छलावा भाग 11
छलावा भाग 11
छलावा
भाग 11
अभी तक शांत कमिश्नर सुबोधकुमार बोले, तुम इतने सफल और प्रसिद्द हो शिवकुमार बख़्शी! जिंदगी का आनंद ले रहे हो तुम्हे यह सब करने की क्या जरूरत आन पड़ी थी?
"तेरे कारण हरामजादे! तेरे कारण! पहली बार बख़्शी के स्वर में तेजी के साथ साथ किंग कोबरा से भी ज्यादा जहर उतर आया। तुझे तो शायद याद भी नहीं होगा कि जिस साल तूने आई पी एस की परीक्षा पास की थी उसी साल एक और लड़का तुझसे भी अधिक योग्य और तेज था जिसका नाम शिवकुमार था पर बड़े बाप की औलाद होने के नाते और पैसों के दम पर हर जगह तू सेलेक्ट हुआ और उसे दरकिनार कर दिया गया तो उसने खीझ कर पुलिस में भर्ती होने का विचार ही त्याग दिया और प्राइवेट जासूस बनकर झंडे गाड़ दिए इस दौरान उसने कदम-कदम पर पुलिस की भी मदद की पर जब तू मुम्बई का कमिश्नर बन कर आ गया तो मेरे जख्म फिर हरे हो गए। मेरी छाती पर सांप लोटने लगा और मैंने निश्चय कर लिया कि अब मुम्बई पुलिस की नाक में दम करके ऐसा हाहाकार मचाऊंगा कि तुझे पद से हटा दिया जाएगा। जिस कुर्सी पर तू काबिज है वो मेरी है सुबोध कुमार! मेरी!
ईर्ष्या की इस आग में तुमने बीसियों निर्दोषों को मार दिया बख़्शी? मोहिते बोला, आखिर निर्दोष सेल्समैन और अस्पताल के चौकीदार ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था और क्या गलती थी शैलेश पांडे की?
एक जहरीली मुस्कान फिर बख़्शी के चेहरे पर नाचने लगी। वो बोला, मैं तुम लोगों को तिगनी का नाच नचाना चाहता था मोहिते। जब हम दोनों अस्पताल के मोर्ग में सेल्समैन की लाश का मुआयना करने गए तब मैंने धमकी वाला कागज घर से ही बना कर ले लिया था जो मुआयने के बहाने उसकी पीठ पर रख दिया जो वातावरण की नमी के कारण खुद ब खुद लाश की पीठ से चिपक गया फिर मैंने चौंकने का बहाना किया। जब तुम हड़बड़ा कर पास आए और बुरी तरह आतंकित होकर रह गए तो तुम्हारा भयभीत चेहरा देखकर मुझे किसी मनोरंजक फ़िल्म देखने जितना मजा आया। फिर मैंने तुम्हारे चेहरे को देखकर "छोड़ूंगा नहीं" शब्द कहा था वह पुलिस डिपार्टमेंट के लिए था छलावे के लिए नहीं। और देख लो! आज तुम दोनों मेरे रहमो करम पर हो! बख़्शी ने फिर ठहाका लगाया।
चौकीदार को कैसे और क्यों मारा? मोहिते यूँ बोला मानो उसकी आखिरी बात सुनी ही ना हो।
मैं पुलिस विभाग को अपने आतंक से साए तले सिसकता देखना चाहता था मोहिते। मेरी दिली तमन्ना थी कि छलावे के नाम से तुम सबकी पतलून गीली हो जाए तभी मैं टॉयलेट की खिड़की में से बाहर निकला और सामने ही सीढ़ियों के पास चौकीदार मिल गया। मुझे खिड़की से निकलता देख उसकी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गई जिनमें से बायीं वाली को मैंने तुरन्त सुए का प्रसाद दिया और फिर खिड़की से भीतर दाखिल होकर तुम्हारे साथ मुख्यद्वार की ओर चल दिया। मेरी उससे कोई जाती दुश्मनी नहीं थी। उससे ही क्या मेरी तो किसी से व्यक्तिगत रंजिश नहीं थी। मैं सिर्फ पुलिस की खटिया खड़ी करना चाहता था। इसीलिए मैं फिंगर प्रिंट्स विभाग में गया तो पाया कि शैलेश दीन दुनिया से बेखबर अपने काम में मग्न था। वैसे मुझे उससे कोई खतरा नहीं था क्यों कि किसी सुए पर मेरी उँगलियों के निशान थे ही नहीं पर वहाँ सूनसान देखकर मैंने उसे सुआ मार दिया। मुझे सिर्फ आतंक फैलाने से मतलब था मोहिते! विलास राहुरकर भी इसी वजह से मरा। जब वो खिड़की के पास खड़ा मदद के लिए इधर उधर ताक रहा था तभी मैंने वहां पहुँच कर उसे सुआ घोंप दिया और चुपचाप आकर तुम्हारे ऑफिस में बैठ गया। फिर तुम्हारे बताने पर मानो नवांगतुक की तरह विलास की जांच करने चल पड़ा। मुझे हर बात पहले से पता रहती थी इसलिए मैं तुम लोगों से चार कदम आगे रहता था मोहिते!
