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समाज का द्वेष

समाज का द्वेष

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भाटिया साहब अभी-अभी अपने बेटे के स्कूल से लौटे थे। वही पुरानी शिकायत कि पढ़ता नहीं है। यही हाल रहा तो पास होना मुश्किल है। भाटिया साहब परेशान थे। ट्यूशन भी लगा रखा है फिर भी नतीजा वही।

तभी उनका ड्राइवर आकर खड़ा हो गया।

"सर दो दिनों की छुट्टी चाहिए।"

"छुट्टी किस लिए।" भाटिया साहब ने सवाल किया।

"वो मेरी बेटी का पौलीटेक्निक में दाखिला हो गया है। उसे ही भेजने जाना है।"

"तुम्हारी बेटी इतना पढ़ गई।"

"जी बस आप लोगों का आशीर्वाद इसी तरह बना रहे तो कुछ समय में अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी।"

भाटिया साहब ने बेमन से छुट्टी दे दी।

ड्राइवर के जाने के बाद उन्होंने अपने दोस्त को फोन किया।

"कोई अच्छा ड्राइवर बताओ।"

"पर तुम्हारा ड्राइवर तो इतने सालों से अच्छा काम कर रहा है।"

दोस्त ने फोन पर प्रश्न किया।

"काहे का अच्छा। बूढ़ा हो गया है। काम ठीक से करता नहीं है। ऊपर से आए दिन छुट्टी मांगता रहता है।"


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