क्योंकि इंसानियत बोलती है
क्योंकि इंसानियत बोलती है
बारिश से भीगी इस शाम में मैं ऑटो से अपने फ्लैट की ओर लौट रहा था। मेरे बराबर में एक सज्जन बैठे थे। जाली वाली टोपी और लंबी दाढ़ी मतलब समझने वाली बात ये है की वो साहब मुस्लिम थे। खैर तभी ट्रैफिक लाइट लाल हो गयी और कुछ ही देर में हमारे आस पास काफी ट्रैफिक जमा हो गया। लंबी गाड़ियों की कतार के पीछे से एक चमकीली आँखों और कमजोर से शरीर वाला बच्चा हमारी तरफ आया। उसके हाथ में राम भगवान की मूर्ती थी। वो सबके पैर छू रहा था और बोल रहा था राम के नाम पर पैसा दे दो साहब।
मेरी जेब में उस समय कुल 2 रुपया खुले थे मैंने उसे वो थमा दिया। तभी वो बच्चा मेरे पास वाले सज्जन जिन्होंने जाली वाली टोपी पहनी थी उनके पास गया उनके पैर स्पर्श किये और भगवान राम की मूर्ती दिखाकर बोला राम के नाम पर दे दो साहब भगवान राम आपका भला करेंगे। और अब मैं बड़ा बेताब था कि वो सज्जन क्या करने वाले थे ये जानने को। उन्होंने राम की मूर्ती के हाथ जोड़े और जेब से 20 रुपया निकाल उस बच्चे को दे दिया।
सच ही कहा है गरीब का कोई धर्म नहीं होता,
और इंसानियत से बड़ा कोई कर्म नहीं होता।