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हर डर के आगे जीत है

हर डर के आगे जीत है

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नमस्ते दीदी ! रोज़ की तरह गीता ने घर में घुसते हुए कहा और सीधे किचेन में चली गई। मैंने भी कहा नमस्ते। क्या बात है गीता आज तुम्हें फिर लेट हो गया। आवाज भी कुछ हल्की लग रही है। तबियत तो ठीक है न तुम्हारी ! मैंने पूछा। जी दीदी गीता ने धीरे से कहा और जूठे बर्तन मांजना शुरू कर दिया। टेबल से जूठे गिलास ला कर जब मैं गीता को धोने को देने लगी तो देखा कल मैंने उसे उसकी पसंद की जो दर्जन भर लाल कांच की चूड़ियाँ दिलवाई थी आज उसमें से सिर्फ़ दो-दो चूड़ियां ही दोनों हाथ में बचीं थी। मैंने पूछा गीता क्या हुआ। सही सही बताओ। वह पलटी तो देखा उसके होंठ कटे थे और गाल सूजे हुए थे, जिसे वह अपने आँचल में छुपा रही थी। आँचल हटाया तो मैंने देखा दोनों हाथों पर कई जगह चोट के निशान थे। कई जगह तो सूजन और नीले भी पडे हुए थे। मैंने बोला कल रात फिर उसने तुम्हें मारा ? गीता चुप रही। मैंने बोला तुम सब कुछ चुप चाप क्यों सहती हो। उसे कुछ कहती क्यों नहीं। तुम्हारे तो चार-चार भाई है। सभी आस पास ही रहते हैं। वे कुछ क्यों नहीं करते। अब मेरी बातों से गीता थोड़ा परेशान हो रही थी। उससे अब रहा नहीं गया। बोली माई से कहलिन, माई कहत है अगर मरद का साया ना होई त लोगन का बात करीहे। मारत है किंतु ओकरा रहे से दूसर मरद ग़लत नज़र ना डालिए। तब से हमें किसी से कछुओं नाहीं कहत हाईन।

उसकी बातें सुन कर मैं सकते में आ गई। कितनी अलग सोंच है इनकी। मैंने फिर पूछा - कल क्या हुआ था ? उसने कहा - कल छः नम्बर वाली भाभी और दस नम्बर वाली दीदी से इ माह के पईसा ले गईलीन रही, मुन्नावाँ ओकरे घरे में रहिते पूछ लेल की आटा - चाउर लावे ल कबे जाईंबे ? बस उ हमारे से पईसा माँगे लगल। हमें नहीं देलन त मारे लगल। दीदी उ सब पईसा ले लेत अऊर अड्डे से लुढ़कत अवत, त हमें ई बच्चन के का खिलाइत्त। इसलिए तुम पिट गई और पैसा नहीं दिया, मैंने कहा। वो भी तो रिक्शा चलता है और अच्छा कमा लेता होगा पूरे दिन में। हाँ दीदी ! पर उ त सब खा-पी जावत है, अपन संगी साथीन के साथे। I अगर हमका देत रहत त हमका का ज़रूरत रही जूठे बर्तन माँजे के। तीन छोटे बच्चन के पालन के ख़ातिर कछू तो करे का पड़ी ना दीदी।

गीता के तीन बच्चे है बड़ा ग्यारह साल का, दूसरा नौ और छोटी बेटी सात साल की। जब भी काम पर आती है बेटी को साथ ही लाती है। कहती है झोपड़ी में बिटिया अकेले सुरक्षित नहीं है।

मैंने गीता को दर्द की दवा खिलाई और कुछ दवा चोट पर लगाने को दिया। काम आधे पर ही रुका कर उसे आराम करने को कहा तो उसने कहा ये तो रोज़ का चक्कर है। बिना काम करे कहाँ गुज़रा होई। फिर वह दूसरे घरों में काम करने चली गई।

अब मैं हर दिन उसका हाल-चाल लेती और वह अपनी छोटी छोटी ख़ुशियाँ मुझे सुनाती और कभी अपनी उलझने। उस घटना के बाद अब महीना भर होने को आया था। कभी कभी गीता काम पर अपने तीनो बच्चों के साथ भी आती थी। उसके बच्चे उसे काम में मदद कर देते तो जल्दी घर चली जाती थी। कभी थोड़ी बहुत चोटें गीता के शरीर पर दिख ही जाती थीं। अब मैं भी ज़्यादा नहीं पूछती पर हाँ उसे अपने लिए खड़े होने को प्रेरित ज़रूर करती।

आज जब गीता ने नमस्ते किया तो उसका अन्दाज़ कुछ अलग था सो मुझे पूछना ही पड़ा, क्या बात है गीता, तुम्हें ऐसे बोलते तो पहले कभी नहीं सुना। इस पर उसने कहा, दीदी ! कल रात जो होवल उ पहिले कभियो ना होईल और एक खुली मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई। मैंने कौतुहलवश पूछा क्या हुआ ? वह बोली कल हम बारह नम्बर वाली भाभी और दीदी तुमसे पईसा लिए रहीन। ई बात ओकर पता चल गईल। हमसे पईसा छीने लगिल। हमें ना दीनी त उ डंडा उठावा, हमका मारे के लिए। त बड़का मुन्ना ओकर से डंडा छीन लिएन अऊर अपन बप्पा के डाँटे लगल। त छोटकनो बप्पा के बोले लगन। इसपर उ बच्चन के मारे ख़ातिर आगे बढ़ल। अब हमरा से ना रहल गई। बच्चन के त हम ऊकरा से ना पीटे देबे। त हमें डंडा ले कर, एक डंडा ज़ोर से ओके मार देलन। ऊकरा ज़ोर से चोट लगल। एके डंडा में उ इतना डरले की घरे से भाग गेले। दीदी तुम ठीक कहत रही जब तक हमें डरबे उ हमका डराए, अऊर मारे पीटे। अब जब हमें डंडा उठाई लेन त उहो डर गइल।

गीता की बात सुनकर बड़ा सुकून लगा। साथ ही यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इस तबके की महिलाएँ झूटे सामाजिक सुरक्षा के लिए कितने अत्याचार सहती हैं। इस तबके के पुरुष जो कमाते हैं उसे स्वयं पर ख़र्च कर लेते हैं। इनकी सबसे बड़ी बीमारी होती है नशा, भले ही इनकी प्रकार अलग अलग हो। इनके पत्नी और बच्चें तो कई बार भूखे सोने तक को मजबूर हो जाते हैं और साथ ही मारपीट भी झेलते हैंl इन परिस्थितियों से उबरने के लिए इन घर की महिलाए काम पर निकलना शुरू करतीं है तो इनकी कमाई पर भी उन पुरुषों की आंखें गढ़ जाती हैं। कहते हैं न इन्सान तब तक सहता है जब तक उसकी सीमा है फिर वह अपने आक्रोश को ज़रूर दर्ज करता है। यही गीता के साथ भी हुआ और इस लड़ाई में वह अकेली नहीं थीं, उसके साथ थे उसके बच्चे।


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