चप्पल:मेरे हॉस्टल जीवन
चप्पल:मेरे हॉस्टल जीवन
ऋचा क्लास खत्म करके जब छात्रावास पहुँची तो भूख से उसकी हालत खराब थी। रात के खाने में काफी वक्त देखकर उसने छात्रवास में काम करने वाले अजीत को बुलाया समोसे मंगवाने के लिए।
अजीत जो कि मात्र दस साल का था दौड़कर आया और बोला- हां दीदी, क्या मंगवाना है?
ऋचा ने कहा- दो समोसे ले आओ लेकिन सामने वाली दुकान से नहीं, उसके थोड़ा आगे की दुकान से लाना।
अजीत पैसे लेकर चला गया। ऋचा के मन में जाने क्या आया कि वो उस खिड़की के पास पहुँची जो दुकानों की तरफ खुलती थी। वो देखना चाहती थी अजीत किस दुकान में जाता है।
सड़क पार करते वक्त अजीत के पैरों में कंकड़ चुभ गया जिसे हटाकर वो आगे बढ़ गया। तब ऋचा का ध्यान अजीत के नंगे पैरों पर गया।
ऋचा कांप उठी ये सोचकर कि इतनी भीषण ठंड में जब वो मोजे उतारने की भी हिम्मत नहीं कर पाती, वैसे में अजीत नंगे पैर घूम रहा था।
जब अजीत समोसे लेकर वापस आया तो ऋचा ने उससे पूछा- तुम नंगे पैर क्यों घूमते हो? ठंड नहीं लगती? सड़क पर कहीं कुछ चुभ ही जाए, कोई कीड़ा ही काट ही ले तो?
अजीत ने कहा- दीदी माँ पैसे नही देती चप्पल के लिए। बोलती है अभी पैसों का और दूसरा काम है, इसलिए हर महीने आकर मेरा सारा वेतन ले जाती है।
ऋचा ये सुनकर अपनी माँ को याद करने लगी जिन्होंने थोड़ी देर पहले ही फोन करके कहा था कि बेटे ठंड बहुत है, मोजे पहनकर ही सोना वरना ठंड लग जायेगी तुम्हें।
ऋचा को एक ख्याल आया। उसने अजीत से कहा- जरा मेरी चप्पल पहनो।
अजीत ने हिचकते हुए कहा- दीदी ये लड़कियों की चप्पल है, मैं नहीं पहनूंगा।
ऋचा ने कहा- बस पहनके दिखाओ।
अजीत ने चप्पल पहनी तो ऋचा ने उसके नाप का अंदाजा कर लिया।
फिर अजीत को बाद में आने के लिए कहकर वो अपने कमरे में चली गयी।
उसने अपना पर्स खोला तो उसमें मात्र सौ रुपये बचे थे जो उसने चिकेन खाने के लिए रखे थे। घर से पैसा अगले दिन आने वाला था।
ऋचा ने अपने आप से कहा- छोड़ो चिकेन-विकेन, आज आंटी के आलू-पत्तागोभी से ही काम चला लेंगे।
फिर फटाफट तैयार होकर वो बाजार के लिए निकलने लगी तो पास के कमरे में रहने वाली उसकी दोस्त ने टोका- अरे अभी तो तुम्हारे अंदर समोसे लाने की ताकत नही थी, अब कहां चल दी?
ऋचा ने कहा- कुछ बहुत जरूरी काम है, और निकल गयी।
एक चप्पल दुकान में पहुँचकर ऋचा ने अजीत के नाप की चप्पल खरीदी।
छात्रावास आकर जब उसने अजीत को चप्पल दी तो उस बच्चे के मायूस चेहरे पर सहसा मुस्कान आ गयी और आंख की कोर पर आंसू झिलमिला उठे।
ऋचा ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा- ना-ना रोना नही। खुश रहो हमेशा।
ऋचा को आज एक अलग ही खुशी का अहसास हो रहा था।
उधर अजीत हर किसी को बता रहा था- ऋचा दीदी बहुत अच्छी है। उन्होंने मुझे नई चप्पल लेकर दी।
ये बात जब हॉस्टल की मालकिन जिन्हें सब 'आंटी' बुलाते थे, तक पहुँची तो वो ऋचा से मिलने आयी।
ऋचा घबरा गई कि कहीं आंटी गुस्सा न हो।
पर आंटी ने कहा- बेटे जो बात मुझे सोचनी चाहिए थी वो तुमने सोची। मैं बहुत खुश हूं कि मेरे छात्रावास में तुम जैसी नेकदिल बच्ची रहती है।
ऋचा ने मन ही मन ईश्वर से कहा- हे ईश्वर, बस मुझे इसी तरह शक्ति देना की मैं किसी का दुख बांट पाऊँ, किसी के काम आ पाऊँ।
शायद ऊपर ईश्वर भी मुस्कुराते हुए अपनी इस बच्ची की प्रार्थना के जवाब में 'तथास्तु' कह रहे थे।