बचपन याद आया
बचपन याद आया
वो पटाखों को लेकर घर में ऐसा दौड़ रहा था जैसे कोई राष्ट्रप्रेमी तिरंगा लेकर दौड़ता हो। घर में सभी की नज़र उसी पर टिकी हुई थी नन्हे नन्हे कदमों की रफ़्तार जंगल के खरगोश की याद दिला रही थी, आगे एक नुकीला पत्थर था जो त्रिकोण आकार लिए हुए, मेज पर रखे कुछ आवश्यक दस्तावेजो पर रखा हुआ उन्हें उड़ने से बचाने के लिए समर्थन दे रहा था, लव्यांश ने मेज को इस तरह से हिलाया की वो आकर्षक तिकोना पत्थर सीधे लव्यांश के दाहिने पैर से होते हुए ऊपर आ गया आह माँ (एक बहुत ही हृदय द्रवित करने वाला स्वर ) सबका ध्यान फिर से लव्यांश की चीख ने अपनी ओर कर लिया था। माँ घबरायी हुई -"ओह मेरा बच्चा ये कैसे और क्या हो गया कितना खून बह रहा है", छत से पड़ोसी डॉक्टर को बुलाया तुरन्त डॉक्टर मेहता ने नुकीले पत्थर को निकाला और उसका इलाज किया, कुछ दिनों बाद जब वो ठीक हुआ फिर से अपनी मस्ती के तरानों में खोने लगा उसकी आवाज़ तुतलाती हुई बहुत ही मधुर प्रतीत होती थी। जब वो अपनी आवाज़ में गाना सुनाता हम ठहाके लगा लगाकर जोरदार हँसते वो गाता था (तुतलाते हुए बनावटी मिजाज़ के साथ) दाता लहे मेला दिल तू ही मेली मंदिल हाय तहि बीते न ये लाते तही बीते न ये डिन ...बहुत अत्ता दाते हो तुम बेता एतेही दाते लेहना और जोर जोर से हम हँसने लगे।
अब नी दाउंगा तुम थव हछते हो मेले ऊपल खिसियाते हुए लव्यांश ने कहा।
नहीं बेटा हम तुम में हमारा बचपन देख रहे थे तुम्हारा यूं जमकर खिलखिलाने का अंदाज़, तुम्हारी हठी आदतें , तुम्हारे खुद में उलझे प्रश्न ,तुम्हारी मीठी मीठी बातें, तुम्हारी दोस्तों की टोली तुम्हारी आँख मिचौली, तुम्हारी आँखों का टिमटिमाना जैसे आकाश के सितारों को भी चुनौती देने जैसा है तुम्हारे घुँघराले काले बाल जैसे .....(कुछ सोचते हुए )जैसे मकड़ी का हो जाल और ऐसा कह कर माँ फिर से खिलखिलाने लगी।
तो मेले छिल पल मतली बैठी? लव्यांश ने चिंतित मुद्रा में पूछा।
"हाय ! तू कितना प्यारा है भला तेरे सिर पर मकड़ी क्यों जाला बनाएगी।"
"सच बताऊं तुझे देखती हूं तो मेरा बचपन याद आता है खो जाती हूँ मैं जब खुद को तुझ में पाती हूँ ए नन्हे शहजादे तू इतना ही रह न तेरे बचपन में कुछ दिन तो सैर हमें करने दे न", सिर पर हाथ फेर कर माँ बलैया लेती है इतने में फैमिली फ़ोटो के लिए कैमरे वाला आ जाता है।