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एक समान

एक समान

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सुधीर जी अपनी दो बेटियों अल्पना और केतकी के साथ राकेश जी के यहाँ हो रहे बर्थडे पार्टी, जो उनके बेटे बंटी के लिए रखी गई थी वहां पहुँच गए थे। सभी बच्चे आपस में मस्ती कर रहे थे।

राकेश जी व सुधीर जी के बीच सामाजिक मुद्दों पर कुछ बातें हो रही थी। सुधीर जी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा “मैं तो अपनी दोनों बेटियों को,बेटों की तरह रखता हूँ। कोई ज्यादा रोक-टोक नहीं।मैं उन्हें बेटा कहकर पुकारता हूँ।”

वे अपनी बात कहकर प्रफुलित थे कि वे बेटियों को बेटा कहते है।तो इसपर राकेश जी ने कहा

“मैं भी अपने बेटे बंटी को बेटी की तरह रखता हूँ। कोई रोक-टोक नहीं। मैं उसे बंटी बेटी कहकर पुकारता हूँ।”

इसपर सुधीर जी ने अचरज भरे स्वर में कहा “बंटी तो बेटा है आपका, तो आप उसे बेटी क्यों कहेंगे? बेटा, बेटा होता और बेटी, बेटी।” अरे! जब आप अपनी बेटियों को बेटा कहकर संबोधित कर सकते हैं, तो मैं बंटी को बेटी क्यों नहीं कह सकता? बेटियां किसी से कम थोड़े न होती हैं। और बेटा बेटी तो समान होते हैं। बेटियों को बेटा कह सकते हैं तो बेटों को बेटी कहने में क्या हर्ज है।राकेश जी के इस बात का सुधीर जी के पास कोई तर्क नहीं था।कुछ देर चुप रहने के बाद सुधीर जी ने कहा,”तुम ठीक कह रहे हो। बेटा-बेटी सब बराबर हैं, तो बेटियों को बेटा कहकर क्यों पुकारना”?

ये कहना भी गलत है कि हम बेटियों को बेटों की तरह रखते है”। मैं अपनी बेटियों को बेटा कहकर नहीं, बल्कि बेटी कहकर पुकारूँगा और बेटों की तरह नहीं, बल्कि जैसे वे चाहें, वह वैसे ही रहेंगी।

सुधीर जी ने अपनी बेटियों को आवाज़ लगाई। अल्पना बेटी, केतकी बेटी, जल्दी आओ, राकेश अंकल से मिल लो।

अल्पना और केतकी, झट से आ गयी। अपने पिता के मुंह से बेटी सुनकर वे दोनों भी बहुत खुश थीं।


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