शहीद (अंतिम क़िस्त )
शहीद (अंतिम क़िस्त )
(छोड़ दो उसे लड़की ने लगभग चिल्लाते हुए कहा ) .....गतांक से आगे
उसकी आवाज में जाने कैसी कशिश थी कि मेरे कदम ठिठक कर रूक गये। उस बदमाश के लिये इतना मौका काफी था। पलक झपकते वह मेरी पहुंच से दूर निकल गया। मैने उस लड़की की ओर लौटते हुए तेज स्वर में पूछा "आपने उसे जाने क्यों दिया ?"
"इंग्लैंड में नये आये हो ?" उस लड़की ने उत्तर देने के बजाय प्रति प्रश्न किया ।
"हां।"
"तभी" वह हल्का सा मुस्करायी फिर बोली, "ये अंग्रेज आज भी अपनी सामन्ती विचारधारा से मुक्त नहीं हो पाये हैं। कालों की तरक्की इनसे बरदाश्त नहीं हो पाती है। प्रतिभा की दौड़ में आज ये हमसे पिछड़ने लगे हैं तो अराजकता पर उतर आये हैं। बाहरी लोंगों के इलाकों में दंगा करना और उनसे लूटपाट करना अब आम बात होती जा रही है। यहां की पुलिस पर संप्रदायिकता का आरोप तो नहीं लगाया जा सकता किन्तु फिर भी उनकी स्वाभाविक सहानभूति अंग्रेजों के साथ ही रहती है। सभी के दिमाग में यह मानसिकता भर गयी है कि बाहर से आकर हम लोग इनकी समृद्वि को लूटे डाल रहे हैं।"
मुझे उस लड़की की बातों में अपनेपन की झलक मिली। मैने उसे गौर से देखते हुए पूछा, "तुम भी इंडियन हो।"
"एक्स - इंडियन।"
"क्या मतलब ?"
"मतलब पाकिस्तानी हूं" लड़की ने बताया ।
यह सुन मेरा चेहरा उतर गया। वह मेरे मनोभावों को भांप गयी थी अतः गंभीर स्वर में बोली, " यहां पर हम हिन्दुस्तानी - पाकिस्तानी नहीं बल्कि सिर्फ एशियन हैं। अंग्रेजो की दृष्टि में दोनों में कोई अंतर नहीं है। दोनों ही उनके भूतपूर्व गुलाम हैं जिन्हें मजबूरी में आजादी देनी पड़ी थी। वे आज भी हमें जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। इसलिये जितने भी दिन यहां रहना इस बात का ध्यान रखना कि अपनी काबलियत से इन्हें पराजित कर हमें अपनी गुलामी के कलंक को धोना है ।"
'तुम ठीक कहती हो" मैंने मुस्कराते हुए सहमति जतायी।
"शाहीन नाम है मेरा। कैंब्रिज युनिर्वसटी से ग्रेजुऐशन कर रही हूं " उस लड़की ने अपना हाथ आगे बढ़ाया ।
"दीपक कुमार सिंह, दो दिन पहले मैने भी वहीं पर एम.बी.ए. में एडमीशन लिया है" मैने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया।
"फिर तो हमारी दोस्ती पक्की। उपर वाले ने चाहा तो हमारी खूब निभेगी" शाहीन ने गर्मजोशी से मेरा हाथ थाम लिया।
उस अनजान देश में शाहीन जैसा दोस्त पाकर मैं बहुत खुश था। उसके पापा का पाकिस्तान में इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस था। उसकी मां की काफी पहले मृत्यु हो गयी थी और पापा काफी व्यस्त रहते थे इसलिये वो यहां पर अपनी मौसी के पास रह रही थी। उनसे मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा।
शाहीन के मौसा-मौसी से मैं जल्दी ही घुल-मिल गया और अक्सर साप्ताहांत उनके साथ ही बिताने लगा। शाहीन की तरह वे लोग भी काफी खुले विचारों वाले थे और मुझे काफी पसन्द करते थे। सबसे अच्छी बात तो यह थी कि यहां पर ज्यादातर हिंदुस्तानी-पाकिस्तानी आपस का बैर भाव भुला कर मिल-जुल कर रहते थे । ईद हो या होली-दीवाली सारे त्योहार साथ-साथ मनाये जाते थे। आजादी देते समय अंग्रेज विभाजन की जो कृत्रिम सीमा-रेखा खींच गये थे उसका यहां पर प्रभाव न के बराबर था ।
