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Akanksha Gupta

Thriller

4.3  

Akanksha Gupta

Thriller

चंद्रिका एक पहेली भाग -8

चंद्रिका एक पहेली भाग -8

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पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा- “दर्शना और त्रिपाला एक विशेष प्रकार के कमरे में जाते हैं जहां शशांक नाम एक रहस्यमयी युवक रहता है। अब आगे-

शशांक की आवाज में अपना नाम सुनकर चंद्रिका जल्दी से अपना मुंह धोकर स्नानघर से बाहर निकल आती हैं। वो इतनी घबराई हुई थी कि बार बार पीछे मुड़कर स्नानघर की ओर देख रही थीं। जब थोड़ी आगे आ गई तो उसे यकीन हुआ कि अब उसे कोई नही बुला रहा। उसने चैन की सांस ली और पीछे से आगे की ओर देखते हुए आगे बढ़ी। 

अचानक से वो किसी से टकरा गई। उसने घबरा कर चीखते हुए आगे की ओर देखा तो सामने शेखर खड़ा था। उसे देखते ही चंद्रिका उसके गले लग जाती हैं। उसके अचानक ही इस तरह गले लग जाने से शेखर की सांसे थम सी गई।

चंद्रिका के चेहरे से टपक रही पानी की बूंदे शेखर के कपड़ों को गीला कर रही थीं लेकिन शेखर को इसकी कोई परवाह नहीं थी। उसकी धड़कने थम गई थीं। उसे लग रहा था कि उसका शरीर बेजान हो गया है। धड़कन बढ़ने लगी है और समय आगे बढ़ ही नहीं रहा है। कुछ देर तक दोनों इसी तरह खड़े रहे। फिर चंद्रिका के कानों में एक आवाज आई- ‘नंदिनी।’ यह आवाज शशांक की थी।

फिर से वही आवाज सुनकर चंद्रिका घबरा कर अपनी आंखे खोलती हैं और शेखर को छोड़कर दूर हटती है। उसने देखा कि सामने शेखर खड़ा था और उसके कपड़े गीले हो गए थे। उसने खुद की घबराहट को छुपा कर शेखर से कहा- “माफ कीजिएगा मैने ध्यान नहीं दिया।”

इधर जैसे ही चंद्रिका ने शेखर को छोड़ा वैसे ही शेखर अपने विचारों मे से बाहर निकल आया और चंद्रिका से नजरें चुराते हुए बोला- “कोई बात नहीं। मैने भी ध्यान नहीं दिया। वैसे तुम इतनी डरी हुई क्यों लग रही हो?” शेखर ने चंद्रिका के मन का डर भांप लिया था।

“कौन डरा हुआ हैं, मैं? अरे नही। वो तो मैं अंदर पानी की वजह से फिसलते-फिसलते बची हूँ ना, इसलिए बस थोड़ी घबराहट हैं।” चंद्रिका साफ झूठ बोल गई थीं। वह जानती थीं कि शेखर कभी उसकी बात पर यकीन नहीं करेगा।

इतना सुनते ही शेखर के होश उड़ गए। उसने घबराते हुए चंद्रिका को पलंग पर बिठाया और कहा- “क्या तुम फिसलते-फिसलते बची? तुमने मुझे बताया क्यों नहीं? मैं किसी को भेज देता मदद के लिए। तुम ठीक तो हो? तुम्हें चोट तो नहीं आई? बताओ ना, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?” शेखर इतनी जल्दी में था कि उसकी सांस थम गई। उसकी यह हालत देखकर चंद्रिका अपनी हंसी रोक नहीं पाई और जोर-जोर से हंसने लगी।

उसे यूं ही हँसता हुआ देखकर शेखर को एक सुकून मिला। वो चंद्रिका को हंसते हुए ही देखना चाहता था लेकिन फिर अगले ही पल उसे कुछ याद आया और वो एक बनावटी गुस्सा दिखाते हुए चंद्रिका से बोला- “यहाँ मेरे प्राण निकल रहे थे और तुम्हें उपहास सूझ रहा है?”

चंद्रिका की आंखों में शरारत उतर आई। वो पलंग पर से उठी और शेखर के करीब आते हुए उसकी आंखों में झांकते हुए बोली- “अच्छा..... पर वो क्यो भला? संकट हम पर आया और प्राण आपका साथ छोड़ने को आतुर थे। इसका कारण बता सकते हैं आप......” यह कहते कहते जैसे ही चंद्रिका शेखर के और करीब पंहुची, शेखर के दिल की धड़कन तेज हो गई। 

