सिस्टर इन लॉ
सिस्टर इन लॉ
"माँ विनीत जीजू की हालत मुझसे देखी नहीं जाती। ऊपर से हठ कर बैठे हैं कि अपने इन्हीं दो बच्चों विनती और विनय के सहारे ही पूरी उम्र गुजारेंगे! मगर दूसरी शादी नहीं करेंगे।"
"क्या करूँ बेटी मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा। इतना नेक लड़का अपने जीवन में कभी न देखा। तेरी बड़ी बहन नीतू को गुजरे दो साल हो गए फिर भी उसे कोई भूला नहीं पाया।"
"उन्हें अब भी विश्वास है कि दीदी जरूर आएगी।"
''हो भी क्यों न। दोनों तो पुल पर सेल्फी ले रहे थे। जोरों की आँधी चली, तुफान आया और दर्जनों लोगों के साथ वे दोनों पुल से गिर कर गंगा मैया में समा गए। पता नहीं प्रभु की कैसी लीला है? गोताखोरों के कई दल भी कइयों के साथ मेरी बीटिया को भी खोजने में कामयाब न हुए! उन्हें सिर्फ़ जमाई राजा ही मिले।"
कहते माँ आज भी खूब रोइ।
मैं भी चुप कराते कबतक रोती रही मुझे भी पता नहीं। वो स्कूल से दीदी के बच्चे आकर साथ बैठ जोरों से न रोने लगते तो हमारी सुधी भी न रहती। लोग कहते हैं बिना पति के जीवन नरक से कम नहीं। यहाँ तो बिना पत्नी के जीवन नर्क से भी ज्यादा भयावह हो गया है! क्या करूँ? भाग्य नें भी जीजा के साथ कैसा खेल खेला है।इकलौते संतान थे इनके किशोरावस्था में ही एक दुर्घटना में इनके माँ बाप गुजर गए। इनकी बुआ नें इन्हें न संभाला होता तो पता नहीं क्या होता?
मैं भी रह रह कर विचारों में खो जाती हूँ।
"रागिनी! रागिनी!"
जीजू की आवाज सुन उठ खड़ी हुई।
"लीजिए डिअर सिस्टर! आपके लिए ये खास ड्रेस लाया हूँ।"
आज मैं खूद को रोक नहीं पाई । मम्मी पापा के सामने ही मेरे दिल की, घर की, परिवार की बात आखिर जुबाँ पर आ ही गई-
"यह तो आपका बड़प्पन है जीजू । कानून इस रिश्ते को सिस्टर भले करार दे। परन्तु अगर आपको कोई एतराज न हो तो आपकी ये प्यारी सिस्टर इन लॉ आपको अपना पति स्वीकार करती है। आपके दिलो दिमाग में स्थापित दीदी के प्यार का साम्राज्य इतना बड़ा है कि उस साम्राज्य की साम्राज्ञी तो नहीं बन सकती लेकिन हाँ उस साम्राज्य के एक कोने में छोटा सा आशियाना तो बना ही सकती हूँ। जिससे आपको छाँव मिल सके।"
मेरी बात सुन वे सीधे अपने कमरे में बच्चों के पास चले गए। सबने सौगंध दी,शपथ ली आमरण उपवास पर बैठ गए। तब भी न मानें।
वो मैं तो सुबह से ही उपवास पर थी। जब मेरी तबियत ज्यादा बिगड़ने लगी। बड़ी मुश्किल से वे राजी हुए फिर शादी की तैयारियाँ शुरू हो गई।*