शाहीन बहुत अच्छी लड़की थी। हमारी और उसकी विचारधारा बिल्कुल एक जैसी थी। किसी भी चीज को देखने का हमारा और उसका नजरिया बिल्कुल एक जैसा ही होता था। ऐसा लगता था जैसे कुदरत ने हम दोनों को एक-दूसरे के लिये ही बनाया है। हमारी और उसकी दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गयी। साल बीतते - बीतते हमने शादी करने का फैसला कर लिया। हमें विश्वाश था कि शाहीन के मौसी-मौसा इस रिश्ते से बहुत खुश होंगें और वे उसके पापा को इस शादी के लिये राजी कर लेगें किन्तु यह हमारा भ्रम निकला।
"तुम्हारी यह सोचने की हिम्मत कैसे हुई कि कोई गैरतमंद पाकिस्तानी तुम हिंदुस्तानी काफिरों से अपनी रिश्तेदारी जोड़ सकता है ?‘‘ शाहीन के मौसा हमारी बात सुन बुरी तरह भड़क उठे थे।
अंकल, यह आप कैसी बातें कर रहे हैं ? इंग्लैंड में तो सारे हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी आपस का बैर भुला कर साथ-साथ रहते हैं‘‘ मैं आश्चर्य से भर उठा ।
'अगर साथ-साथ नहीं रहेगें तो मारे जायेंगे । इसलिये तुम सबको झेलना मजबूरी है' मौसा जी ने कटु सत्य से पर्दा उठाया ।
इस मजबूरी का यह मतलब तो नहीं कि हम अपनी बेटी तुम्हें दे देंगे, शाहीन की मौसी ने भी पति की बातों का समर्थन किया ।
आंटी, क्या फर्क है हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी में। दोनों का खून एक जैसा ही होता है । दोनों की जमीन एक है, नदियां एक है, हवा-पानी और रहन-सहन सब कुछ एक है। अगर अंग्रेजो ने जबरदस्ती बंटवारा न करवा दिया होता तो आज हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी जैसे शब्द ही न होते। हम सब एक होते, शाहीन ने समझाने की कोशिश की।
तुम चुप रहो। अभी अच्छा-बुरा समझने की तुम्हारी उम्र नहीं है, मौसा जी ने शाहीन को डपटा ।
हम दोनों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ रहा । उस दिन के बाद से मेरे और शाहीन के मिलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। मेरे घरवाले काफी प्रगतिशील विचारों के थे । मुझे विश्वाश था कि वे मेरा साथ जरूर देंगें किंतु मैं यहां भी गलत था।
डैडी ने फोन पर साफ कह दिया,’’हम फौजी हैं । हम लोग जात-पांत में विश्वाश नहीं रखते । हमारा धर्म, हमारा मजहब सब कुछ हमारा देष ही है इसलिये अपने जीते जी में दुश्मन की बेटी को अपने घर में घुसने की इजाजत नहीं दे सकता ।‘‘
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’कैसा दुश्मन ? शाहीन के पापा लाहौर के रहने वाले हैं और आपका बचपन भी वहीं बीता था। हो सकता है कि आप दोनों एक ही मोहल्ले में खेले हों, एक ही कालेज में पढ़ें हों" मैने तर्क दिया ।
जरूर हो सकता है ‘‘पापा का स्वर पल भर के लिये गंभीर हुआ फिर वे तल्ख स्वर में बोले,’’ ये भी हो सकता है कि उसने या उसके घर वालों ने ही तेरी बुआ का कत्ल किया हो। क्या तू नहीं जानता कि लाहौर में हम लोगों पर क्या-क्या जुल्म हुए थे? तू भले भूल जाये मगर मैं कैसे भूल जाउं कि उन लोगों ने हमारे साथ जो दुश्मनी अदा की थी उससे हैवानियत भी शर्मा गयी होगी।
डैडी, वे सब पुरानी बातें हैं । क्या उसे भुला कर हम नया इतिहास नहीं रच सकते ?‘‘ मैने समझाने की कोशिश की ।
"इतिहास रचा जा चुका है। हिंदुस्तान - पाकिस्तिान का बंटवारा पत्थर की लकीर है जिसे अब कोई नहीं मिटा सकता । अगर तुमने ये कोशिश की तो खुद मिट जाओगे। ‘‘डैडी ने कहा और फोन काट दिया।