उसने चंद्रिका से दूर भागते हुए बनावटी झल्लाहट दिखाते हुए कहा- “प्रश्न के ऊपर प्रश्न करना तो किसी को तुमसे सीखना चाहिए। अच्छा अब मुझे जाने दो। आठ दिन के अल्पाहार के बाद इस अवस्था में भी तुम बिना किसी भोजन के प्रसन्न रह सकती हो किंतु मैं नहीं। मुझे भूख लगी हैं और मैं अपने लिए भोजन की व्यवस्था करवाने जा रहा हूँ। यदि तुम्हारी भी भोजन करने की इच्छा हो तो बता सकती हो।” यह कहकर शेखर के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वह चंद्रिका को कुछ याद दिलाने की कोशिश कर रहा हो।

शेखर की बात सुनकर चंद्रिका को एहसास हुआ कि उसे बहुत तेज भूख लग रही हैं। उसकी भूख इतनी अधिक बढ़ गई थीं जैसे ना जाने कितने समय से उसने भोजन की ओर देखा तक नहीं। उसने शेखर से कहा- “सच में मुझे बड़ी भूख लग रही हैं लेकिन मुझे इसका एहसास ही नहीं हुआ लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे भूख लगी होगी?” चंद्रिका ने शेखर से पूछा।

“अब तुम्हें तो अपने प्रश्नों से ही विश्राम नहीं है तो मुझे तो अपना ध्यान रखना ही होगा। अच्छा तुम वस्त्र बदल लो, तब तक मैं भोजन की व्यवस्था देख कर आता हूँ।” इतना कहकर शेखर कमरे से बाहर निकल आता है। उसके चेहरे पर एक सन्तुष्टि झलक रही थी।

शेखर के वहाँ से जाते ही चंद्रिका फिर से सोच में पड़ जाती हैं कि क्या उसे शेखर को सच बता देना चाहिए था? उस औरत से अपने सपने में बात करने के बाद अब किसी अनजान आवाज में एक नाम ‘नंदिनी’ जो उसे कुछ जाना पहचाना सा लगता हैं लेकिन क्यों? आखिरकार जिस आवाज को सुनकर वो इतना डर गई थीं, उसे सुनकर अपनेपन का एहसास उसके मन को क्यों छूकर गुजर गया? आखिर वो आवाज थीं किसकी और यह नंदिनी हैं कौन?

यही सब सोचते-सोचते उसने कब कपड़े बदल लिये थें उसे खुद भी पता नही चला। जब वो कपड़े बदल कर वापस कमरे में आई तो उसने ध्यान दिया कि यह उसका कमरा नही था। यह कमरा उसके कमरे से काफी बड़ा था। इस कमरे की सजावट भी कुछ अलग ढंग से की गई थीं। उसने कमरे मे घूम घूम कर कमरे को देखना शुरू किया।

अभी उसने कमरे में घूमना शुरू ही किया था कि तभी शेखर वहां पर आ गया। उसके हाथ मे पीतल की एक थाली थीं जिसमें कुछ फल रखें हुए थे और एक पानी का गिलास था। उसने चंद्रिका को देखा तो देखता ही रह गया। सफेद रंग की साड़ी में उसका रूप निखर कर आया था। उसके काले घने बालों में रजनीगंधा के पुष्प वेणी के रूप मे गूँथे हुए थे। उसका यह रूप देख शेखर दरवाजे पर ही खड़ा रह गया।

शेखर को इस तरह दरवाजे पर खड़े हुए देखकर चंद्रिका उसके पास आई और उसकी आंखों में देखते हुए बोली- “इस प्रकार से किसी को अपलक देखना अच्छा नहीं होता।” इतना कहकर चंद्रिका खिलखिला कर हँस पड़ी। उसकी आवाज सुनकर शेखर अपने ख्यालों में से बाहर आया और हड़बड़ाते हुए चंद्रिका के मुंह के आगे थाली करते हुए बोला- “ज्ञात है मुझे, मैं तुम्हारे लिए कुछ फल लेकर आया था। इन्हें खाकर तुम अपनी भूख शांत कर सकती हो।” इतना कहकर शेखर उसे धक्का देते हुए कमरे मे आता हैं और थाली मेज पर रखता है।

