खुशियों की सौगात
खुशियों की सौगात
परिवार में पिता के शीघ्र गुज़र जाने से बड़ी बेटी होने के नाते मां के साथ अपने चारों-भाइयों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आशा पर आ गई, मां को पेंशन मिलती और उसकी नौकरी के सहारे जीवनयापन आसानी से हुआ।
जिंदगी की विषम-परिस्थितियों में वक्त के तेज-बहाव में उसने भाइयों के विवाह संपन्न कराए, परंतु स्वयं मां के सहारे के लिए किया समझोता और विवाह की उम्र भी रह गई पीछ।
सेवानिवृत्ति के पश्चात उसकी तन्हा जिंदगी में खुशियों की सौगात लिए अशोक का रिश्ता आया, उनकी बेटी को स्वीकार कर, एक मां ने उसका माथा चूमकर स्नेह भरा-प्यार लुटा दिया।