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दिवाली के बाद की दिल्ली

दिवाली के बाद की दिल्ली

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कल दिल्ली पहूँचा, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से लेकर कमरे तक फैले आवरण पर कल तनिक भी ध्यान नहीं गया, पहले देखा तो सोचा ओस के कण होंगे, परन्तु आज सुबह जगा...। कॉलेज जाने की तैयारी की, तैयार होकर प्रतिदिन की तरह कॉलेज निकल लिया| आज वातावरण का आलम कुछ अलग ही था। आज से सात दिन पहले जब कॉलेज गया था तो दृष्टि बाधित नहीं हुयी थी, सब कुछ स्वच्छ और जैसा दिखना चाहिए वैसा दिख रहा था परन्तु आज सात दिन बाद वही पथ नज़र नहीं आ रहा था जिस पर हम प्रतिदिन जाया करते थे| 

अन्तत: बस स्टैंड तक पहूँचा बस में सवार हुआ और चल दिया। सब कुछ सामान्य होकर असामान्य था। जब डीएनडी पर बस ने सरपट दौड़ लगाना शुरू किया तो आँखों में कड़वाहट महसूस होने लगी और तब मेरा ध्यान अपने आस-पास फैले ओस-नुमा वातावरण पर गहरा गया| ध्यान दिया तो पाया कि ये ओस-कण, ओस कण नहीं अपितु ये दिवाली से लेकर अब छोड़े गये पटाकों के धुँए का असर है| 

अपने छोटे से जीवन काल में पहली बार वातावरण का प्रदूषण इस कदर महसूस हुआ| पहले तो मुझे लगा कि दिल्ली के कुछ हिस्सों में ही होगा परन्तु ऐसा नहीं था| आज नोएडा से दिल्ली गया, दिल्ली से नोएडा फिर किसी कार्यवश आना हुआ उसके उपरान्त नोएडा से पुन: धौलाकुआँ ए.आर.एस.डी कॉलेज गया, वहाँ से पीतमपुरा, पीतमपूरा से सुभाष प्लेस फिर सुभाष प्लेस से जनकपूरी से होते हुये नोएडा वापस| सब जगह एक से ही हालात दिखे| सब जगह वो धुँधली-धुँधली सी परत नज़र आती रही| और हाँ, आज लक्ष्मीनगर से चलकर सराय कालेखाँ जाने वाले प्रमुख राजमार्ग से अक्षरधाम दिख ही नहीं रहा था जो कि डीएनडी से भी दिखाई देता है|

जब से ये दृश्य ध्यान में आया तब से सोच रहा हूँ जब हम मनुष्यों का ये हाल है तो अन्य पशु-पक्षियों का क्या हाल होता होगा। कहाँ से आती होगी उनमें ऊर्जा इस प्रदूषण से बचने की| दोस्तों! अब कुछ न कहना है हमें, हो सके तो आप भी एक बार इस समय दिल्ली घूमिये इस दृश्य को देखिये, महसूस कीजिए और हो सके तो पर्यावरण को दूषित होने से बचाइए| हमारे एक-एक कदम साथ चलने से काफिला बन सकता हैै।


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