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हिम स्पर्श - 25

हिम स्पर्श - 25

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रात ने अपनी यात्रा सम्पन्न कर ली। किसी ने द्वार खटखटाया। दिलशाद ने दरवाजा खोला।

“कितने बजे चेक आउट करेंगे आप ?” होटल मैनेजर ने पूछा।

“हम दो तीन दिन और रुकेंगे।“ मैनेजर लौट गया।

जीत अभी भी गहरी नींद में सोया हुआ था। दिलशाद ने खिड़की खोल दी। एक पूरा टुकड़ा आकाश का खिड़की का अतिक्रमण कर दिलशाद की आँखों में उमड़ गया जो अपने साथ बर्फीली हवा के टुकड़े भी लाया था। खिड़की के उस पार था पहाड़ों का जंगल।

सूरज निकल आया था। पहाड़ों के ढलान पर जमी हिम पर यात्री अपने अपने आनंद में व्यक्त तो करता है कि दौड़ जाऊँ हिम के बीच। पर यह जीत, अभी भी सो रहा है। मैं क्या करूँ।

दिलशाद ने जीत को देखा। वह सो रहा था। दिलशाद ने अपनी इच्छा को भी सुला दिया। प्रतीक्षा करने लगी, जीत के जागने की।

कुछ क्षण बित गए। दिलशाद का मन कहीं नहीं लग रहा था। वह जीत के पास आ कर बैठ गई।

जीत सो रहा था। दिलशाद ने जीत के माथे पर हाथ फेरा। जीत का सिर गर्म था। माथे पर पसीने की बूँदें थी। दिलशाद चौंक गयी- “इतनी ठंड में भी पसीना?”

“जीत, तुम ठीक हो क्या ?” दिलशाद चिल्ला उठी। जीत जाग पड़ा, “दिलशाद...।”

“जीत, माथे पर यह पसीना, इतनी ठंड में, तुम ठीक तो हो ?” दिलशाद चिंतित थी।

“अरे कुछ नहीं हुआ। तुम बैठो मेरे पास। चलते हैं थोड़ी देर में, मिल आते हैं इन पहाड़ों को।“ जीत ने संभलने का प्रयास किया, सफल भी हुआ।

तैयार होकर दोनों निकल पड़े श्वेत चादर में लिपटे रास्तों पर। जीत दिलशाद के साथ चल तो रहा था पर उसके पैरों में कल वाली ऊर्जा न थी। जैसे कोई उसे खींच रहा हो। एक दो बार तो वह फिसलते फिसलते बचा।

“जीत, क्या बात है ? तुम ठीक तो ?”

“अरे, कुछ नहीं। बस यूं ही.” बोलते बोलते जीत हाँफ गया। उसकी सांस अनियमित हो गयी।

“जीत, तुम्हारी सांस फूल रही है। सांस लेने में कष्ट हो रहा है ?”

“दिलशाद, शायद इस ऊंचाई के कारण, कभी कभी क्या होता है कि ऊंचाई पर...।“

“इस ऊंचाई पर तो हम पिछले कई दिनों से है। कल तक कुछ नहीं हुआ था, आज अचानक से यह क्या हो गया ? सच सच बताओ।“

“कुछ नहीं है।“ जीत ने अपने आप को संभाला और दिलशाद के साथ चल दिया। दोनों पहाड़ी पर थे, हिम के बीच थे। हिम के साथ खेलते रहे, आनंद करते रहे, हँसते रहे। अंत में थक गए। लौट गए।

शाम ढलते ढलते जीत फिर से हाँफने लगा। दिलशाद चिंतित हो उठी।

“जीत, तुम ठीक नहीं लग रहे हो। हम आज ही लौट जाते हैं।“

“वह तो जरा सा ...।“ जीत ने हँसने का प्रयास किया।

“नहीं हम लौट....।“दिलशाद ने होटल के रिसेप्शन पर फोन घुमाया और टिकिट बुक करने को कहा।

