ख्याल है तुम्हें !
ख्याल है तुम्हें !
'उठो न, और कितनी देर फोन चलाते रहोगे ?' रुचि खीझ उठी थी।
माइग्रेन की बीमारी तो उसकी जान ही ले लेगी। आज कामवाली रमा ने भी छुट्टी कर रखी थी। ससुर जी को आज फिर पता नहीं क्यों पेट में दर्द होने लगा था। अब तो शायद यह मुसीबत ऑपरेशन तक ही ले जाए। अपेंडिक्स होने का शक था। नर्सिंग होम में बात हो गई थी रुचि की। वे बाबूजी को लेकर वहां आने की बात कर चुके थे।
इधर रुचि के आठ साल के बेटे राहुल की भी छुट्टी थी, सो शैतानी कर कर के सबको परेशान कर रहा था। और दिन तो सारा घर- बाहर रुचि ही संभालती है, अभिषेक तो बस ऑफिस और फोन चलाकर ही थक जाते हैं।
आज रुचि खुद बहुत अस्वस्थ महसूस कर रही थी, ऊपर से बाबूजी का दर्द बढ़ता ही जा रहा था। रुचि के लिए अब अभिषेक का फोन पर उंगलियां घुमाना बर्दाश्त के बाहर था। वह खीझ कर चिल्लाई- ' मेरा सर फटा जा रहा है, घर भर का काम पड़ा है। अभी खाना बना रही हूं। बाबूजी तड़प रहे हैं, उन्हें लेकर डॉक्टर के पास कब जाओगे ? सुबह नींद खुलते ही फोन पकड़ कर बैठ जाते हो। आज ऑफिस की छुट्टी है मगर फोन की छुट्टी नहीं है ? बारह बजने को आए...'
'अरे यार, इतनी ही जल्दी मची ही तो तुम ही लेकर चली जाओ न बाबूजी को डॉक्टर के पास। घंटे दो घंटे में क्या हो जाएगा ? एक जरूरी काम कर रहा हूं इधर !'
अभिषेक से थक कर रुचि खुद ही जल्दी जल्दी काम निबटाने लगी, ताकि बाबूजी को लेकर वह डॉक्टर के पास जा सके।
अभिषेक को अब तक फेसबुक और वॉट्स ऐप पर इतनी वाहवाही मिल चुकी थी। उसने कई सारे वीडियो शेयर और पोस्ट किए थे, जो बुर्जुग और महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता दर्शाते थे। इस शेयर में अफसोस, क्रोध और सलाह आदि को अभिषेक ने इस तरह बयां किया था कि सोशल मीडिया में वह अत्यंत संवेदनशील इंसान के रूप में उभर चुका था।