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बहादुर बच्चा

बहादुर बच्चा

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कितनी बार समझाया तुम्हें, बात भेजे में घुसती नहीं क्या ? खाते पीते, सोते जागते, उठते बैठते मोबाइल मोबाइल, खाना तो ढंग से खा लिया करो, तुम्हारे लाड़ प्यार ने बिगाड़ा है इसे, समझाओ इसे, अगर तुम्हारी सुनता हो तो...कर्नल राजवीर नाश्ते की मेज पर बेटे आर्य के मोबाइल प्रेम के कारण बिफ़र गये।

कर्नल राजवीर को गुस्सा करने का कारण भी कुछ ऐसा ही था, सामने घड़ी में सुबह के आठ बज रहे थे, साढ़े आठ बजे आर्य की स्कूल बस आती थी, अभी आर्य का नाश्ता भी नहीं हुआ था, वह वक़्त की परवाह नहीं करते हुए मोबाइल पर गेम खेले जा रहा था।

स्कूल की तैयारी अभी बाकी थीं, नजरअंदाज भी करना तो कितना..... एक बाप के लिये जो खुद आर्मी में नौकरी कर रहा हो, उसके लिए इतना गैर जिम्मेदाराना रवैया देखना नामुमकिन था।

जैसे ही पति बेटे को डाँटने लगे माँ आरती ने बीच बचाव किया।

क्यों डाँटते हो बच्चे को, नटखट हैं, छोटा भी, सुधर जायेगा।

सुधर जायेगा तो सुधारो, जितनी जल्दी हो सके, इसके बाद , खाने की मेज पर इसके हाथ में मोबाइल दिखा तो या मोबाइल फूटेगा या फिर यह..... समझा देना अपने लाड़ले को..... कहते हुए कर्नल ड्यूटी पर चले गए।

पापा चले गए ड्यूटी, तू टेन्शन मत ले, उनको तो आदत है बात-बात पर टोकने की।

माँ आरती ने बेटे के बालों को प्यार से फ़ेरा और समझाने लगी।

पर ममा , पापा मुझे इतना क्यों डाँटते रहते, इतना बुरा हूँ क्या मैं.... इस पागल कनिका को तो कोई कुछ नहीं बोलता.... आर्य मुँह बिचकाते हुए रुआँसा होकर बोला।

भैया को डांट पड़ी, भैया को डांट पड़ी, कनिका आर्य को चिढ़ाने लगी।

आर्य ने कनिका का कान पिचका...

कनिका दर्द से कराहते हुए माँ से शिकायत करने लगी,

कनिका तुम चुप रहो, देखा नहीं भैया को कितनी भारी डाँट पड़ी, तुम्हे मजाक सूझ रहा हैं...…

डाँट नहीं खानी तो माँ, भैया को बोलो ना पढ़ाई अच्छे से करने के लिए,

ठीक है, ठीक है, मैं समझा दूंगी भैया को, तुम्हें ज्यादा नानी बनने की जरूरत नहीं है।

बेटा, कनिका को कोई क्यों कुछ कहेगा, वह सबका कहना मानती हैं, पढ़ाई में भी अच्छी है, नियम कानून से रहती हैं..….

ये, ये नियम कानून से रहती हैं, माँ तुम्हें नहीं पता, बहुत शरारती हैं यह, जैसे दिखती है वैसी है नहीं.... कितनी बदमाशी करती हैं, मुझसे पूछो माँ.....

हाँ बेटा, मुझे पता है, पर वह सिर्फ शरारत ही नहीं करती, पढ़ाई में भी अव्वल हैं, तुम थोड़ा पढ़ाई के तरफ ध्यान दो, अभी तुम्हारा इंटर चल रहा है, यही तो वह समय है, जब जीवन करवट बदलता है... तुम्हारे पापा को तुम्हारी बहुत चिंता लगी रहती हैं... माँ आरती ने बेटे आर्य को समझाते हुए कहा।

आर्य ने भी अच्छे बेटे की तरह सब सुन लिया, फरक कुछ पड़ने से रहा... आर्य था एक मस्तमौला बच्चा, जो अभी युवक बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा था, वह हर वक़्त खोया हुआ रहता था, उसे खुद की सुध नहीं थीं, वह अभी तक यह नहीं तय कर पाया था कि उसे करना क्या है, उसके जीवन का लक्ष्य क्या है, जीवन हासिल क्या करना है, जीवन जीने के लिए किस मोड़ मुड़ना है।

