Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

नौ महीने की उमर

नौ महीने की उमर

9 mins
1.5K


वो चाहती कुछ और थी. कहती कुछ और थी. और करती कुछ और थी. वो मजबूर थी, अपने हालात से. अपने माहौल से. दिखने में तो वो ख़ुद एक बच्ची लगती थी. मगर उसका अपना एक पाँच साल का बच्चा था.
वो करीम से कहती थी, “तुम्हें शर्म  नहीं आती...? किसी और की बीवी को इस तरह परेशान करते हो...? वो भी तब, जब वो तुमसे पाँच साल बड़ी है...? उसका अपना एक बच्चा है, वो भी पाँच साल का...?” ये सारी बातें वो एक साँस में कह जाती थी, बिना रुके.

करीम उसकी बातें सुनके कहता था, “क्या करूँ...? किसी और की बीवी अगर इतनी ख़ूबसूरत हो, और मुझसे प्यार करती हो, तो शरम कहाँ से आये...?”
करीम की बातें सुनकर इदा हँस देती थी. और कहती थी, “तुम बहुत अच्छे हो करीम.”
बस करीम को ये सुनके बड़ी तसल्ली मिलती थी. करीम अपनी बातें कहने में मगन रहता था. इदा उसकी कुछ बातों को यूँ ही हँसी में उड़ा देती थी. मगर जब करीम इदा से मिलने की बात करता था, तब इदा के चेहरे की हँसी ग़ायब हो जाती थी. तब वो कहती थी, “करीम... मैं भी तुमसे मिलना चाहती हूँ... तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ... मगर ऐसा हो नहीं सकता है ना...? मैं किसी और की हूँ... तुम बताओ, मैं क्या करूँ...?”
फिर इदा रोने लगती थी. फिर करीम उसे अपने हिसाब से हौसला देता था. उसे समझाता था. दूर से ही सही, उसके आँसू पोछने की कोशिश करता था. करीम को ये बात समझ में नहीं आती थी कि, “ये दुनिया ऐसी क्यूँ है...? ये समाज ऐसा क्यूँ है...?”
उसे इदा बहुत पसन्द थी... इदा को वो बहुत पसन्द था. मगर इदा किसी और की थी. और इदा चाहकर भी करीम की नहीं हो सकती थी. और करीम बिना इदा के रह नहीं सकता था. अब किया क्या जाए...? कोई रास्ता नहीं सूझता था किसी को... ना इदा को, ना करीम को... इदा तो रोकर अपना ग़म आँसूओं में बहा देती थी, और शान्त हो जाती थी... और इदा उससे मिलने नहीं आ सकती, ये सुनके करीम ज़िद करना छोड़ देता था. मगर बार-बार अपने दिल को समझाना, इतना आसान काम नहीं होता.
करीम का दिल रह-रह के इदा के लिये बेचैन हो उठता था. और वो फिर से इदा को बुलाना शुरू कर देता था. कई बार इदा ने भी कोशिश की कि करीम से मिल ले, मगर ये मुलाक़ातें बस कुछ पलों की ही हो सकीं थीं, जैसे सड़क पर, अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के रास्ते में, या फिर किसी किताब की दुकान में.
ये कुछ पलों का मिलना करीम को और बेचैन कर देता था. एक बार तो, जब इदा ने जाने के लिये हाथ मिलाया, तो सड़क पर ही, करीम ने इदा का हाथ, इस तरह पकड़ लिया, जैसे अब छोड़ेगा ही नहीं. इदा तब परेशान हो गयी और कहने लगी, “करीम, तुम अब मुझे बहका रहे हो.”
जबकि करीम का ऐसा कोई इरादा नहीं था. वो तो बस उसका हाथ छोड़ना नहीं चाहता था. उसे समाज के बनाये नियम समझ में नहीं आते थे. वो तो बस अपनी इदा को जाने नहीं देना चाहता था. मगर इदा जिस समाज में रहती थी, वहाँ इस मुहब्बत को कभी नहीं समझा जा सकता था. ये बात इदा अच्छी तरह जानती थी. और इसी बात की वजह से वो करीम से दूर रहना चाहती थी. लेकिन करीम बार-बार उसके रास्ते में आ जाता था.
एक बार तो इदा अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने गयी थी. और क्या देखती है कि करीम वहीं खड़ा है. उसे देखते ही इदा का मुँह खुला का खुला रह गया. वो हैरान थी कि सुबह के साढ़े सात बजे करीम यहाँ क्या कर रहा है...?फिर अपने बच्चे को स्कूल में छोड़कर इदा करीम से मिली. पूछा, “करीम... इस वक़्त...? किसलिये...?”
इदा सवाल बहुत करती थी. और करीम को समझाती बहुत थी. करीम ने कहा, “बस तुम्हें देखने का मन किया, तो चला आया.”