सही कहा बख़्शी, मोहिते दांत पीसता हुआ बोला, तभी तो तुमने आनन फानन में वाधवा के क़त्ल से छलावा को बरी कर दिया था क्यों कि तुमसे बेहतर कौन जान सकता था कि उसका क़त्ल छलावा ने नहीं किसी और ने किया था। तभी जब उसके क़त्ल की खबर आई थी तब तुम्हारे चेहरे पर मैंने भारी अचरज के भाव देखे थे पर भांप नहीं सका था।
गर्दन हिलाकर बख़्शी यूँ मुस्कुराया मानो कोई पुरस्कार ग्रहण कर रहा हो।
बख़्शी एक बात बताओ, कमिश्नर साहब बोले "तुमने उस दिन मेरे ऑफिस के बाहर किसी के होने की बात क्यों कही थी?
हा हा हा! बख़्शी हँसता हुआ बोला वो तो सिर्फ आप लोगों को डराने का नाटक था। मैं चाहता था हर घड़ी आतंक का साया आप पर मंडराता रहे सुबोधकुमार जी! फिर बख़्शी नाटकीयता पर उतर आया था।
अब बोलो पहले कौन ऊपर जाएगा? अचानक विषय बदलते हुए बख़्शी ने रिवाल्वर हिलाई। उसकी बॉडी लैंग्वेज कह रही थी कि वो अब बूझो तो जाने टाइप सवाल जवाब से बोर हो चुका था।
पर मोहिते लापरवाही से बोला, बख़्शी! अब तू अपने बनाने वाले को याद कर ले। तेरे पापों का घड़ा भर चुका। अब तुझे फांसी होगी। मैं तुझे गिरफ्तार करता हूँ।
बख़्शी ने जोरदार ठहाका लगाया और उठकर रिवाल्वर मोहिते के माथे से सटा दी और उसकी उंगली ट्रिगर पर कस गई। फिर एक फायर हुआ। बख़्शी की बाईं आँख में काफी बड़ा छेद हो गया और उसमें से रक्त का फौवारा सा निकल कर मोहिते को भिगो गया। वह निशब्द कटे पेड़ सा गिरा। फिर परदा हिला और उसके पीछे से पुलिस के शार्प शूटर पांडुरंग साटम ने बाहर कदम रखा। उसके चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे। साटम अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज और पुलिस विभाग की शान था। उसने निशानेबाजी में कई पदक हासिल किए थे। मोहिते ने पहले ही उसे कमरे में परदे के पीछे बिठा रखा था क्यों कि आज उसे खूनखराबे की पूरी आशंका थी।
"साटम" कमिश्नर जब बोले तो उनकी आवाज में कोड़े जैसी फटकार थी, मैंने तुम्हे इसे सिर्फ घायल करने को कहा था न? इसकी सजा इसे कानून देता तुमने इसकी आँख में गोली क्यों मारी?
साटम बोला, "सॉरी सर! हड़बड़ाहट में निशाना चूक गया।
कमिश्नर ने आँखों से बरछी भाले बरसाते हुए उसे जाने का इशारा किया तो वह चेहरे पर एक कुटिल मुस्कुराहट लिए हुए सैल्यूट करके विदा हो गया। जाते-जाते छलावा के लिए एक भद्दी गाली बुदबुदाना भी नहीं भूला! जो कमिश्नर और मोहिते ने सुन कर भी अनसुनी कर दी।
अब कमिश्नर ने खड़े होकर मोहिते से हाथ मिलाया और बोले वेल डन! डी एस पी विक्रांत मोहिते! वेल डन। पहले तो डी एस पी पुकारे जाने पर मोहिते अचकचा गया पर जब उसे वस्तुस्थिति समझ में आई तो उसका चेहरा खिल उठा। कमिश्नर ने आगे कहा प्रमोशन के साथ ही मैं तुम्हारा नाम राष्ट्रपति पदक के लिए भी प्रस्तावित करूँगा। विक्रांत मोहिते ने दोनों एड़ियां बजाकर अपने कमिश्नर सुबोधकुमार को जोरदार सैल्यूट दिया और घूमकर अपने ऑफिस की ओर चल दिया।
समाप्त