पागल नहीं थी वो ...
पागल नहीं थी वो ...
बाँझ
कुलटा
गिरी हुई
मनोरोगी
पागल
क्या कुछ नहीं कहा गया उसे
जो थी अपने कॉलेज की सबसे ख़ूबसूरत, चंचल, प्यारी, शोख़ हर दिल अज़ीज
भरतनाट्यम् नर्तकी.
जिसे अब कहते थे पागल
कहते - तुम पर हाबी है उन्माद
तुम सामान्य नहीं
पागल हो पागल
कहती - नहीं! नहीं हूँ मैं पागल
देखो देखो - कैसे उत्तेजित हो रही हो तुम
उत्तेजना में पागल ही बोलता है.
वह रोती
गिङगिङाती
सिर्फ़ एक बार सुन लो मेरी बात
एक बार सुन लो जो कहना चाहती हूँ.
समझने की कोशिश तो करो
डाक्टरों ने भी मान लिया पागल है
छुप छुप कर
दीवारों से करने लगी बातें
लिखने लगी डायरी
जिसमें सबसे पहले पन्ने पर लिखा
कैसे हुआ प्यार
पहला प्यार
कैसे कहा उसके प्रेमी ने - तुम्हारे पायल की घुँघरू की तरह बजता है मेरा दिल
वह कहता - जब तुम नाचती हो लगता है
उस ज़मीन पर अपना दिल रख दूँ जिस पर तुम कर सको तत्कार, छंद और ताल
बोल तुम गाओ मेरे सीने पर
तुम्हारे घुँघरू की हर आवाज़ मेरी धड़कन सुनना चाहती है.
गाता रहता उसकी तारीफ़ में सरगम
सुनती थी मंच पर अनगिनत तालियों की गड़गड़ाहट
लेकिन उसकी तारीफ़ उसे कर देती थी मन्त्रमुग्ध
शरमा कर गर्दन झुका लेती
वह कहता - तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लिए नाचो
नहीं चाहता मैं कि कोई और देखे तुम्हें मेरे सिवा
यह सब सुनना उसे अच्छा लगता.
लगता उसे कितना प्यार करता है
कितना अधिकार जताता है.
एकाधिकार
वह अधिकार के अधीन प्यार में क़ैद हो गयी
रख दिया अपने सपने
अपनी पूरी ज़िन्दगी उसके हाथ में पूजा की थाली की तरह
जब तक थी वह एक नृत्यांगना
तब तक थी उसकी स्वप्न सुन्दरी
घर आते ही जाने लगी उसकी ऊष्मा
उसका प्यार
उसके शब्द
कहीं गुम गऐ
जैसे हर शो के बाद चले जाते हैं दर्शक बाहर हॉल से और बस बचा रह जाता है मौन
पसर जाता है सन्नाटा ख़ाली कुर्सियों पर, धुंधली रौशनी में दीवारें, परदे डरावने लगने लगते हैं
उस हॉल में जहाँ कुछ ही देर पहले
कलाकार थे, संगतकार थे, सुर थे, झंकार थे और तालियों की गूँज थी.
जहाँ संगीत और नृत्य का संगम
वहाँ पसरी होती गहरी ख़ामोशी
सन्नाटा सन्नाटा और सन्नाटा
जहाँ उसकी चीख़ भी दबा दी गयी
थी तो सिर्फ़ उसकी सिसकियाँ
वायलिन की टूटे तार की तरह
वह लिखती है कैसे उसने
पहली बार जाना कि माँ बनने की अनुभूति कैसी होती है
उसने जाना कि है उसके अंदर है एक नन्हीं जान
जो अब नृत्य करेगा उसके गर्भ में
वह बताना न भूली यह बात ख़ुशी से नाचती हुई अपने प्रेमी को
लगा लेगा गले या उठा कर गोद में उसे ख़ुद करने लगेगा नृत्य
लेकिन वह तो वहशी निकला
निकाली अपनी कमर से बेल्ट और दे मारा उसे
और तब तक उसे पीटता रहा जब तक बेहोश न हो गई
बस इतना ही कहती रही - मत मरो मुझे
मेरे पेट में बच्चा है
नहीं चाहिए बच्चा!