गुपचुप कोर्ट मैरिज के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। मजबूरन हमने वही किया। शाहीन के मौसा-मौसी को जब पता चला तो उन्होने बहुत हंगामा किया किन्तु कुछ कर न सके। हम दोनों बालिग थे और अपनी मर्जी की शादी करने के लिये स्वतंत्र थे। मौसा जी ने उसी दिन शाहीन के पापा को फोन पर खबर की तो वे यह सदमा बर्दाश्त न कर सके और उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। बहुत मुश्किलों से उनकी जान बचायी जा सकी। यह बात हमें काफी बाद में पता चली थी।
अपनी दुनिया में हम दोनों बहुत खुश थे। शाहीन ने तय किया था कि छुट्टियों में पाकस्तिान चल कर हम लोग उसके पापा को मना लेगें। मैने वीजा के लिये आवेदन भेज दिया था। मुझे विश्वाश था कि वह जल्द ही मिल जायेगा।
एक दिन शाहीन ने बताया कि वह मां बनने वाली है तो मैं ख़ुशी से झूम उठा। मेरे चौड़े सीने पर सिर रखते हुए उसने कहा,’’दीपक, जानते हो अगर मेरा बेटा हुआ तो मैं उसका नाम शाहदीप रखूंगी ।‘‘
’’ऐसा नाम तो किसी का नहीं होता‘‘ मैन टोका।
लेकिन मेरे बेटे का होगा । शाहीन और दीपक का सम्मिलित रूप शाहदीप। इस नाम का दुनिया में केवल हमारा ही बेटा होगा। जो भी ये नाम सुनेगा जान जायेगा कि वो हमारा बेटा है, शाहीन मुस्करायी ।
कितनी निश्छल मुस्कराहट थी शाहीन की लेकिन वह ज्यादा दिनों तक मेरे साथ नहीं रह पायी। एक बार मैं दो दिनों के लिये बाहर गया हुआ था। मेरी अनुपस्थित में उसके पापा आये और जबरदस्ती उसे पाकिस्तिान लिवा ले गये। वह मेरे लिये एक छोटा सा पत्र छोड़ गयी थी जिसमें लिखा था ’हमारी शादी की खबर सुन पापा को हार्ट अटैक हो गया था। वे बहुत कमजोर हो गये हैं। उन्होने धमकी दी है कि अगर मैं तुम्हारे साथ रही तो वे जहर खा लेगें। मैं जानती हूं वह बहुत जिद्दी हैं। मैं उनकी मौत की गुनहगार बन कर अपनी दुनिया नहीं बसाना चाहती इसलिये उनके साथ जा रही हूं। लेकिन मैं तुम्हारी हूं और सदा तुम्हारी ही रहूंगी। अगर हो सके तो मुझे माफ कर देना ।‘
इस घटना ने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया था। मैं पागलों की तरह पाकस्तिान का वीजा पाने के लिये दौड़ लगाने लगा किन्तु यह इतना आसान न था। बंटवारे ने दोनों देशों के बीच इतनी उंची दीवार खड़ी कर दी थी जिसे लांघ पाने में मुझे कई महीने लग गये। लाहौर पहुंचने पर पता चला कि शाहीन के पापा अपनी सारी जायदाद बेच कर कहीं चले गये हैं। मैने काफी कोशिश की लेकिन शाहीन का पता नहीं लगा पाया।
मेरा मन उचट गया था। अतः इंग्लैंड न जाकर भारत लौट आया। एम.बी.ए. तो मैं केवल डैडी का मन रखने के लिये कर रहा था वरना बचपन से मेरा सपना भी अपने पूर्वजों की भांति फौज में भर्ती होने का था। मैनें वही किया। धीरे-धीरे 28 वर्ष बीत गये ।
शाहीन को मैं कभी भूला नहीं सका। मैनें उससे सच्चा प्यार किया था किन्तु यह कोई गुनाह न था। यदि दुनिया की नजरों में यह गुनाह था तो क्या इतना बड़ा गुनाह था कि मेरे समाने मेरे ही बेटे को दुश्मन के रूप में खड़ा कर दिया जाये ? शीरी - फरहाद रहे हों या लैला-मजनूं, सोहनी-महिवाल रहे हों या हीर-रांझा ये दुनिया हमेशा से सच्चे प्रेमियों की दुश्मन रही है। उन्हें उनके गुनाह की सजा देती रही है किन्तु इतनी बड़ी सजा ? इतना बड़ा अभिशाप ? ऐसा क्रूर मजाक ?
