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दिल जीतना

दिल जीतना

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अपनी बालकनी में बैठी सुमन चाय की चुस्कियाँ ले रही थी। उसकी नजर सामने रहने वाली अपनी देवरानी के घर पर पड़ी। आँगन में बैठी उसकी देवरानियाँ, श्वेता और रुचि अपनी सखियों के साथ करवा चौथ के व्रत की कथा कर रही थीं। सुमन को तो अपनी लंबी बीमारी के दौरान व्रत छोड़ना पड़ा था। वरना आज वह भी उनके साथ बैठी कथा कर रही होती....

इधर चाय खत्म करके सुमन रात के खाने की तैयारी करने लगी। अचानक बेल की आवाज़ सुनकर उसने दरवाज़ा खोला। सामने श्वेता थाली में मिठाई, फल, सूखे मेवे इत्यादि लिए खड़ी थी। आदरसहित थाली सुमन को पकड़ाकर उसके पैर छूकर बोली, "भाभी, मम्मी-पापा (सास-ससुर ) तो रहे नहीं, अब घर में आप और भैया ही बड़े हैं इसीलिए अब से इन पर आपका ही हक है।"

किसी का दिल जीतने के लिए छोटी-छोटी बातें भी काफी होती हैं। श्वेता की बातों ने सुमन को बहुत प्रभावित किया था सचमुच उसका दिल जीत लिया था। सुमन की आँखें पनिली हो गईं। आगे बढ़कर उसे गले लगाते हुए आशीर्वाद दिया और बोली, "तुमने अपना समझकर जो मान दिया है, मेरे लिए वही काफी है। इन उपहारों की कोई आवश्यकता नहीं।"

श्वेता बोली, "इसे प्रसाद समझकर स्वीकार करो। आपको तो डॉक्टर के कहने पर व्रत छोड़ना पड़ा था, पर प्रसाद तो खाओगी।"

रिश्ता कोई भी, कैसा भी हो, दिल से निभाए रिश्ते ही सर्वोत्तम होते हैं।


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