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मुलाकात एक अजनबी के साथ

मुलाकात एक अजनबी के साथ

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काफी देर से स्वधा को बिस्तर पर करवटें बदलते हुए देखकर आखिरकार उसके पति नीलाभ से रहा नहीं गया और उसने स्वधा से उसकी बेचैनी और परेशानी का कारण पूछा।

"कुछ नहीं जी, बस यूँ ही नींद नहीं आ रही।" स्वधा ने बात को टालना चाहा।

"तुम मूर्ख उसे बनाना जो तुम्हें जानता ना हो, समझी।"

"अच्छा, इतना जानते हो मुझे तो बताओ तुम्हें कैसे पता चला कि मैं परेशान हूँ?"

"क्योंकि जब तुम परेशान होती हो, तनाव में होती हो तभी अलमारी से निकल कर तुम्हारी ऊँगली में मेरी आदरणीय सासु माँ की अंगूठी शोभा पाती है जिसे तुम ना जाने कितनी देर से घुमा रही हो।" नीलाभ ने रहस्योद्घाटन करनेवाले अंदाज में कहा।

उसकी बात सुनकर स्वधा की आँखें सहसा नम हो गयी।

"हाँ, सच कहा तुमने। माँ की अंगूठी पहनकर मुश्किल वक्त में मुझे बहुत हिम्मत मिलती है।" स्वधा ने अंगूठी को सहलाते हुए कहा।

"अब बता भी दो क्या परेशानी है। शायद मैं कुछ मदद कर पाऊं। आखिर एकलौती पत्नी हो मेरी।"

नीलाभ ने इस अंदाज में ये बात कही की परेशानी में भी स्वधा खिलखिला उठी।

"दरअसल मेरे दफ्तर में इन दिनों कुछ ठीक नहीं चल रहा। मेरे पिछले तीन प्रोजेक्ट असफल हो गए। बॉस ने कहा है अगर मेरा अगला प्रोजेक्ट सही नहीं गया तो मुझे प्रमोशन की जगह डिमोशन दिया जाएगा।" स्वधा ने निराश आवाज में कहा।

नीलाभ ने स्वधा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "मुझे पूरा भरोसा है तुम पर। आँखें बंद करो और अपने रचनात्मक मन को खुला छोड़ दो। वो खुद तुम्हारे पास ऐसा विषय लाएगा की उस पर काम करके तुम अपनी पिछली सारी असफलताओं को हमेशा के लिए भूल जाओगी।"

उसकी बात मानकर स्वधा ने अपनी आँखें बंद कर ली और धीरे-धीरे ध्यान में डूबने लगी।

स्वधा बच्चों के लिए कार्टून-गीत बनाने वाली एक कंपनी में क्रिएटिव हेड थी। उसके बनाये हुए कई गीत बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुए थे। लेकिन ना जाने क्या हुआ कि कुछ समय से असफलता उसका साथ छोड़ ही नहीं रही थी। उसके बनाये पिछले तीन गीतों को ज्यादा लोगों ने पसंद नहीं किया था।

ध्यान में डूबी हुई स्वधा के अंतर्मन में दो दिन पूर्व घटी हुई एक घटना घूमने लगी जब दफ्तर से निकलने के बाद उसकी गाड़ी ने चलने से इंकार कर दिया तब उसे मजबूरी में घर आने के लिए बस पकड़नी पड़ी। बस में उसकी बगल की सीट पर एक महिला अपने तीन साल के बच्चे के साथ बैठी थी। बच्चा फोन पर अपनी पसंद के कार्टून-गीत सुनने में मगन था।

स्वधा को अपनी तरफ देखते हुए पाकर उस महिला ने कहा, "अरे अब क्या बताऊँ बहन जी, आजकल के बच्चों को ना जाने कैसे फोन की लत लग ही जाती है। बिना थोड़ी देर फोन पर कार्टून देखे ये शांत ही नहीं होता।"

"जी मैं समझ सकती हूँ। पर फिर भी हम सबकी कोशिश यही रहनी चाहिए कि बच्चों को इसकी ज्यादा लत ना लगे।" स्वधा ने समझाने वाले अंदाज में कहा।

