इंद्रधनुष सी मैं चिरैया
इंद्रधनुष सी मैं चिरैया
इंद्रधनुष सी मैं चिरैया
सुन मोरे बाबुल , सुन मोरी मैया
थी इस आँगन की, मैं सोन चिरैया
नन्हे -नन्हे हाथों को थाम, लिखना पढना सिखाया
कर मज़बूत परों को हौंसलो से उड़ना सिखाया
बेसहारा-असहाय लाचार थी मैं
किसी के गुनाह का अंज़ाम थी मैं
देवदूत बन, मेरे जीवन को प्राण-दान दिया
जनक से ज़्यादा मुझको प्यार-दुलार दिया
क्यूँ धी तुमने अपनी ब्याही, अब काहे ये रीत निभाई
कहे जग सारा, मैं हुई पराई पिया संग देखो, हुई विदाई
अभागी सी बेनूर, बेकुसूर लो, चली मैं सब से दूर डेरा है
भूली यादों का बसेरा है ज़िम्मेदारी ने अब मुझको घेरा है
कैसे सहूँ, जुदाई का रंग गहरा , सोच पे अब,ज़माने कापहरा है
पुकारे तेरी सोन -चिरैया, आँगन की खुशबू ले आ ओ पुरवैया!
आपसे महकी मेरे जीवन की बगिया,
अगले जन्म मैंकोख से तेरी मैया ।