जोगन पार्ट --2
जोगन पार्ट --2
जोगन के दिल में हाहाकार मच गया छोटी बच्ची ने उसे आईना दिखाया हो मानों !
वह लड़खड़ाते कदमों से चली जा रही थी खामोशी से आज उसका गीत संगीत भी रो रहा था , भगवान तुम मेरे सामने क्यों नही हो कहां हो तुम !
तुम्हारे लिए मैने घर छोडा माँ-बाप छोड़े समाज को दरकिनार कर दिया , जोगन अंतद्धद से जुझ रही थी , चलते चलते अपने आश्रम में जा पंहुची , जहां कान्हा की बडी सी मूरत मुस्कुरा रही थी !
कान्हा !!
कहकर जोगन ने तंबूरे को एक किनारे रख दिया
और सर उनके चरणों में सर रख रोती रही |
"कौन है निर्मला, " माताजी ने निर्मला से पूछा
"नित्या है माई बहुत देर से रो रही है !"
"उसे मेरे पास भेजों "
नित्या.... माता जी बुला रही है , चलों!
नित्या किसी तरह उठ चल पडी माता जी की कमरे में। जलते दीये से प्रकाशित कमरे में अजीब सी खामोशी थी और सुकून भी।
नित्या माता जी के समीप ही जा बैठी !
"क्या हुआ नित्या तुम आज इतनी विचलित क्यों हो कुछ दिनों से देख रही हूं तुम बेकल दिखती हो क्या हुआ तुम्हे किसी ने कुछ कहा |"
"किसी ने कुछ नही कहां माई",
नित्या की आँख से आसूं झर रहे थे।
"तुम्हारा बरताव तो कुछ अलग ही कथा कह रहा है।
प्रतीत होता है तुम्हारा ह्रदय किसी पीडा से गुजर रहा है इस माई से कुछ नही छिपा पाओगी |"
'क्या प्रभु की सेवा में , साधना में जीवन बिताना गलत है ?
नही! आज यह प्रश्न क्यों नित्या ?
"जब तुम अपना घर बार मातापिता छोड़ हमारे पास आयी थी तो हमने तुम्हे हर बात से आगाह किया था |"
हमने यह भी महसूस किया है कि तुम भले ही संसार का त्याग कर अपनी इच्छा से प्रभु सेवा में आयी हो पर तुम्हारा मोह माया से पीछा नही छुटा तुम अभी भी अपने घर के चक्कर लगाती हो।
मुझे क्षमा करे माता मै प्रभु भक्ति में ही लीन थी पर माया से वशीभुत मै तब हुई जब वर्षों पहले मैने अनजाने में अपने घर के समीप गुजरते वक्त एक नन्ही बच्ची को देखा अपने माता -पिता यानि मेरे भाई-भाभी की गोद में खेल रही थी।
गुलाब के फूल की भांति सुंदर, उसका मुख देख मै अपने कान्हा को भी एक पल के लिए भुल गयी उस बच्ची से देखते ही अनुराग हो गया। कब वो देखते ही देखते बडी हो गयी , पता भी न चला वह भी मुझे देख खुश होती।
"आज उसने मुझे घृणा से वह शब्द कहे जिसने मेरी दुनियां ही हिल गयी है ".
मैने जीवन में प्रभु को ही सबकुछ माना पर प्रभु ने मुझे माया में फंसा दिया मेरी जीवन नैय्या मझधार में है माता ! मै क्या करूं इतनी बेकल तो मै कभी न हुई कितनी बार लोगों के व्यंगों का सामना किया समाज से परे जा कर भी।
माता जी ने उसके सर पर हाथ फेरा व दिलासा दी इसमें अवश्य ही प्रभु की कोई लीला ही होगी।
"अब तुम विश्राम करों हमारा संध्या का समय हो गया है |"
' जी, ' जोगन निश्चेष्ट चल दी अपने कक्ष की ओर।
आरती वंदन के बाद नित्या सोने की कोशिश करने लगी पर नींद उससे कोसो दूर थी।
बरसों पुरानी घटनाएं चलचित्र की भांति चलने लगी।
बचपन में वह हूबहू निम्मी की तरह ही दिखती थी , घर भर की लाडली नित्या दादी संग पूजा-पाठ में लीन रहती थी।
दादी का अधिकतर समय पूजा घर में ही बीतता था , घर में सुख था वैभव था पर फिर भी घुटन थी।
दादा दादी के साथ बुरा बरताव करते थे , कारोबार में अग्रणी थे पर घर गृहस्थी में उनका मन न रमता था | घर से अक्सर बाहर आना जाना रहता घर की जिम्मेदारी उसके पिता के कन्धों पर थी साथ ही कारोेबार में भी वह दादाजी का हाथ बटातें। पिता व दादा की तरफ से बे परवाह उसका भाई आशिक मिजाज निकला जिसके चर्चे आये दिन होते उस पर लगाम लगाई पिता ने सुंदर व गुणी लडकी से ब्याह कर भाई को गृहस्थी के बंधन में बांध दिया।
