दिल तो बच्चा है जी
दिल तो बच्चा है जी
बटन दबाया- गुर्र, दूसरा बटन दबाया- गुर्र, तीसरा बटन दबाया- गुर्र ...... और एम सी बी को उठा दिया। 10 सेकंड के अंदर शांत कमरा सर्वर और ए सी के शोर से भर गया। चलो दुकान तो खोल ली अब थोडा सुबह सुबह कुछ भजन सुन लिए जाये।
“मैं हूँ शरण में तेरी संसार के रचिया- कश्ती मेरी लगा दो उस पार ओ कन्हिया।“ चलते के साथ ऑफिस का वातावरण सांस्कृतिक और अध्यात्मिक हो गया।
जिन्दगी वैसे तो मस्त चल रही है सुबह आकर दुकान खोल लो। 10 बजे चाय, 1 बजे खाना, शाम को 3 बजे चाय और 5 बजे बैग उठा के फुल फ़ास्ट फरार। रोजमर्रा में कोई ख़ास एडवेंचर नहीं बस भगवान कभी मेहेरबानी कर दे और काम ना हो तो फेसबुर यू ट्यूब जिंदाबाद।
दिल्ली के बीचोंबीच उगे इस छोटे से इस दफ्तर में हम दो लोग बैठते थे। मैं और एक भाई साहब जो मुझसे उम्र में 8 साल बड़े थे पर दिखने में मेरे चाचा की उम्र के लगते थे। पेट बहार, टाट की फसल पर पाले की मार, हर वाक्य के बाद गाली हर बार, और ठेठ हरियाणा की बेहूदा सी किलकी हँसी ये कुछ खासियत थी भाई साहब की।
उम्र 30 की हो चली थी पर अभी तक शादी नहीं की थी उन्होंने या कहे हुई नहीं थी या राम जाने। कभी फुर्सत में बैठते तो सुनते किस्से अपने सोनीपत के हिन्दू कॉलेज “तेरे भाई को लड़कियाँ मुड़-मुड़ के देखती थी, कॉलेज में सब जानते थे मुझे, ये - वो “जो की किसी हद तक सही भी रही होगी शायद पर जैसा की होता है कॉलेज लाइफ में कोई ना कोई ऐसा जरुर टकराता है जो जिन्दगी तबाह करने या हमेशा के लिए चुल करने आता है, ऐसी ही घटना भाई साहब के साथ हुई थी।
नाम था प्रियंका गांधी पर उनका राहुल बाबा (कांग्रेस पार्टी) वाले से कोई संबंध नहीं था। भाई साहब के साथ उन्होंने भी बी.टेक की पढ़ाई की थी हिन्दू कॉलेज से ही और भाई साहब उन्हें भाभी बनाने की पूरी फ़िराक में थे। अपने किस्सों में बहुत बार जिक्र करते थे गाँधी ये- गाँधी वो। मेरी जिन्दगी ख़राब कर दी उसने वरना मैं एक नंबर का छोरा था।
आज तक़रीबन 5 साल हो चुके है भाई साहब को कॉलेज छोड़े पर किस्से ऐसे बताते हैं जैसे कल की ही बात हो। कभी दुःख भरे गाने चल रहे होते तो भाई साहब ऐसे सुनते जैसे गाँधी ने उनका दिल निकालकर सड़क पर फेंक दिया हो और उस पर रोड रोलर चला दिया हो। मतलब अगर गाने चलते टाइम आप उनका चेहरा देखे ना तो ऐसा लगेगा जैसे वो पिछले 2 हफ्ते से जंगल (फ्रेश होने) ना गए हो।
इतना दर्द दिखता था चेहरे पर।
उस दिन सुबह मैं आया तो अन्दर की लाइट जल रही थी। ऐसा बहुत कम होता था की भाई साहब मेरे से पहले आ जाये। चलो हो सकता है आज सूरज दक्षिण से निकला हो। अपन ने जाकर बटन दबाना शुरू किया और सर्वर से गुर्र की आवाज़ आनी शुरू हो गयी। सर्वर की आवाज़ सुनकर भाई साहब अंदर आये। चेहरा बड़ा चहक रहा था उस दिन जैसे कटरीना कैफ ने फ्लाइंग किस दी हो। उन्होंने अपना दंत खेड़ा दिखाते हुए मेरा हाथ पकड़ा और बाहर वाले कमरे की तरफ घसीट के-
भाई साहब : आ तेरे को एक चीज़ दिखाऊँ।
मैं : अरे क्या पा गया सुबह-सुबह.?
भाई साहब : अरे तू आ तो।
मैं: आ रहा हूँ सारे सर्वर तो चला दूँ।
भाई साहब : अरे तू आ ना। आज ही सारा काम करेगा क्या..?
अंदर वाले कंप्यूटर पर फेसबुक चल रही थी और मैसेज बॉक्स खुला हुआ था और प्रियंका गाँधी से एक सन्देश आया हुआ था।
“आई रेस्पेक्ट योअर फीलिंगस बट स्टील आई डिडनॉट फोरगेट यू।“
और फिर मैंने ऊपर के भाई साहब द्वारा भेजे सन्देश देखे तो अचंभित रह गया ऑफिस से घर जाने से पहले भाई साहब दूर की भाभी जी को रोज मैसेज करके जाते थे और वे मैसेज कैसे होते थे....... आप भी गौर से देखिये।
“ हाउ आर यू प्रियंका।“
“हाय“
“हैलो डियर”
“रिप्लाई तो कर पर उस दिन भाई साहब के चेहरे पर ख़ुशी देख कर ग़ालिब का वो शेर याद आ गया- “उनके आने से चेहरे पर आ जाती है रौनक और जनाब सोचते हैं- बीमार का हाल अच्छा है।“
कभी कभी लगता है साला ये उम्र वगैरह सब नंबर का खेल होता है पर दिल तो कम्बखत हमेश ही बच्चा रहता है। बाकी अपना तो ये मानना है कि “हाल पूछ बताने में क्या जाता है बस किसी गरीब का मन लग जाता है।“ बाकी सबकी अपनी जिन्दगी है कैसे ही जियो।
पर मुझे अभी भी भरोसा है की कुछ लौंडे होंगे जो रोज सोने से पहले एक सन्देश भेजते होंगे इस उम्मीद में की जब सुबह वो फेसबुक चलाये तो क्या पता कोई संदेशा आये. पर सुबह चुटिया कटता है वो अलग बात है पर जब भी टूटने लगे हौसला तो बाबा रामदेव के तीन अक्षर याद रखना कि-
“करने से होगा।“