आम तौर पर इस उम्र में बच्चो के सपने उफान पर होते हैं, कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश होती हैं, आर्य में यह सब नदारद था, आर्य खुद ही कशमकश था कि उसे जीवन में कैसे आगे बढ़ना है, उसे खुद नहीं पता था उसे करना क्या है, कभी पूछो तो हहड़बड़ाहट में कह देता था मुझे पापा का "बहादुर बच्चा" बनना हैं, पर वह कैसे बहादुर बच्चा बनने वाला था, यह उसे खुद भी नहीं पता था। स्कूल में भी आर्य मन लगाकर कभी पढ़ता नहीं था, उसकी स्कूल टीचर उसे हर बार या तो डाँटती रहती थीं या प्यार से समझाती, कभी कभी वह कक्षा में छड़ी मारकर भी उसे ख्यालों से बाहर निकालने की कोशिश करती, कभी प्रिंसिपल के सामने खड़ा कर देती, कभी पीछे की बेंच पर बिठा देती, लेकिन आर्य पर इन बातों का कोई प्रभाव न पड़ता।

स्कूल की टीचर्स को भी समझ में नहीं आ रहा था, आर्य का भविष्य क्या है, पेरेंट्स को इत्तला कर दी गयी कि आर्य के तरफ ध्यान दिया जाए या फिर इसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाया जाए, देखने मे आर्य बाहरी तौर पर बिलकुल सामान्य था, लेकिन दिमाग से जरा भी सामान्य नहीं था ।

कर्नल राजवीर थक गए थे बेटे को समझाते समझाते, उनके धीरज की सीमा समाप्त होने आयी थी, उन्होंने हर संभव प्रयास किया पर आर्य के स्वभाव में कोई फर्क नहीं आया।

इसी उधेड़बुन में दिन गुजरते गए, जवान होते हुए बेटे को बार-बार डाँटना उन्हें ठीक नहीं लगा, इस बार अगर आर्य अच्छे नंबरों से पास नहीं हुआ तो अगले साल उसे होस्टल भेज दिया जायेगा यह सोचकर और कुछ खास हिदायते देकर शांत रहना ही मुनासिब समझा गया।

जाड़े की ऋतु आ गयी थी, हर तरफ सर्द हवाओं का मौसम, गिरती सफेद बर्फ के साथ खुशनुमा माहौल में तब्दील हो रहा था, घर के अंदर बाहर अँगीठिया जल रही थी, वृक्ष फलो, फूलों से लद गए थे, पेड़ो पर फ़ैली हरी चादर सृष्टि का सौदंर्य और बढ़ा रही थी।

गुलाब महक रहे थे, चमेली, मोगरा, जूही की सुगंध वातावरण को प्रफुल्लित कर रही थी, रंग-बिरंगे गर्म कपड़े बाहर निकल चुके थे, परीक्षा का मौसम भी शुरू होने वाला था, प्री एग्जाम चल रहे थे, आज आर्य का गणित का पर्चा था, गणित आर्य का पसंदीदा विषय था, इसलिए वह खुश था, सारे बच्चे गणित से डरते थे, इसलिए सब डरे सहमे स्कूल पहुंच गए थे, पर्चा शुरू हुआ, आर्य पर्चा लिखने मे मग्न था तभी अचानक आठ दस नकाबपोश बंदूकधारी कक्षा में आये और गोली चलाने लगे, किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, शांत माहौल कोलाहल और शोरगुल में तब्दील हो चुका था, बंदूकधारी लोग सटाक सटाक गोलियों की बरसात कर रहे थे, टीचर को उन्होंने बंधक बना लिया था, खून की बौछारों से क्लास की दीवारें सन रही ,स्कूल की इमारत गोलियों की आवाज से दहल रही थी, हरतरफ अफरातफरी मची हुई थी, मौत का तांडव मचा हुआ था, आर्य के एक दो दोस्तों को गोली लगी थी, देखते देखते यह सब क्या हो गया, आर्य सोच में पड़ गया, उसका सिर चकरा रहा था ,क्या किया जाए कुछ सूझ नहीं रहा था।

अब सोचने के लिए वक़्त भी कम था, किसी न किसी को कुछ ना कुछ साहस दिखाना जरूरी था। उसका असामान्य माथा ठनका, कुछ कर गुजरने का वक्त शायद आया है यह सोचकर वह कुछ प्लान बनाने लगा। क्लास में सन्नाटा छा गया था। अचानक आर्य के अंदर आर्मीवाला इंसान जाग उठा, विपरीत परिस्थितियों में कैसे लड़ा जाता हैं, और अपने जान की फिक्र न करते हुए एक सैनिक कैसे दूसरों की जान बचाता है ऐसे किस्से वह पापा से बचपन में सुन चुका था।