“दो दिन तक कोई टिकिट उपलब्ध नहीं है।“ सामने से जवाब मिला।

“जो भी पहला टिकिट मिले बुक कर लो।“ दिलशाद ने फोन रख दिया।

उस रात देर तक दोनों बातें करते रहे। दिलशाद सो गई पर जीत सो नहीं पाया। वह कुछ सुस्त सा अनुभव कर रहा था। उसे सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। वह देर तक जागता रहा। अपनी सांस को काबू करने का प्रयास करता रहा। रात के पिछले प्रहर वह सो गया।

“आज कहीं नहीं जाएंगे हम, बस यहीं आराम करेंगे।“दिलशाद ने जागते ही जीत को सूचित कर दिया।

“ठीक है, जैसी आप की आज्ञा।“जीत ने स्मित दिया।

खिड़की खोलकर दूर पहाड़ियों को देखने लगे, दोनों। समय बीतने लगा।

जीत हिमाच्छादित घाटियों को देख रहा था। मन हीना जाने फिर कब आना होगा इन घाटियों में ? अगले साल ? कभी नहीं ?

“कभी नहीं ?” जीत स्वगत बोला,“चलो पहाड़ियों पर चलते हैं।" जीत ने उत्साह जताया। “तुम ठीक तो हो ?” दिलशाद ने संदेह जगाया।

“बिलकुल।“ और जीत कमरे से बाहर निकाल गया। दिलशाद भी जीत के साथ चल दी। बीच राह में ही जीत की सांस फूलने लगी, वह छाती पर हाथ रखकर बैठ गया। दिलशाद ने तुरंत होटल को सूचित किया। होटल ने आर्मी को सूचित किया। 6 मिनिट के बाद आर्मी की टीम जीत का उपचार करने लगी।

कुछ पल के बाद डॉक्टर ने कहा,” इसे कैंट ले चलो।“

अनेक टेस्ट करने के बाद डॉक्टर ने कहा,”कोई चिंता का कारण नहीं है। क्या नाम है आपका ?”

“जीत। सर मुझे हुआ क्या है? क्या यह हाई आल्टीट्यूड डीसीज है ?”

“नहीं, ऐसा नहीं है। यहाँ बात थोड़ी सी अलग है।““क्या बात है ? हो सके तो विस्तार से …।” दिलशाद उत्सुक हो गई।

“हिम का एक छोटा सा टुकड़ा नाक के माध्यम से सांस की नली में घुस गया है। वह वहीं फंस गया है जो साँसों को रोकता है। इसी कारण सांस लेने में कठिनाई हो रही है।“ “हिम का टुकड़ा है, तो पिघल ही जाएगा। आप उसे किसी तरह पिघला दीजिये।“ दिलशाद ने कहा।

“यह संभव नहीं। यह टुकड़ा नहीं पिघल सकता।““क्यूँ नहीं पिघल सकता?” दिलशाद ने संदेह व्यक्त किया।

“क्यूँ कि हिम के इस छोटे से टुकड़े पर मिट्टी जम गई है जो हिम के टुकड़े को घेरे रखी है। मिट्टी की वह परत कठोर हो गई है, जिसके कारण नर्म सा हिम का टुकड़ा कठोर हो गया है। जैसे कोई छोटा सा कंकड़ या खड़क। जब तक ऊपर की परत पर चढ़ी मिट्टी तोड़ी नहीं जाती, हिम के टुकड़े को पिघलाया नहीं जा सकता। “तो तोड़िए ना उस मिट्टी की परत को।“ दिलशाद चिढ़ गयी। डॉक्टर ने दिलशाद की बात को सहज रूप से लिया, स्मित देते हु कहा, ”यह एक बड़े ऑपरेशन से हो सकता है, जिसके लिए आप को शहर की बड़े अस्पताल जाना होगा। आप कौन से शहर से हैं ?

“मुंबई।“

“आप लौट जाइए मुंबई। वहाँ डॉक्टर नेल्सन हैं जो शायद इस काम को कर सके। डॉ॰ नेल्सन मेरे अच्छे मित्र है। मैं उससे बात कर लूँगा। वह आप की कोई मदद कर सके.........


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