सफलता के मूलमंत्र
सफलता के मूलमंत्र
शिखा बदहवास सी शुभ्रा के घर की ओर भागी जा रही थी। वह बड़ी बेचैन थी जब से उसने सुना था कि शुभ्रा ने आत्महत्या की कोशिश की। शुक्र है कि उसकी माँ घर पर थी उन्होंने बचा लिया था। शिखा, शुभ्रा के घर पहुंची तो देखा कि घर के सभी सदस्य शुभ्रा के पास बैठे थे, शिखा को देखते ही बाहर चले गये। शुभ्रा, शिखा से लिपटकर रोने लगी।
"शान्त हो जाओ शुभ्रा ! मुझे बताओ ऐसा क्या हुआ जो तुमने इतना गलत कदम उठाया ?"
"मैम ! मैं जिन्दगी से तंग आ चुकी हूँ। कोई मुझे नहीं चाहता। सफलता भी मुझसे रूठ गयी। इस बार भी मेरी नियुक्ति नहीं हुई। सब जगह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद। ससुराल में मेरे पति और मेरी सास दिन भर मुझे ताने देते हैं कि मैं जिन्दगी में कुछ नहीं कर सकती। वहां मैं एक-एक पैसे को मोहताज हूँ। मैं वहां नहीं जाना चाहती परन्तु माँ कहती है तुझे जाना है वही तेरा घर है इसलिए मैंने सोचा कि इस जीवन से ही मुक्ति पा लूँ।"
"आत्महत्या हर समस्या का समाधान नहीं होता। संघर्षों से डरकर कायर लोग आत्महत्या किया करते हैं साहसी और बुद्धिमान लोग नहीं। कैसे भूल गयी कि सोना अग्नि में तपकर ही कुंदन बनता है।"
"माफ कीजिए मैम, मैं आपकी शिक्षा भूल गयी। आप ही बताइये मैं क्या करूं?"
"देखो बेटा ! सबसे पहले अपनी ससुराल जाकर तुम किसी प्राइवेट स्कूल में नौकरी करना शुरू करो। गोल्डमैड़लिस्ट हो, आसानी से नौकरी मिल जाएगी। दो पैसे कमाओगी तो घर में सम्मान बढ़ेगा किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा, अपने विषय का ज्ञान भी बना रहेगा। इसके साथ पुनः अपने लक्ष्य पर जुट जाओ। याद रखो कभी भी सौ प्रतिशत भ्रष्टाचार नहीं होता। सफलता का मूलमन्त्र है- दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास और कठिन परिश्रम। अगर तुमने अपने जीवन में इन्हें उतार लिया तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हे सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकती।
मैं अपने जीवन का अनुभव बता रही हूँ कोई उपदेश नहीं दे रही। बस थोड़ा धैर्य रखना होगा। शुभ्रा मुझसे वायदा करो कि भविष्य में कोई गलत कदम नहीं उठाओगी।"
"मैम ! मैं वायदा करती हूँ कि आशा की जो किरण आपने मेरे मन में जगायी है उसे कभी नहीं बुझने दूंगी।अब मुझे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।"