अचीवमेंटस
अचीवमेंटस
"हाँ ..हाँ ..अपने बूते पे ये मुकाम हासिल किया है ,कोई सिफारिशी नहीं हूँ मैं.... समझे .....
हर रोज का डायलॉग था ये शगुन रस्तोगी का ! दफ्तर में सब पक चुके थे सुन-सुन के !
बड़ा घमंड था शगुन को अपनी अचीवमेंट्स पर। रोज-रोज मिस्टर रस्तोगी का पुरुष दम्भ भी ना सह पाया और वो भी.......!
आज वो अकेली रह गयी, अपनी अचीवमेंट्स के साथ ....!