घूरती संवेदनायें
घूरती संवेदनायें
"ओह, मुझसे बर्दाश्त नहीं होता बाबा मरकर भी हजारों आँखें मुझे घूर रही हैं, ओह ये मुझे चीटियों की तरह काटती लग रही हैं बचाओ बाबा बचाओ !" मृत आत्मा की आवाज में अजीब-सी चीत्कार थी पिता अजीब सी बैचेनी लिये नींद से जाग उठे ,सपने में हजारों आँखें बेटी के जिस्म को ताकते देख पिता की बेचैनी बढ़ गई "साहब आपने मेरी बच्ची का नाम क्यों सरेआम कर दिया अब लोग उसके प्रति संवेदना दिखाने लगे हैं उसे अपने नाम के संवेदना कभी पसन्द न थी।"
"ये हमने जानबुझ कर नहीं किया है, ये मुहिम है आम लोगों की, तुम्हारी बेटी को इंसाफ दिलाने की, अब देखना सोशल मिडिया दोषी आरोपियों को पकड़ने में कितना सहायक होगा और ये हजारों आँखें दोषी को सजा जरूर दिलवायेगी ।"
"इंसाफ का तो पता नहीं जो बेटी पढ़-लिखकर मेरा नाम रोशन करना चाहती थी उस बेटी के साथ ये कैसा अन्याय, हजारों घूरती आँखों से उसकी आत्मा का हनन मैं सपने में भी देखना नहीं चाहता।" एक बेबस बाप बेटी के साथ न्याय की उम्मीद तो पहले ही खो चुका था।