सम - विषम
सम - विषम
"तृषा बस आती ही होगी कॉलेज से," लड़की की माँ ने लड़के वालों से मुस्कराते हुए कहा, "आप लोग चाय नाश्ता कीजिए।"
लड़के वाले अचानक ही आ गये थे, लड़का और उसकी माता, पिता और बहन।
तभी तृषा की दरवाजे पर आवाज आई, उसके पापा ने आवाज लगाई, "तृषा बेटा ,इधर आइए ।"
तृषा अतिथि गृह में पहुंची, कुछ थकी, अस्त व्यस्त फिर भी आकर्षक।
"हमारी बेटी एम. बी. ए. कर रही है, पहले साल टॉपर रही है, गृहकार्यों में भी दक्ष और सुसंस्कारी है..." पापा ने मुस्कराकर परिचय दिया।
तृषा ने असमंजस भरी आंखों से सबको देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ सबका अभिवादन किया।
लेकिन दूसरे पक्ष की निगाहें जींस -टॉप पहने कंधों तक लंबाई वाले खुले बालों में तृषा पर ही जमीं थीं। उन्होंने आपस में कुछ कानाफूसी की और उठने लगे।
तृषा के पापा ने पूछा, "क्या हुआ, आप लोग अचानक उठ क्यों गये ?अभी तो बातचीत भी नहीं हुई है ठीक से।"
लड़के की माँ ने तल्खी से जवाब दिया, "हमें मॉर्डन नहीं घरेलू लड़की चाहिए भाईसाहब.."
अभी तक सारा मामला समझ चुकी तृषा ने लड़के की बहन जो कैप्री टॉप पहन कर बैठी थी, को देखते हुए कहा, "मैं भी ऐसे लोगों के घर नहीं जाना चाहुंगी, जो दोहरी मानसिकता रखते हैं..नमस्ते..।"
लड़के वालों का गुमान धराशायी हो गया था।