हुनर की दुनिया
हुनर की दुनिया
आ गया खेलकर...सारी शाम खेलना है, पढ़ाई नहीं करना है, लाट साहब बिना पढ़े-लिखे बन चुके हैं।
वही करेंगे जो तुम्हारा बाप सारे दिन करता रहता है।
सारा दिन खाली लोहा कूटो, वेल्डिंग करते रहो, लोहे के दरवाजे, खिड़की बनाते रहो। हजार दफे कह चुकी हूँ कि नहीं पढ़ेगा-लिखेगा तो बाप की यही विरासत पायेगा।
माँ की बड़बड़ाहट सुनते हुए सचिन हाथ-मुँह धोकर अपने कमरे में पहुँचा और बाल झटकते हुए कोने में रखी कैनवास पर चित्र उकेरने लगा।
तभी माँ एक हाथ में सूखे नाश्ते की प्लेट लिए और एक हाथ में पानी की बोतल लिए कमरे में घुसी। सचिन के हाथ में ब्रश देखते ही भ्रुकुटि चढ़ी। कुछ बोलने से पहले ही सचिन ने हाथ से प्लेट पकड़कर मेज पर रख दिया।
और माँ के गले में हाथ डालते हुए पलंग पर बैठा लिया।
फिर बहुत ही प्यार से बोला- माँ, तुम तो जानती हो न कि पढ़ाई से अच्छा मुझे फुटबाल खेलना पसंद है। फिर इस ब्रश में मेरी जान बसती है। अच्छा यह बताओ कि मैं होशियार न सही, पर ठीक-ठाक पढ़ता हूँ कि नहीं।
माँ कुछ बोलती, उसके पहले ही सचिन ने आगे कहा...
मैं जानता हूँ कि आप मुझे पापा जैसा नहीं बनाना चाहती आफिसर बनाना चाहती हो पर मेरा मन तो इनमें रमता है। हो सकता है कि आगे जाकर मैं अच्छा फुटबालर बन जाऊँ या रंग भरते-भरते अच्छा चित्रकार।
अपने बनाए चित्रों को देखते हुए जाने कैसी चमक सचिन की आँखों में भर गई। उस चमक को माँ की आँखों ने पहली बार भाँपा।
माँ .. यह बताओ कि मैं पूरे मन से वह करूँ जो मुझे पसंद है, या आधे-अधूरे मन से वह जो आपको पसंद है।
क्या हुनर की दुनिया का मान नहीं है माँ ?
पापा के काम में क्या खराबी है माँ, मुझे नहीं पता है कि वह यह काम मन से करते हैं या बेमन से पर वह तो हमेशा खुश दिखते हैं, वरना छोटी सी दुकान से इतना बड़ा वर्कशाप कैसे बना सकते थे।
माँ, अगर मैं अपनी मनचाही सफलता नहीं पा सका तो पापा के काम में भी खुश रहूँगा। हर रोज एक नयी चीज बनते देखना भी मन को सुकून देता है।
मुझे हर रोज कुछ नया करना अच्छा लगता है।
माँ अवाक थी...पहली बार बेटे ने अपने मन की बात कही थी। उसकी आँखों की वह चमक जो अपने बनाये
चित्रों को देखते हुई कौधीं थी दिल को चीरती चली गई।
अचानक वह उठीं और सचिन के माथे को चूमते हुए बोलीं....ठीक है बेटा, जिसमें तेरी खुशी, उसमें मेरी खुशी। बस एक वादा कर ...
जो भी करेगा, तन-मन से डूबकर करेगा।
सचिन को लगा जैसे बिजली कौंध गई कमरे में।
मन का मयूर नाचने लगा। लगा कि हाथों में थमें ब्रश को पूरा आसमान मिल गया है। पैर जमीन पर जमें हैं पर उड़ने को तैयार ....
कुछ बोलता तब तक उसके बालों को सहला कर माँ जा चुकी थीं। अचानक एक रंग-बिरंगी तितली कमरे में उड़ने लगी। और दौड़ पड़ा सचिन उसे पकड़ने...