इदा करीम की इस दीवानगी से बहुत घबराती थी. मगर करीम इदा के रास्ते में बार-बार आ ही जाता था. इदा सोचती थी, “ये लड़के ऐसे ही होते हैं.”
मगर ऐसा नहीं था. इदा करीम की नसों में बस चुकी थी. इदा ख़ून बनके करीम के जिस्म में बह रही थी. करीम के लिये और कुछ नहीं था. सिर्फ़ इदा और बस इदा. उसकी पूरी दुनिया इदा थी. और इदा की दुनिया में करीम के लिये कोई जगह नहीं थी. करीम बस इदा की साँसों में रह सकता था, इदा के ख़्वाबों में रह सकता था. मगर हकीकत में, इदा अपने घर में, करीम का नाम भी नहीं ले सकती थी. और ये बात करीम को खाये जा रही थी.
करीम की हालत इदा के लिये दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी. इदा भी परेशान थी कि, “क्या करे...?” करीम इदा के ख़्वाब देखता था, फिर इदा से कहता था, “ये ख़्वाब पूरा कर दो...”
मगर करीम के ख़्वाबों में तो इदा होती थी... लेकिन हकीकत में इदा कभी नहीं होती थी. इदा बस उससे बातें करती थी. बातें हर तरह की. बातें ऐसी कि मियाँ-बीवी भी क्या करें...! मगर ये सब करीम की वजह से था. इदा बहुत ख़ूबसूरत थी. ये करीम की परेशानी थी. करीम को इदा के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था.
उस दिन जब करीम ने इदा का हाथ कस के पकड़ लिया था. तब उस दिन ज़िद करके करीम इदा की बाईक पे थोड़ी देर के लिये बैठ गया था. इदा बाईक चलाती थी. करीम को इस बात पे यक़ीन नहीं हुआ था, जब उसे पता चला था इस बात का.
उस दिन करीम जब इदा के पीछे बैठा था, तब हवा के एक झोंके ने इदा का दुपट्टा थोड़ा सा सरका दिया था. और इदा के दायें कन्धे पे, गर्दन के पास एक तिल है, जो करीम को दिख गया था. और फिर करीम से नहीं रहा गया. उसने आँखें बन्द कीं और दुनिया की परवाह किये बग़ैर, अपने होंठ इदा के इस तिल पे रख दिये.
ये पहली बार था, जब करीम ने इदा को इस तरह छुआ था. ख़्वाब में तो दोनों सब कुछ कर चुके थे. मगर हकीकत में करीम ने इदा को इस तरह पहली बार छुआ था. और अब एक बार छू लेने के बाद, करीम की प्यास और बढ़ गयी थी. लेकिन इदा घबरा गयी. उसने कहा, “करीम... मैं गिर जाऊँगी...”
फिर करीम ने दूसरी बार भी उस तिल को उसी तरह छू लिया. अब इदा को लगा कि, “रुकना पड़ेगा.” और वो रुक गयी. अब करीम को बाईक से उतरना था. उतरते हुए उसने इदा की कमर पे हाथ रख दिया था. इदा को ये बात भूली नहीं. इदा चाहती थी कि करीम ख़ुद को सँभाले, मगर करीम चाहता था कि, “अब इदा मुझे सँभाले.”
करीम उस वक़्त चाहता था कि इदा के ख़ूबसूरत होंठों को छू लूँ, मगर इदा ने कहा, “यहाँ नहीं करीम...” अब करीम को लगा, “इदा फिर किसी मौक़े की बात कर रही है.” और उसने ख़ुद को समझा लिया और इदा चली गयी.
उस रात इदा की नींद उड़ गयी थी, और उस रात पहली बार, करीम को ठीक से नींद आई थी. मगर इदा ने ख़ुद को सँभाल लिया और दुबारा ऐसा न हो, इसकी पुर-ज़ोर कोशिश करने लगी. अब उसने करीम से मिलने की बात पे ‘हाँ’ कहना छोड़ दिया. और करीम, जो ये सोचके ख़ुश हो रहा था कि इदा ने कहा है, “यहाँ नहीं...” इसका मतलब वो किसी और जगह मिलेगी, उसके सपने चूर-चूर हो गये, जब इदा ने कहा, “अब तुम्हें अपनी बाईक पे नहीं बैठने दूँगी.”
अब एक नया सिलसिला शुरू हुआ. दोनों में बातें कम हो गयीं. मगर दोनों ने एक-दूसरे के बारे में सोचना और ज़्यादा कर दिया. अब इदा को रात में अचानक झटके आते थे. वो चौंक कर उठ जाती थी. करीम सपने देखता था जिनमें इदा होती थी. और करीम के सपनों में इदा बिना कपड़ों के आती थी.
अगले दिन जब करीम, किसी तरह कोशिश करके, इदा को बात करने पे मना लेता था, तब इदा प्यार से उसके ख़्वाब सुनती थी. और जब करीम कहता कि, “इदा... इस ख़्वाब को सच कर दो...” तब दोनों में बहस हो जाती थी. झगड़ा हो जाता था. फिर कई-कई दिन बातें नहीं हो पाती थीं. फिर करीम परेशान हो जाता था. इदा से बात करने के लिये वो अजीब-अजीब तरकीबें निकालता था. अपने ऑफ़िस के नम्बर से फोन करता था. पी.सी.ओ. से फोन करता था. और इदा जब फोन उठाती थी, तब कहता था, “फोन मत रखना.”
