपनी अपनी पसंद के रंग चुराना शुरू कर दिया है।पेड़ों ने भी नयी पत्तियों के रूप में अपने लिबासों को पाकर खुशियों को फैलाना शुरू कर दिया है।नज़रों में भी एक अलग सी चमक आने लगी है,.दिल ने भी खुली और ताज़ी हवा में साँसे लेकर तेजी से धड़कना शुरू कर दिया है ,कवियों की कलम में नए रंग की स्याही पड़ चुकी है ,पशु पंछी भी गर्मी से निजात पाने की ख़ुशी में फिर से नए उत्साह से चहकने लगे हैं,ये इस मौसम के अद्भुत प्रेम के कारण है ,तभी एक कहावत कही जाती है कि सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है।
प्रेम के वाणों की चुभन इस मौसम में प्रेम के मीठे मीठे दर्द को बढ़ाती है, अनकही अनसुनी कहानियों के नए नए किस्से भी हवा के झोंकों के साथ बहुत दूर तक सुनाई देने लगते हैं।एक गाना है न ...."सावन का महीना ...पवन करे सोर ....जियरा रे झूमे ऐसे जैसे बन मा नाचे मोर...." ख़ुशी छुपाये नहीं छुपती ...ये बंद होंठों पर आयी मुस्कराहट है ...बिना कहे आँखों की भाषा को समझने वाली एक नयी चाहत है ...आलस्य छोड़ जहां दिल नयी ऊर्जा के साथ अपने कदम थिरकाने लगता है।हाँ जी....ऐसा मौसम है ....तो सावन है .....ऐसे मौसम में तो कभी प्रेमिका कहती है कि...सावन में ..मोरनी बनके नाचूं मैं तो छम छम नाचूं ....... ....मगर,विरह की आग भी इसी मौसम में अपना विकराल रूप ले लेती है।तभी प्रेमिका इस प्रेम की दूरियों को अपने साथी को ऐसे याद दिलाती है कि .... ...."हाय हाय ये मज़बूरी ,ये मौसम और ये दूरी....तेरी दो टकिया की नौकरी ....मेरा लाखों का सावन जाए," कोई कवि लिखता है कि .."रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन" ........तो किसी ने कलम के माध्यम से क्या खूब दर्द बयां किया कि ...."लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है...वही आग सीने में फिर जल पड़ी है" .........तो इसी मौसम में प्रेमी को मजबूर भी होना पड़ता है अपनी प्रेमिका के पास आने को ....और वह कहता फिरता है कि..... "सावन के झूलों ने मुझको बुलाया...मैं परदेशी घर वापस आया।
ये मौसम इन्ही सबको समेटें अपनी अलग छाप छोड़ने के लिए तैयार है ....तो इंतजार कैसा ....बस कुछ घंटों का समय ...और ये हाज़िर हो जायेगा...
आपके दिल के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए।