मौत का तमाशा
मौत का तमाशा
जंगल में अपने शिकार को खा रहे एक शेर को, अपने महंगे महंगे कैमरों में कैद कर रही थी इंसानो की भीड़।
और दूर एक नील गाय बहुत देर से खड़ी देख रही थी सब कुछ। पानी के तालाब के किनारे शांत खड़ी उस नीलगाय को देखकर एक खरगोश उसके समीप आके बोला,
"बहन! दुखी क्यो होती हो, ये तो जगंल का नियम है। यहाँ किसी न किसी को हर रोज़ इस जगंल के राजा शेर का शिकार बनना ही होता है जहाँ आज तेरी संतान है, वहीं कल मेरी संतान थी।"
नील गाय ने सिर नीचे किया खरगोश की आंखों में देखा और कहा,
" मित्र मेरा पूरा झुंड पहाड़ के उस पर जा चुका है बसंत आने वाली है हमने पर्याप्त खाना भी खा लिया था पानी पी चुके थे और नदी पार कर रहे थे मैं और मेरा बच्चा झुंड के बीच मे था। अचानक कोई नुकीली चीज़ मेरे बच्चे की पीठ में घुसी और वो लड़खड़ाने लगा, हम पीछे छूट गए।
शेर तो बहुत बाद में आया था। मित्र!
शेर का कोई दोष नहीं जानते हो क्यो?
खरगोश ने अचरच से देखा और पूछ लिया,क्यो?
"मैं और मेरा झुंड पहले ही उस शेर से लड़ कर मेरे बच्चे को सुरक्षित निकाल लाये थे वो घायल शेर है। ठीक से चल भी नहीं सकता। उस ओर से आ रही इंसानों की भीड़ ने हमे हमारे झुंड से अलग कर दिया। शायद वो मेरे बच्चे का शिकार करना चाहते थे या शायद प्रकृति प्रेम पर कुछ नई तस्वीरे चाहिए होंगी।
उनमें से किसी एक ने मेरे बच्चे को गोली मारी है।
मेरे बच्चे ने मरते मरते मुझसे कहा था ,
"माँ तू भाग जा मैं इस शेर का निवाला बनने को तैयार हूं। मगर इन इंसानो के हाथ नहीं आऊंगा, मैं अपनी मौत का तमाशा नहीं बनने दूँगा"।