और फिर वही सिलसिला शुरू होता था. इदा का रूठना. करीम का मनाना. फिर इदा का आँसू बहाना और फिर करीम का अपने दिल को समझाना. और इस तरह दोनों का रिश्ता एक अजीब दौर से गुज़रने लगा. झुँझलाहट और झल्लाहट से भर गया था करीम का दिल.
उधर इदा ख़ुद को समझाती रहती थी कि, “ये ग़लत है.” वो करीम को भी समझाती थी कि, “ये सब ग़लत है. मैं नहीं कर सकती ये सब.” करीम को ये नहीं समझ में आता था कि इदा फिर उन बातों पे बात क्यूँ करती है, जो बातें उसे ग़लत लगती हैं.
करीम इदा को चाहता था, मगर इस क़ीमत पे नहीं कि इदा की ज़िन्दगी उसकी वजह से किसी मुसीबत में पड़ जाए. और करीम इस बात का हमेशा ख़याल रखता था. वो इदा को दूर से देख कर तसल्ली कर लेता था. मगर अब ये सब भारी होता जा रहा था. दिल बोझिल होता जा रहा था. इदा बार-बार करीम से कहती थी, “तुम क्यूँ आये मेरी ज़िन्दगी में करीम...? तुम चले जाओ... तुम चले जाओ मेरी ज़िन्दगी से... दूर... बहुत दूर...”
ये करीम का ही कलेजा था जो ये सब बर्दाश्त करता था. फिर एक दिन करीम ने एक ख़्वाब देखा, और इदा से कहा, “ये मेरी आख़िरी ख़्वाहिश है. इसे पूरी कर दो. फिर मैं तुम्हारी ज़िन्दगी से हमेशा के लिये चला जाऊँगा.”
और जब ख़ुद करीम ने कहा कि, “मैं तुम्हारी ज़िन्दगी से चला जाऊँगा”, तब इदा को जैसे धक्का सा लगा... धक्का इतना गहरा कि जैसे उसके पाँव तले ज़मीन न रही हो... ये ख़याल कि “करीम चला जाएगा”, उसे हैरान किये दे रहा था. उस दिन इदा ख़ूब रोयी थी. क्यूँकि करीम का ख़्वाब ही ऐसा था. उसने देखा था कि, “इदा और करीम मिलते हैं... उनके जिस्म मिलते हैं. फिर एक बच्चा होता है. इदा उसे बड़े प्यार से पालती है. वो करीम की निशानी जो था.”
इतना ख़्वाब सुनके इदा को हँसी आ गयी थी. तब उसने कहा, “करीम... तुम भी ना... पागल हो तुम... अच्छा फिर क्या हुआ...?”
“फिर करीम चला गया.” ये करीम ने कहा था. अब इदा ने पूछा, “चला गया मतलब...?”
करीम ने कहा, “करीम चला गया. हमेशा के लिये. मगर एक बच्चे की शक्ल  में फिर से तुम्हारे पास आ गया, तुम्हारे बेटे के रूप में...” इदा को ये बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी. मगर करीम ने उसे ठीक से समझाया, “देखो इदा, तुम मेरे पास नहीं आ सकती. मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में नहीं आ सकता. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. तुम अपनी बसी-बसाई दुनिया छोड़ नहीं सकती. और तुम्हें छोड़ना भी नहीं चाहिए. लेकिन एक काम हो सकता है. हमें-तुम्हें मिले हुए आज नौ महीने हुए हैं. नौ महीने में तो कुछ होता है ना..? वही कर दो... मुझे नौ महीने की उमर दे दो... मैं नौ महीने और ज़िन्दा रहना चाहता हूँ... फिर चला जाऊँगा, तुम्हारी ज़िन्दगी से दूर... हमेशा के लिये... यही चाहती हो ना तुम...? यही एक रास्ता निकाला है मैंने... तुम मुझसे एक बार तसल्ली से मिल लो... फिर तुम एक बच्चा पैदा करो, जो मेरी निशानी हो... मैं तुमसे दूर नहीं रह सकता... मैं तुम्हारे पास रहना चाहता हूँ... और नियम-कानून वाली इस दुनिया में एक बच्चे के ऊपर कोई शक नहीं करता. मैं एक बच्चे की शकल में तुम्हारे पास रहूँगा. एकदम पास... तुम्हारे सीने से लिपटकर सोऊँगा... यही तो मैं चाहता था हमेशा...”
इदा, करीम की ये बात, आँखे, मुँह, कान, नाक सब खोल कर सुन रही थी. उसका चेहरा फक्क पड़ गया था. इदा को समझ में नहीं आ रहा था कि करीम के इस ख़्वाब को कैसे सच करे...? वो करीम को अब क्या जवाब दे...?


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama