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तीन दिन भाग 11

तीन दिन भाग 11

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तीन दिन भाग 11 

16 अगस्त सुबह 7 बजे

 

         फिर रात निर्विघ्न बीत गई। सुबह का झुटपुटा हो गया। सब धीरे धीरे जागने लगे और अपनी नित्य क्रियाओं में मशगूल हो गए। पर पता नहीं क्यों रोज बहुत सवेरे उठने वाला सुरेश चौरसिया आज बहुत देर तक सोता रहा। बिंदिया को इस बात से चिंता हुई तो उसने जाकर सुरेश को उठाया तो वह थोड़ी देर उसे उनींदी आँखों से देखता रहा फिर चुपचाप बाथरूम की ओर चला गया। आज का दिन अब पता नहीं क्या गुल खिलाने वाला था। 

रविवार 16 अगस्त  को सुबह से ही  चंद्रशेखर बहुत गर्म मूड में था।और बहुत अजीब व्यवहार कर रहा था। उसने सुबह उठते ही किसी बात पर सुरेखा को दो तमाचे जड़ दिए थे। वह कुछ देर रोती रही फिर मुंह फुलाये बैठी थी। रमन ने बीच बचाव करने की कोशिश की तो चंद्रशेखर ने उसे भी झिड़क दिया। रमन यहां उपस्थित सभी की मानसिकता से परिचित थे तो उन्होंने बात आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। वे जानते थे कि हर कोई भयानक मानसिक उहापोह के बीच था। वैसे आज चंद्रशेखर बहुत अजीब व्यवहार कर रहा था। नाश्ते की टेबल पर उसने अचानक उछलकर नीलू की गर्दन पकड़ ली और बोला , हत्यारिन! तूने ही मारा है न सबको? अब मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूंगा।  

    रमन ने जोर से डांटते हुए चंद्रशेखर से कहा पहलवान! दिमाग से काम लो। बिना सबूत तुम नीलू को कातिल नहीं कह सकते। 

चंद्रशेखर बोला, मेरे पास सबूत है रमन! इसे अपने प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ाने थे तो इसने मंगत के सर पर पत्थर पटक कर उसे मार दिया। 

नीलू जोर-जोर से चिल्लाकर इस आरोप का प्रतिवाद करने लगी। 

सुरेश अपनी शैय्या पर लेटा चुपचाप यह सब नाटक देख रहा था। बिंदिया भी मुंह बाए सब देख रही थी।  

सुरेश और गुंडप्पा को भी नीलू से सहानुभूति हुई पर वे कुछ बोले इससे पहले डॉ मानव बोले, पहलवान! तुम किस सबूत के आधार पर नीलू को हत्यारी कह रहे हो?

चंद्रशेखर बोला, जब इसने देखा कि झाँवर पर बादाम की हत्या का शक किया जा रहा है तो इसने इस बात का फायदा उठाने की सोची। यह आधी रात को झाँवर के कमरे में गई और उसके हाथ पाँव बांधकर उसे खिड़की के नीचे फेंक दिया। सभी को लगा कि झाँवर भाग गया। पर इसने उसके कपड़े और आभूषण निकाल लिए थे और उसे पहन कर इसने मंगत राम की हत्या कर दी। मैंने दूर से झाँवर की कमीज और चैन देखी तो लगा कि झाँवर है पर वो ये नीलू थी। जब तक मैं इस तक पहुँचता इसने कपड़े और जेवर निकाल कर खाई में फेंक दिए जो मैं सुबह ही जाकर अपनी आँख से देख कर आया हूँ। 

मानव ने एक ठहाका लगाया और बोला क्या बेसिरपैर की हांक रहे हो चंद्रशेखर? झाँवर के कपड़े और खाई में? हो ही नहीं सकता। तुम्हे जरूर कोई धोखा हुआ है। नीलू अब बुरी तरह सिसक रही थी।

चंद्रशेखर तैश में आ गया और मानव का गिरेहबान पकड़कर खींचता हुआ बोला,अभी चलो! अपनी आँखों से देख लो तुम भी। अगर कपड़े खाई में न मिलें तो मुझे दस जूते मारना!

डॉ मानव ने भी गुस्से में आकर चंद्रशेखर का हाथ झटक दिया और बोले, सरासर झूठ! वो कपड़े वहां हो ही नहीं सकते वो तो पीपल के पेड़ के कोटर में........ इतना कहते ही उसे भान हुआ कि वो क्या बोल गये हैं, तो उन्होंने दांतों से अपनी जीभ दबा ली और सकपका गये। 

कहानी अभी जारी है .......

मानव का चिटठा खुल गया। पर आगे क्या हुआ। जानिये भाग 12 में 


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