मेरे अंदर की बेचैनी हर पल बढ़ती जा रही थी। मैनें उठ कर कमरे की खिड़कियां खोल दीं। ठंढी हवा के झोंके भीतर आ गये किन्तु उनसे मेरे मन के अंदर उठ रही अग्नि को शांति नहीं मिली । मैनें घड़ी की ओर देखा। रात के दो बज गये थे। चारों ओर निस्तब्ता छायी हुयी थी। पूरी दुनिया शांति से सो रही थी किन्तु मेरे अंदर हाहाकार मचा हुआ था । मेरा बेटा मेरी ही कैद में था और मैं अभी तक उसकी कोई मदद नहीं कर पाया था। मुझसे बेबस बाप इस दुनिया में और कोई न होगा ।
बेचैनी जब हद से ज्यादा बढ़ने लगी तो मैं बाहर निकल आया। अनायास ही मेरे कदम बैरक नम्बर 4 की ओर बढ़ गये। वहां मेरे जिगर का टुकड़ा मेरी ही तरह तड़प रहा होगा। मन का एक कोना वहां जाने से रोक रहा था किन्तु दूसरा कोना उधर खींचे लिये जा रहा था। मेरे दिल की धड़कनों की गति काफी तेज हो गयी थी। उसी के साथ कदमों की गति भी तेज होती जा रही थी। मुझे इस बात का एहसास भी न था कि इतनी रात मुझे अकेले एक पाकस्तानी की बैरक की ओर जाते देख कोई क्या सोचेगा। किन्तु इस समय अपने उपर मेरा कोई नियंत्रण नहीं बचा था। मैं स्वयं नहीं जानता था कि मैं क्या करने जा रहा हूं ।
शाहदीप की बैरक के बाहर सींखचों के पास बैठा पहरेदार आराम से सो रहा था। मैं दबे पांव उसके करीब पहुंचा किन्तु उसकी गर्दन पर दृष्टि पड़ते ही बुरी तरह चैंक पड़ा। उस पर उंगलियों के नीले निशान उभरे हुये थे। मैनें उसकी नब्ज को टटोला। वो चल रही थी। इसका मतलब वह सिर्फ बेहोश हुआ है ।
किसने किया होगा यह ? पल भर के लिये मेरे मस्तिष्क में प्रश्न चिन्ह सा उभरा किंतु अगले ही पल वहां खतरे की घंटियां बज उठीं । निश्चय ही शाहदीप ने अपनी सौगन्ध पूरी करने की कोशिश की है। मैने बैरक के भीतर झांका किन्तु शाहदीप वहां नहीं था।
'कैदी भाग गया । कैदी भाग गया ‘‘ मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया । रात के सन्नाटें में मेरी आवाज दूर तक गूंज गयीं ।
मैने पहरेदार की जेब से चाभी निकाल कर फुर्ती से बैरक का दरवाजा खोला । भीतर घुसते ही मैं चौंक पड़ा। बैरक के रौशनदान की सलाखें कटी हुयी थीं और शाहदीप उससे बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था किन्तु रौशनदान छोटा होने के कारण उसे परेशानी हो रही थी ।
"शाहदीप, रूक जाओ ‘‘ मैं पूरी ताकत से चीख पड़ा ।
शाहदीप पर कोई असर नहीं पड़ा । उसका एक कंधा रौशनदान के बाहर निकल चुका था । समय बहुत कम था । अगर एक बार वह रौशनदान से बाहर निकल गया तो रात के अंधेरे में उसे पकड़ पाना मुश्किल होगा। मेरे जबड़े सख्ती से भिंच गये। मैंने अपना रिवाल्वर निकाल कर शाहदीप के उपर तान दिया और सर्द स्वर में बोला,’’ शाहदीप, अगर तुम नहीं रूके तो मैं गोली मार दूंगा ।‘‘
