भरत और कबाड़ वाला
भरत और कबाड़ वाला
एक नगर में भरत नाम का बच्चा रहता था उसके घर के पास से रोज एक कबाड़ वाला आता था एक दिन भरत अपनी माँ से ये बोलता माँ मुझको दस रुपए दे दो कुछ लेकर आना है गुस्से में उसकी माँ बोलती नहीं है जा यहां से
एक दिन गुस्से में वह अपने पापा की कीमती बुक कबाड़ वाले को बेच देता उसको कबाड़ वाले से सौ रुपए मिलते भरत ये देखकर काफी खुश होता रात होने पर भरत के पापा घर आते और बोलते मेरी किताब लेकर आओ मुझको पढ़नी है भरत की माँ को वह किताब नहीं मिलती।
भरत ये बोलता मैंने तो वो किताब बेच दी गुस्से में वह भरत को दो फटकार लगाते।
भरत की माँ से बोलते कल कबाड़ वाला आए उस से कल वो किताब वापस लेना क्योंकि वो किताब 1000 से कम नहीं थी और अभी अभी ली थी तुमने भरत को पैसे क्यों नहीं दिए तुम्हारी भी गलती है ।
अगले दिन वो कबाड़ वाला आता और भरत की माँ बोलती वो किताब वापस दो जो कल तुमको बेची थी वो कबाड़ वाला बोला वह तो बिक गई एक आदमी आया था उसको वह किताब अच्छी लगी और मुझको 1000 रुपए दिए।
ये लो 500 रुपए अब मै वापस नहीं मांँग सकता और वो आदमी कहा गया मुझको नहीं पता । भरत की माँ किताबों की दुकान से अलग किताब लेकर आ जाती रात होते ही भरत के पापा आते भरत के पापा -मेरी किताब ले ली वापस भरत की माँ -नहीं लेकिन जब वह नई किताब पढ़ते इतनी बढ़िया लगती तुम तो इतनी अच्छी किताब लाई हो मेरे दिल को छू गई। भरत और माँ ये देख कर खुश हो गया।