वह चीख़ा
और एक एक कर
चार बार करवाया उसका गर्भपात
नहीं होता था उस पर उसके आँसुओं का कोई असर
यह दुहाई भी काम नहीं आती कि यह तुम्हारा बच्चा है
मत मारो इसे
इसमें इस नन्हीं सी जान का क्या कसूर है
चीख़ती, चिल्लाती, तडपती रही और उसकी पीठ पर रोज़ उभरते रहे बेल्ट के नए नए निशान
प्रेम के पुरस्कार स्वरूप गोल्डमेडल की तरह
वह कुछ भी नहीं कर पाती अपने बचाव में
मिट गयी उसकी हर पहचान
एक नृत्यांगना की
एक कलाकार की पहचान
छीन लिया उससे उसका सबकुछ
बिखर गए थे घुँघरू
फूट गया था तबला
सुबक रहा था सरोदवीणा
चुप थे सारे वाद्ययंत्र
ताली बजाने वाले हाथों में से एक भी हाथ नहीं था उसके सुबकते गालों से आँसू पोछने के लिऐ
वह रोते रोते
भूखी प्यासी सो जाती वहीँ ज़मीन पर बाहों का तकिया बना कर
जोड़ कर दोनों घुटनों को
सटा लेती थी अपनी छाती से ऐसे जैसे
सटा रखे हों अपने बच्चों को अपने सीने से
रोती हुई अपराधबोध से माफ़ी माँगती अपने उन बच्चों से जिसे उसने जना ही नहीं
मेरे बच्चे !
माफ़ कर देना अपनी माँ को
नहीं ला पायी तुम्हें इस धरती पर
खिलने से पहले ही तुम सब मुरझा गये मेरे ही गर्भ में
पिता ज़ल्लाद था
तुम्हारी मज़बूर माँ कुछ नहीं कर सकी
नहीं बचा सकी तुम्हें, तुम्हारे पिता से जिसने बीज बोया था मेरे में गर्भ
ममता की आँच से सींच कर न सकी तुम्हें बड़ा.
रह गयी मेरी सारी आस
तुम्हें खिलाने की
तुम्हें देखने की
तुम कैसे दिखोगे?
कैसे हँसोगे?
कैसे करोगे शैतानियाँ
न थी मर्ज़ी तुम्हारे पिता की और न ईश्वर की
मैं हार गयी
मुझे माफ़ कर दो
अपनी माँ को जो पूरी तरह माँ नहीं बन सकी बदनसीब
यह ख़ुद से बातें करती है अकेले में
रोती है
चिल्लाती है डाक्टर
कहती हैं
मैंने मारा !!!! मैंने मारा !!!!!!
पता नहीं
क्या किसे
और किसकी बात करती है?
डाक्टर पूछता - मुझे बाताओ सच सच
वह बताती
कैसे उसे मारा गया
उसके चार चार बच्चे मारे गए
वह पिता नहीं अपने बच्चे का हत्यारा है
वह दिखाती अपनी पीठ पर बेल्ट के निशान
नहीं मानता कोई उसकी बात
सब कहते पागल हो गयी है
मिर्गी के दौरे पड़ते हैं
डाल दिया पागलखाने में
रोती रही - पागल नहीं हूँ! पागल नहीं हूँ!!!
साबित नहीं कर सकी अपनी बेगुनाही
बढ़ती गयी यातनाऐं
बिजली की तरह नाचने वाली झेल रही थी बिजली के झटके
नहीं रहा गया
एक दिन किसी तरह भाग निकलने में हुई क़ामयाब
बाक़ी नहीं बची थी पैरों में जान
लेकिन उसे वापस बनानी थी अपनी पहचान
बचानी थी आदि कला
अब फ़िर से थिरक रहे हैं उसके पाँव
और थिरक रहे हैं उसके साथ साथ अनेकों अनाथ बच्चों के पाँव
सुर फ़िर से छिड़ रहे हैं हवाओं में
घुँघरू फ़िर से छनक रहे हैं चारों दिशाओं में
सरगम गूँज रहा है ब्रम्हाण्ड में
नृत्य कर रही है पूरी पृथ्वी