उस महिला ने जवाब दिया, "आप सही कह रही है। इसलिए तो मैं सख्ती से थोड़ी देर ही इसे देखने देती हूँ और उस वक्त में भी कोशिश करती हूँ कि ऐसे गीत उसे सुनाऊँ जिससे वो कुछ सीखे। जैसे कि अभी हाल ही में बच्चों को सब्जियों के फायदे बताने वाला वो गीत आया था, "आलू बोला मुझको खा लो..." शायद आपने भी सुना होगा। उसे सुनकर तो सब्जियों से भागने वाला मेरा बेटा भी अब सब्जी खाता है।"

ये सुनकर स्वधा मुस्कुरा उठी और सोचने लगी कि इन गीतों को सुनकर खुश होने वाले बच्चों और उनके माता-पिता को सपने में भी ये ख्याल नहीं आता होगा कि इन्हें बनाने वाले कितने परेशान रहा करते है।

तभी अचानक उस महिला के बच्चे की चीख से स्वधा की तंद्रा भंग हुई।

उस महिला ने अपने बच्चे को संभालते हुए कहा, "वो असल में इसने मकड़ी देख ली थी इसलिए रोने लगा। इसे मकड़ियों से बहुत डरता है। मैं कितना भी समझाती हूँ कि जब तक तुम उन्हें परेशान नहीं करोगे वो कुछ नहीं करेंगी पर ये समझता ही नहीं। बस देखते ही रोने लगता है।"

"कोई बात नहीं, अभी बच्चा है ना।" स्वधा ने इतना ही कहा था कि उस महिला का स्टॉप आ गया और वो उतर कर चली गयी।

अपनी परेशानी में डूबी हुई स्वधा फिर भूल गयी इस बात को।

अभी जब उसे फिर से वो बच्चा और उसका डर याद आया तब उसके रचनात्मक दिमाग ने काम करना शुरू कर दिया। जिस तरह सब्जी वाले गीत का बच्चों पर सकारात्मक असर हुआ अगर मैं उनके इस तरह के डर को दूर करने के लिए कुछ बनाऊँ तो क्या पता सबको पसंद आये।

सोचते हुए सहसा स्वधा मुस्कुरा उठी।

उसे मुस्कुराते हुए देखकर नीलाभ ने कहा, "लगता है हमारी कलाकार के दिमाग में कोई कलात्मक खिचड़ी पकनी शुरु हो गयी है।"

आँखे खोलते हुए स्वधा बोली, "अभी बस दाल-चावल पसंद किए है पतिदेव, खिचड़ी पकनी बाकी है। जिसके लिए फिलहाल मुझे एक अच्छी नींद की जरूरत है।"

"तो चलिए डूब जाइये सुकून की नींद में।" कमरे की बत्ती बंद करते हुए नीलाभ बोला।

अगले दिन दफ्तर में स्वधा का उत्साह देखकर उसकी टीम के सदस्यों के चेहरे पर भी राहत के भाव थे। ईश्वर से प्रार्थना करते हुए सब मिलकर इस नए प्रोजेक्ट के लिए योजना बनाने में लग गए।

आखिरकार बहुत देर की माथापच्ची के बाद स्वधा ने गीत बना ही लिया।

"आओ आओ प्यारे बच्चों

सुनो आज तुम एक कहानी

एक था प्यारा गुड्डा राजा

और थी एक गुड़िया रानी

एक दिन जब वो खेल रहे थे

मजे-मजे में झूल रहे थे

उनको मिल गयी एक मकड़ी

जो अपने जाल में थी उलझी

देखकर उसको वो बहुत डरे

आपस में बोले चलो भाग चले

देखकर ये हालत उनकी

मकड़ी बोली सुनो बात मेरी

नहीं डरो तुम मुझसे बच्चों

मैं तो हूँ तुम्हारी सखी

जो सताते है मुझको

करती हूँ बस मैं उन्हें परेशान

तुम बच्चों को देखकर तो

आती है मेरे चेहरे पर भी मुस्कान

सुनकर बात ये मकड़ी की

गुड्डा-गुड़िया हुए खुश बहुत

उनके मन में जो डर था

अब झटपट वो गया निकल

आओ आओ प्यारे बच्चों

सुनो आज तुम एक कहानी

एक था प्यारा गुड्डा राजा

और थी एक गुड़िया रानी

एक दिन जब वो खेल रहे थे

मजे-मजे में झूल रहे थे

उनको दिख गयी एक छिपकली

तस्वीर के पीछे थी जो छुपी हुई

देखकर उसको वो बहुत डरे

आपस में बोले चलो भाग चलें

देखकर ये हालत उनकी

छिपकली बोली, सुनो बात मेरी

नहीं डरो तुम मुझसे बच्चों

मैं तो हूँ तुम्हारी सखी

खाती हूँ मैं बस वो कीड़े

जो होते तुम्हारे लिए जहरीले

सुनकर बात ये छिपकली की

गुड्डा-गुड़िया हुए खुश बहुत

उनके मन में जो था डर

अब झटपट वो गया निकल

बात उनके ये समझ में आयी

सब पशु-पक्षियों का है एक अलग जीवन

अगर हम नहीं करेंगे उनको तंग

वो बनकर रहेंगे मीत हमारे संग"