दृढ़ इच्छाशक्ति की अतुलनीय हिम्मत से वह भर उठा, उसने एक बंदूक धारी की बंदूक छीन ली और उन पर हमला किया, बंदूकधारियों की बंदूक छीनकर वह उनको मारने की धमकी देने लगा, बंदूक धारी डर के मारे पीछे हटने लगे, आर्य ने उन्हें सारे हथियार नीचे फेंकने के लिए कहा और बंदूक चलाने का अभिनय करने लगा, इसी दौरान आर्य सारे बच्चो को भागने के लिए उकसाने लगा, इस अचानक हुए हमले से बंदूकधारी संभल नहीं पाए, उधर सिक्युरिटी गार्डो ने भी बंदूक ताने मोर्चा संभाल लिया, प्रिंसिपल ने पुलिस को हमले की जानकारी दे दी थी, पुलिस का उड़नदस्ता बस पहुंच ही चुका था।

आर्य की बहादुरी से आज बड़ा हादसा होने से बच गया था। इससे आतंकवादी बौखला गए, बौखलाहट में वह आर्य को दबोचते हुए बंदूक की नोक पर बाहर ले जाने लगे, इतने में फुर्ती से पुलिस उड़नदस्ते ने आर्य को बचाते हुए दो आतंकवादियों को मार डाला और बाकी को धर लिया, फिर भी दुर्भाग्य से इस वारदात में एक गोली आर्य के सीने को चीरती हुई निकल गई, खून का फौव्वारा उड़ा और आर्य जमीन पर धम्म से गिर गया, और आर्य बेहोश हो गया, उसकी साँसो की गति धीमी हो गई थी, प्रिंसीपल एम्बुलेंस, एम्बुलेंस जल्दी करो, आर्य को बचाओ बचाओ चिल्लाई।

तुरंत एम्बुलेंस में आर्य को दवाखाना ले जाया गया, आर्य का खून बहुत बह चुका था, आर्य को दवाखाने में भर्ती कराया गया, उसके माता पिता को इत्तला कर दी गई, कर्नल राजवीर, माँ आरती और छोटी बहन कनिका हॉस्पिटल पहुंच गए, माँ औऱ बहन का रो-रो कर बुरा हाल था, पर कर्नल राजवीर की आंखों में बेटे के लिए प्यार उमड़ रहा था, आँसू और दर्द का अनोखा मिश्रण कलेजे पर दस्तक दे रहा था। आज पहली बार उन्हें आर्य पर गर्व महसूस हो रहा था, आर्य को आई सी यू में डॉक्टरों की निगरानी में रखा हुआ था, तब तक प्रेस भी पहुंच चुकी थी, प्रिंसिपल और स्कूली टीचरों ने आर्य के बहादुरी और बेखौफ जज़्बे की तारीफों के पुल बांध दिये।

दूसरे दिन शहर के नामचीन सभी दैनिक समाचार पत्रों में "बहादुर बच्चा" शीर्षक से बहूत बड़ी ख़बर छपी थी जिसमें,आर्य के निड़रता और निर्भीकता का परिचय दिया था, उसने अपनी जान की परवाह न करते हुए साथी बच्चों की जान बचायी थीं।

आज के परिवेश में बच्चों की परवरिश करने के लिए किन संस्कारों की जरूरत है, इसकी भी हिदायत दी गई थी। साथ में आर्य के माता-पिता का हार्दिक आभार व्यक्त किया गया था।

कर्नल राजवीर को आज अपने पुत्र पर नाज हो रहा था, वह समझ चुके थे, बेटे ने उनका नाम रोशन किया था, समाचार पत्रों में छपी खबर और मान सम्मान से वह गदगद हो उठे। उन्हें यह मानना पड़ा कि आज की पीढ़ी उतनी निक्कमी नहीं है जितना वह समझ रहे थे, वक़्त आने पर यह पीढ़ी जान देना भी जानती हैं और जान बचाना भी।

कभी भी किसी को भी कम नहीं आँकना चाहिये, चाहे वह दिमाग या शरीर से कमजोर क्यों ना हो।

आर्य की तरह हर बच्चे में कुछ न कुछ छिपे हुए सद्गुण होते हैं जो सही समय पर सामने आते हैं, इसलिए पुरानी पीढ़ी ने हरदम अपने कष्टों और सहनशीलता की दुहाई न देकर हर कदम पर नई पीढ़ी का सम्मान और विश्वास करना चाहिए, क्योंकि हर नयी चीज कभी नयी नहीं रहती, एक न एक दिन उसे पुराना हो ही जाना है।


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