दादी को लालसा रहती पोते को गोद में खिलाऊं पर भाभी की गोद सूनी रही।
इसी लालसा को लिए वह दूनियां से चल बसी।
मंदिर में कान्हा की सेवा में नित्या ने खुद को डूबों दिया।
भोगविलास उसे रास न आया।
नित्या दादी के साथ अक्सर कृष्ण मंदिर जाया करती थी , वही माता जी ने उन्हे अपने आश्रम में आने का निमंत्रण दिया फिर वह वहां भी आते जाते रहते।
प्रभु सेवा में लीन आश्रमवासियों को देख नित्या का मन बैरागी हो चला लेकिन वह कभी अपनी मंशा घर में बता नही पायी।
इसी बीच दादा जी भी चल बसे। नित्या के माता-पिता ने समय से एक अच्छा रिश्ता खोज उसकों भी गृहस्थ जीवन में रमाने को सोचा।
जब रिश्ता हो रहा था तो नित्या ने कुछ नही कहा बस चुप ही रही।
दादी के गुजर जाने के बाद भी वह कृष्ण मंदिर व आश्रम आती जाती रहती। एक दिन माता जी ने उसकी उदासी का कारण जानना चाहा तब उसने अपनी संन्यास लेने की इच्छा जाहिर की माता जी ने उसकों घर में अपनी इस इच्छा के बारे में बताने को कहा तो नित्या डर गयी उसे पता था उसके माता-पिता इसके लिए कभी राजी न होंगे वह गृहस्थ जीवन का बहुत संजिन्दगी से पालन कर रहे थे वह उसकी एक न सुनेंगे।
नित़्या डर गयी उस लगा यदि वह घर में बतायेगी तो वह कभी कान्हा की सेवा में अपना जीवन नही बिता पायेगी जबरन उसे इन चीजों से दूर कर दिया जायेगा वह परिवार के लोगों का ठाकुरवादी रैवेया जानती थी जहां किसी स्त्री की अपनी निजी जिन्दगी व भावना का कोई मोल न था वह क्या चाहती है इससे उन लोगों को कोई फर्क न पडने वाला था बल्कि वह उनके मुताबिक चले यह मायने रखता था इसलिए वह विवाह तय होने पर भी चुप ही रही।
माता जी ने उसे कहा था कि वह अपनी इस इच्छा घर में बता दे
लेकिन वह ऐसा न कर पायी और निर्मला दूसरी जोगन को बता शादी वाले दिन चुपचाप घर से निकल पडी।
माता जी उस वक्त आश्रम में नही तीर्थ यात्रा के लिए दूर निकल चुकी थी।
निर्मला जोगन ने उसकी काफी मदद की और वह जोगन बन प्रभु साधना में लीन हो गयी।
वक्त बीतता गया जोग लिए बरसों बीत गये सब उस नित्या को भूल गये , नित्या भी भूल गयी खुद को।
प्रभ ने ऐसी माया रची की जिस घर में औलाद की खुशी को तरसते थे नित्या के भाई -भाभी उनकी झोली में हूबहू नित्या जैसी लडकी ने दोबारा जन्म ले लिया।
जिसे परिवार के लोग भूलना चाहते थे वही नित्या सा रूप धर अपनी मोहक सूरत से परिवार में खुशियां बिखेरने लगी।
माँ ने उसका नाम निम्मी रखा पर वह नही चाहती थी कि उस जोगन में पता चले इसलिए उन्होने कभी उसकी बुआ के बारे में नही बताया जबकि वह जान चुकी थी कि नित्या जोगन है।
जोगन बनी नित्या ने जब पहली बार उसे देखा था तो वह एक पल अपनी सुध ही भूल गयी मानों उसका बचपन उसके सामने वापस आ गया हो।
जिस मायामोह से दूर वह बैरागी हो चली थी निम्मी की भोली सूरत ने उसे मोह में डाल दिया था।
"नही !!यह फिर से न होगा मै भले ही जोगन बन गयी लेकिन निम्मी पर अपना साया न पड़ने दूंगी अब कभी उस गली से भी न गुजरूंगी |"
"निम्मी सही कहती है माता-पिता ही उसके भगवान है।
कान्हा ने मेरी भक्ति की परीक्षा ली है शायद मोह किया उसी का दण्ड दिया उन्होने मै विचलित हो जाऊं !
नही !
कान्हा प्रभु!!मेरा यह जीवन तुम्हारे लिए है।
मै तो अपने कान्हा की पूजारिन हूँ विवश हूँ
जोगन हूं मै !
अपने प्रभु कान्हा की जोगन !"