स्वधा की टीम में सभी को वो गीत बहुत पसंद आया। अब उस गीत को एक नया रचनात्मक रुप देने में सब जुट गए। गीत के वीडियो में मकड़ी और छिपकली से बातें करते हुए, और अपने डर को भगाते हुए नन्हे-नन्हे बच्चे बहुत ही प्यारे लग रहे थे।

पूरे एक महीने की मेहनत के बाद आखिरकार ये नया गीत आज इंटरनेट पर सभी बच्चों के लिए उपलब्ध हो चुका था।

सबने जैसा सोचा था शुरुआत में वैसी सफलता इस गीत को नहीं मिली। स्वधा एक बार फिर निराशा में घिर चुकी थी। लेकिन कुछ दिन बीतते-बीतते परिणाम उल्टा हो गया। धीरे-धीरे ये गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि अब इंटरनेट पर ये बच्चों के सबसे ज्यादा सुने जाने वाले गीतों की श्रेणी में शामिल हो चुका था।

कुछ दिनों के बाद स्वधा की कंपनी का वार्षिकोत्सव था जिसमें साल के सबसे सफल कर्मियों को सम्मानित किया जाता था।

वार्षिकोत्सव का कार्यक्रम शुरू हो चुका था। सब लोग अपने-अपने परिवार के साथ वहां मौजूद थे। स्वधा भी नीलाभ के साथ आयी थी।

देखते ही देखते साल के सबसे सफल प्रोजेक्ट और सफल टीम की घोषणा का वक्त आ चुका था।

सबकी उम्मीदों के विपरीत इस साल जिसे चुना गया था वो टीम थी स्वधा की और उन्हें ये अवार्ड दिलवाने का श्रेय मिला था उसी मकड़ी वाले नए गीत को।

स्वधा की खुशी का ठिकाना नहीं था। अपनी टीम के साथ जब वो अवार्ड लेने मंच पर पहुँची तब खुशी से उसके कदम लड़खड़ा रहे थे।

अवार्ड लेने के बाद जब दो शब्द बोलने की बारी आयी तब स्वधा ने कहा, "इस अवार्ड ने मेरे अंदर एक नया विश्वास जगाया है। और इस विश्वास को मेरे हाथों में थमाने का श्रेय मैं अपनी टीम के साथ-साथ दो और लोगों को देना चाहूंगी। पहले मेरे पति 'नीलाभ' जिन्होंने मेरे अंर्तमन के दरवाजे खोलकर मुझे एक नयी राह दिखाई और दूसरी वो अजनबी महिला जो मुझे एक दिन बस में मिली थी और उनकी बातों ने मुझे इस गीत को रचने की प्रेरणा दी। उम्मीद करती हूँ उनके बेटे को भी ये गीत पसंद आया होगा और अब वो मकड़ियों से नहीं डरता होगा।"

नीलाभ ने जैसे ही खड़े होकर स्वधा के लिए तालियां बजायी बाकी लोग भी उसका अनुसरण करते हुए उठ खड़े हुए।

उधर उस अजनबी महिला का बेटा और उसके जैसे बहुत से बच्चे स्वधा के रचे गीत को सुनते हुए अब ना सिर्फ अपने डर को भगा चुका था, बल्कि ये भी सीख चुका था कि जानवरों को बेवजह परेशान करने से ही वो हमें परेशान करते है, वरना उनसे अच्छा दोस्त कोई नहीं होता।

कभी-कभी एक अजनबी से हुई मुलाकात भी किस तरह हमारी ज़िंदगी बदल देती है ये सोचते हुए नयी उम्मीदों और नयी योजनाओं के साथ एक बार फिर बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए, खेल-खेल में उन्हें कुछ अच्छा सिखाने के लिए स्वधा अपनी टीम के साथ नये गीतों को रचने में जुट चुकी थी।


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