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मवाना टॉकीज भाग 4

मवाना टॉकीज भाग 4

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जब होश आया तो सोमू कुर्सी पर निश्चेष्ट पड़ा था। उसने इधर उधर नजर घुमाई तो हर तरफ वीराना नजर आया। कहीं कोई हलचल नहीं थी। सोमू एक झटके से उठ खड़ा हुआ और डरते डरते तीन सीट बगल में जाकर उस कुर्सी का निरीक्षण करने लगा जिसपर उसने उस भयानक महिला को बैठे देखा था। लेकिन यह देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि उस कुर्सी पर ऐसे कोई चिन्ह नहीं थे जिससे यह आभास मिलता हो कि कोई उसपर बैठा था। उस कुर्सी पर धूल की परत जमी हुई थी। सोमू चकरा गया। क्या उसने कोई भयानक स्वप्न देखा था? उसे एक एक घटना याद आ रही थी कि कैसे स्क्रीन पर एक भुतहा फिल्म शुरू हुई, कैसे उसकी नजर एक जले हुए चेहरे वाली औरत पर पड़ी, और उसने अपने तीखे नाखूनों से उसपर हमला कर दिया। लेकिन अब तो यहाँ ऐसे कोई चिन्ह नहीं थे। सोमू को विश्वास होने लगा कि जरूर यहाँ के स्तब्ध नीरव वातावरण में उसकी आँख लग गई और उसने ऐसा भयानक स्वप्न देखा जिसने उसे झकझोर कर रख दिया। सोमू ने अपना सिर झटका और उठ कर ऊपर चला आया। ऊपर वह उस छोटे से प्रोजेक्शन रूम में पहुंचा जहाँ से प्रोजेक्टर पर फिल्म चलाई जाती है और उसने स्वप्न में वहीं से फिल्म दिखाई जाती देखी थी। एक पुराना प्रोजेक्टर अभी भी मोखले के पीछे सियाचीन में खड़े अकेले सिपाही की तरह तना हुआ खड़ा था। यहाँ अपेक्षाकृत कम धूल थी। प्रोजेक्टर में एक पुरानी सी फिल्म का रोल अभी भी लगा हुआ था जिसका एक सिरा लटक रहा था। सोमू ने वह हिस्सा उठा कर देखा तो उसके सिर तक के बाल खड़े हो गए। यह उसी पुराने मंदिर वाली भुतहा फिल्म थी जो उसने स्वप्न में देखी थी। क्या यह कोई संयोग था? अब सोमू सच में घबरा गया। क्या सचमुच वह किसी प्रेत लीला में फंस गया है? वह किसी तरह वहाँ से निकला और भाग खड़ा हुआ लेकिन हजारों सवाल उसके मन को मथ रहे थे।

अगर सोमू ने स्वप्न देखा था तो प्रोजेक्टर में स्वप्न वाली फिल्म ही कैसे थी?
और सोमू ने सच में फिल्म देखी थी तो औरत वाली सीट पर धूल पुछीं क्यों नहीं थी?
पढ़िए अगला भाग 5


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