दागदार
दागदार
सगे -संबंधी सभी जा चुके थे। बचा था तो राख का ढेर। उसके समीप खड़ा एक अधेड़ छोटे से बाँस के टुकड़े के द्वारा गर्म राख के ढ़ेर में से कुछ ढूँढ रहा था।
कर्णफूल ,पायल या बिछुआ... जो कुछ भी हाथ लग जाय। उसकी पारखी नज़रें इस ढेर से कुछ निकाल ही लेगा ऐसा विश्वास था उसे।
तभी सन्नाटे को चीरती एक आवाज गूंज उठी.....
" खाने पीने की दिक्कत नहीं थी ..। मकान, गाड़ी,नौकर,चाकर सब थे उसके पास। फिर भी बेचारी भूख से मर गई!"
"तुम कौन? ऐसा कैसे हो सकता है!? असम्भव !अमीर होकर कोई भूख से मरता है क्या?" अधेड़ ने सरलता से जवाब दिया।
"हाँ , भाई ,विश्वास करो। सब पता है। उसके साथ मैं दिन-रात रहती थी।"
" भूख से मृत्यु ? समझ गया ।देह की भूख, हा.. हा.. हा....।"
"नहींइइइई...... । प्यार की भूख! नजरों के सामने मैंने उसे तड़पकर मरते देखा है । "
" अरे..बताओ, क्या लगते हो उसके? छुपकर क्यों हो? " राख में से माल ढूँढ रहे अधेड़ ने झल्लाकर कहा।
" उसके पति ने उसे सिर्फ भोग्या समझा । पत्नी को कभी पति पर संदेह न हो इसलिए एशो-आराम के सारे सामानों को उसने घर में भर रखा था । नहीं थी तो सिर्फ पत्नी के प्रति वफादारी !
हाँ, अक्सर रात को.. नशे में चूर पति से संपर्क हो जाया करता था। पति हमेशा मनमानी करता,उस पर धौंस दिखाता । इससे बेचारी बहुत दुखी रहती थी।
"बड़ा बिजनेस है मेरा, इसलिए व्यस्त रहता हूँ।" यही कहकर , दिनभर वह घर से बाहर रहता था।
विरोध करने का साहस जुटा पाना पत्नी के लिए संभव नहीं था। क्योंकि घर के नौकर -चाकर अपने मालिक की प्रशंसा करने से नहीं अघाते। विवाह के पहले बड़े भाई ने भी उसे बता दिया था कि , " तेरा होनेवाला पति बहुत इज्जतदार बिजनेसमैन है ।" बेचारी दो सालों से इसी को सच मानकर जीती रही ।
माता-पिता का देहांत पहले हो चुका था इसलिए अमीर लड़के से विवाह हो जाने के कारण भाई के प्रति कृतज्ञता महसूस करना लाजिमी था । पर, कल सुबह , जब पेपर में वह पति का कारनामा ...
' शहर के प्रख्यात ब्यूटीपार्लर में पुलिस ने रामलखन सिंह को संदिग्ध हालत में पकड़ा । ' ...पढ़ी तो सदमे में चली गयी ! इस समाचार ने उसे अंदर तक हिला दिया। तत्क्षण उसका हर्ट एटैक हुआ और वह...इस मायावी दुनिया से चल बसी।
उसे संतान सुख नहीं था। खैर! जो भी हुआ। मैं आज बेहद खुश हूँ।"
"अरे... पागल जैसी बातें क्यों करती हो? अपनों के मरने से कोई खुश होता है क्या ? हिम्मत है तो सामने आओ, अभी तेरा उद्धार कर देता हूँ। मैं इस श्मशान का डोम हूँ। यहाँ सिर्फ मेरी चलती है ।बड़े बड़े मेरे आगे घुटने टेकते हैं । मेरे बिना यहाँ किसी का उद्धार संभव नहीं है। " अहं में चूर वह अधेड़ बड़बड़ाने लगा।
" उसको अपने धोखेबाज पति से मुक्ति मिल गई और मुझे उसके शरीर से। लो ...आ गयी सामने ,उद्धार करो मेरा । मैं उसकी आत्मा , हा..हा..हा....."
अट्टहास करता हुआ एक प्रकाशपुंज ऊपर आकाश में जाकर विलीन हो गया।
प्रकाशपुंज पर नजर पड़ते ही..डोम के हाथ से बाँस छूट गया।सामने राख में लिपटा कुंदन... अब उसे दागदार दिखने लगा ।