मेरे स्वर की सख्ती को शायद शाहदीप ने भांप लिया था। अपने धड़ को पीछे खिसका सिर निकाल कर उसने कहर भरी दृष्टि से मेरी ओर देखा। अगले ही पल उसका दांया हाथ सामने आया। उसमें नन्हा सा रिवाल्वर दबा हुआ था। उसे मेरी ओर तानते हुये वह गुर्राया, ’’ब्रिगेडियर दीपक कुमार सिंह, वापस लौट जाईये वरना मैं अपने रास्ते में आने वाली हर दीवार को गिरा दूंगा चाहे वो कितनी ही मजबूत क्यों न हो ।‘‘
इस बीच कैप्टन बोस और कई सैनिक दौड़ कर वहां आ गये थे । इससे पहले कि वे बैरक के भीतर घुस पाते शाहदीप दहाड़ उठा,’’तुम्हारा ब्रिगेडियर मेरे निशाने पर है। अगर किसी ने भी भीतर घुसने की कोशिश की तो मैं इसे गोली मार दूंगा ।‘‘
आगे बढ़ते कदम ठिठक कर रूक गये। बड़ी विचित्र स्थित उत्पन्न हो गयी थी । मैं शाहदीप के उपर रिवाल्वर ताने हुए था और वह बांये हाथ से रौशनदान को थामे दांये हाथ से मेरे उपर रिवाल्वर ताने हुये था। दोनों एक-दूसरे के निशाने पर थे ।
’’लेफटीनेन्ट, तुम यहां से भाग नहीं सकते‘‘ मैं गुर्राया ।
"और तुम मुझे पकड़ नहीं सकते‘‘ शाहदीप ने अपना रिवाल्वर मेरी ओर लहराया ।
कई पल इसी तरह बीत गये । मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं। जिस दावानल से मैं गुजर चुका था क्या वो कम था जो कुदरत ने मुझे इस अग्नि परीक्षा में डाल दिया था ।
शाहदीप का भी सब्र शायद समाप्त होता जा रहा था। उसने कहर भरे स्वर में कहा,"ब्रिगेडियर, तुम्हारे कारण ही मेरे मिशन में बाधा पड़ी है। मैं आखरी बार कह रहा हूं कि वापस लौट जाओ वरना मैं गोली मार दूंगा ।‘‘
मेरे वापस लौटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था । उधर शाहदीप भी जिस स्थित में लटका हुआ था उसमें ज्यादा देर नहीं रहा जा सकता था। जाने क्या सोच कर उसने एक बार फिर अपने शरीर को रौशनदान की तरफ बढ़ाने की कोशिश की ।
"धांय.....धांय...." मेरे रिवाल्वर से दो गोलियां निकलीं । शाहदीप की पीठ इस समय मेरी ओर थी, दोनों ही गोलियां उसकी पीठ में समा गयीं। वह कटे हुये पक्षी की तरह नीचे गिर पड़ा और तड़पने लगा ।
मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ। अपना रिवाल्वर फेंक मैं उसकी ओर दौड़ पड़ा और उसका सिर अपने हाथों में ले बुरी तरह फफक पड़ा,’’ शाहदीप, मेरे बेटे, मुझे माफ कर दो।‘‘
कैप्टन बोस दूसरे सैनिकों के साथ इस बीच भीतर घुस आये थे । मुझे इस तरह रोता देख वे चौंक पड़े,’’सर, ये आप क्या कह रहे हैं ?‘‘
"कैप्टन, तुम तो जानते ही हो कि मेरी शादी एक पाकिस्तानी लड़की से हुयी थी। ये मेरा बेटा है । मैं इसके निशाने पर था अगर यह चाहता तो पहले गोली चला सकता था लेकिन इसने ऐसा नहीं किया" इतना कह कर मैंने शाहदीप के सिर को झिंझोड़ते हुए पूछा,’’बता तूने मुझे गोली क्यों नहीं मारी ? बता तूने ऐसा क्यूं किया ?‘‘
