फर्ज
फर्ज
"ये आप क्या कह रहे हैं डॉ"
"वही जो आपने सुना"
"आपके पास समय कम है,जो भी निर्णय लेना है, जल्दी लें।"
"पर ये निर्णय मैं अकेले नही ले सकती "
"देखिये मिस मैं आपको पहले ही बता चुका था। आपके पेशेंट की बीमारी गम्भीर है। अब सारी रिपोर्ट्स भी आ चुकी है। आपको जिससे भी राय लेनी है , जल्दी लें। कही ऐसा ना हो , जो आप कभी ना चाहे।"
"मैं आपसे शाम को आकर मिलती हूँ, डॉ। " भारी कदमों से निशा अपने गन्तव्य को चल दी। मन में सवालों के द्वन्द मच रहे थे। घर में कदम रखते ही भाई ने रिपोर्ट के बारे में पूंछा , तो उसने पूरी फ़ाइल थमा दी। रिपोर्ट पढ़कर भाई की आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया।
"हमें शाम तक डॉ को जवाब देना है। माँ की दोनों किडनियां फेल हो गयी है। " निशा ने गंभीर स्वर में कहा।
"पर हमें डोनर कहाँ मिलेगा , निशा।" भाई ने चिंतित होते हुए कहा।
"आप ना परेशान हो भाई , मैंने उसका इन्तज़ाम कर लिया है।
आप बस बाबू जी का ध्यान रखियेगा , उन्हें कुछ भी ना बताइयेगा। उन्हें दो हार्ट अटैक आ चुके है , वो ये सब शायद बर्दाश्त ना कर पाएं। "
"डोनर कौन है "
"आप तो कभी हो नहीं सकते , इस एच0 आई 0 वी0 ने आप को सोख लिया है। तो मैं अपनी एक किडनी देकर माँ को बचा रही हूँ।"
"पर एक महीने बाद तुझे अपनी ज़िन्दगी की एक नई शुरुआत करनी है। "
"भाई, ये ज़िन्दगी जिसकी दी हुई है , पहले उसका फर्ज़ तो अदा कर दूँ। हमसफ़र गर ना समझा तो कोई और भी मिल जायेगा पर माँ , वो तो एक ही है।"
चेहरे पर आत्मसंतोष के भाव लिए निशा को देखते , दरवाजे की ओट से उसके पिता को आज अपनी एक भूल पर पछतावा हो रहा था।