शाहदीप के होठों पर एक दर्द भरी मुस्कान तैर गयी । उसने कांपते स्वर में कहा,’’डैडी, जन्मदाता के लिये त्याग करने का अधिकार सिर्फ हिंदुस्तान के राम को ही नहीं है। हम पाकस्तानियों का भी इस पर बराबर का हक है ।"
शाहदीप ने एक बार फिर मुझे बहुत छोटा साबित कर दिया था। मैं उसे अपने सीने से लगा कर बुरी तरह फफक पड़ा ।
"डैडी, मुझे पीठ में गोलियां लगी हैं । सुना है कि पीठ में गोली खाने वाले कायर होते हैं‘‘ शाहदीप ने हिचकी भरी।
’’कौन कहता है कि तू कायर है’’ मैनें उसका माथा चूम उसके चेहरे को अपने आसुंओ से भिगोते हुए कहा,’’कायर तो मैं हूं जिसने अपनी जान बचाने के लिये अपने बेटे पर गोली चलायी है । ‘‘
’’आपने तो वीरता की मिसाल कायम की है ’’ शाहदीप ने अपने खून से सने कांपते हाथों से मेरे आसुंओ को पोंछा फिर मेरे हाथों को थाम हिचकी भरते हुए बोला,’’डैडी, मुझे आपकी वीरता पर गर्व है। जीते जी तो मैं आपकी गोद में न खेल सका किन्तु अंतिम समय मेरी यह इच्छा पूरी हो गयी। अब मुझे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है ।‘‘
इसी के साथ शाहदीप ने एक जोर की हिचकी ली और उसका सिर एक ओर लुढक गया। मेरे हाथ में थमा उसका हाथ फिसल गया और इसी के साथ उसकी उंगली में दबी अंगूठी मेरे हाथों में आ गयी। उस अंगूठी पर दृष्टि पड़ते ही मैं एक बार फिर चौंक पड़ा। उसमें भी एक नन्हा सा कैमरा फिट था । इसका मतलब उसने एक साथ दो कैमरों से वीडियोग्राफी की थी। एक कैमरा हमें देकर उसने अपने एक फर्ज की पूर्ति की थी और अब दूसरा कैमरा लेकर अपने दूसरे फर्ज की पूर्ति करने जा रहा था। किन्तु मेरे कारण वह अपना फर्ज पूरा नहीं कर सका था। मुझसे अभागा बाप और कोई नहीं हो सकता था।
शाहदीप के निश्चेत शरीर से लिपट कर मैं विलाप कर उठा। अपने आसुंओ से उसे भिगोकर मैं अपना प्रयाश्चित करना चाहता था। तभी कैप्टन बोस ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,’’सर, आसूं बहाकर शहीद की आत्मा का अपमान मत करिये ।‘‘
मैने आसुंओ भरी दृष्टि से कैप्टन बोस की ओर देखा फिरे भर्राये स्वर में पूछा,’’कैप्टन, क्या तुम मेरे बेटे को शहीद मानते हो ?‘‘
’’हां सर, न भूतो न भविष्यते । ऐसी शहादत न तो पहले कभी किसी ने दी थी और न ही देगा । एक वीर के बेटे ने अपने बाप से भी बढ़ कर वीरता दिखायी है। इसका जितना भी सम्मान किया जाये वो कम है’’ इतना कह कर कैप्टन बोस ने शाहदीप के पार्थिव शरीर को सलाम किया फिर पीछे मुड़ कर अपने सैनिकों को इशारा किया ।
वे सब पंक्तिबद्व तरीके से खड़े हो कर आसमान में गोली बरसाने लगे। पाकस्तानी लेफेटीनेन्ट को 101 गोलियों की सलामी देने के बाद ही हिंदुस्तानी रायफलें शांत हुई । दुनिया में आज तक किसी भी शहीद को इतना बड़ा सम्मान प्राप्त नहीं हुआ होगा ।
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