शेखर जैसे ही गिलास मेज पर रखकर पीछे पलटता हैं, अपने पीछे चंद्रिका को देखकर डर जाता हैं। चंद्रिका उसे अजीब तरह से घूर रही थीं। शेखर ने कमरे से बाहर जाने की कोशिश करते हुए उससे पूछा- “क्या हुआ? मुझे इस तरह से घूर क्यो रही हो? तुम्हें भूख लग रही होगी। जाकर फल का भोजन करों। मैं अभी आता हूँ।” कहकर जैसे ही शेखर कमरे के दरवाजे पर पंहुचता है चंद्रिका भाग कर उसका रास्ता रोक लेती हैं। जैसे-जैसे चंद्रिका आगे की ओर बढ़ती है, शेखर पीछे हटता जाता है। चंद्रिका उसे शरारत भरी मुस्कान के साथ देखती हैं। शेखर की सांसे थम सी गई। उसने हकलाते हुए पूछा- “तुम मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?” चंद्रिका जोर से हँसी और फिर पलंग पर बैठ गई। उसने थाली में से एक फल उठाया और उसे खाते हुए कहती जा रही थीं- “मैं तो यह देख रही थीं कि तुम्हारी इस छोटी सी नाक पर इतना गुस्सा रहता कैसे है? अच्छा एक बात बताओ, अभी तो हमें मिले हुए ठीक से एक दिन भी नहीं हुआ क्योंकि आठ दिन तो मेरी बेहोशी में ही गुजर गए और तब तुम मुझसे इतने नाराज हो। अब अगर इतने कम समय में तुम्हारा यह हाल है तो अब आगे मेरा क्या होगा।” इतना कहकर चंद्रिका फिर से हँसने लगी। फिर उसे याद आया कि भूख तो शेखर को भी लगी होगी इसलिए वह उठी और शेखर का हाथ पकड़ कर उसे अपने सामने पलंग पर बिठा दिया। फिर एक फल उठाकर शेखर को देते हुए पूछने लगी- “तुम्हारी इस नाराजगी की कोई वजह तो होगी? आखिर मेरा अपराध क्या है?” कहते-कहते चंद्रिका की आंखो में आंसू आ गए।

चंद्रिका की आंखो में आंसू देखकर शेखर का दिल भर आया। उसकी इच्छा हो रही थी कि वो इसी समय उठे और चंद्रिका को गले लगा ले। वो उसे बताना चाहता था कि वो उससे कितना प्यार करता है लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने अपनी आंखो के कोरों पर छलक आए आसूंओं को छुपाया और चेहरे पर एक बनावटी गुस्सा दिखाते हुए चंद्रिका से कहा- “देखो चंद्रिका, ना ही तुमने कोई अपराध किया है और ना ही मैं तुमसे नाराज हूँ। तुम व्यर्थ ही अपने साथ साथ मेरा समय बर्बाद कर रही हो। अच्छा होगा कि तुम थोड़े से फल खाकर विश्राम कर लो।” इतना कहकर शेखर वहां से उठकर जाने लगा तो चंद्रिका ने पीछे से कहा- “अच्छा अपनी नाराजगी का कारण मुझे नहीं बता सकते तो कम से कम नंदिनी को ही बता दो।” चंद्रिका के मुंह से यह नाम सुनकर एक पल को शेखर के चेहरे का रंग सफेद हो गया। वो पलट कर उसे देखने ही वाला था कि उसकी नजर कमरे की एक खिड़की पर गई और वो तुरंत ही कमरे से बाहर चला गया।

शेखर के वहां से जाते ही चंद्रिका को ध्यान आया कि उसने अभी नंदिनी का नाम लिया था। इतना ध्यान आते ही चंद्रिका परेशान हो उठी और सोचने लगी कि आखिरकार उसने वो नाम क्यों लिया, जिसके बारे में वो शेखर को कुछ भी नही बताना चाहती थी और वो खुद भी तो यह नाम पहली बार सुन रही थी। फिर शेखर ने यह नाम सुनकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ना ही कोई सवाल किया। हो सकता है कि गुस्से की वजह से शेखर यह नाम सुन ही ना पाए हो।”

शेखर का ख्याल आते ही चंद्रिका उदास हो गई। शेखर का रूखा व्यवहार चंद्रिका की आंखो के सामने आने लगा। उसकी आखों में आसूं आ गए। उसने फलों की थाली खिसकाई और मेज पर से गिलास उठाकर पानी पिया। उसने महसूस किया कि उसकी भूख शांत हो गई है जबकि उसने केवल एक ही सेब खाया था। फिर उसे नींद आने लगी तो वो मेज पर गिलास रखकर वहीं पलंग पर सो गई। उसके नींद में जाते ही फलों की थाली और मेज़ पर रखा गिलास धुआं बनकर हवा में गायब हो गया।

दर्शना देवी और त्रिपाला उस कमरे की खिड़की से झांक कर यह सब कुछ देख रही थी। त्रिपाला ने खिड़की से दूर हटते हुए दर्शना देवी से कहा- “तुम बेकार ही चिंता कर रही थीं। सब कुछ हमारी योजना के अनुसार ही हो रहा हैं।”

“तुम्हारी बात तो बिल्कुल ठीक है त्रिपाला लेकिन अगर उसे नंदिनी केे बारे में सबकुछ याद आ गया तो परिस्थितियां हमारे विपरीत हो सकती हैं।” दर्शना देवी ने त्रिपाला की ओर मुड़ते हुए कहा।

त्रिपाला के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। उसने दर्शना देवी के करीब आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- “निसंदेह उसे नंदिनी केे बारे में सबकुछ याद आयेगा पंरतु वो यादें हमारी रचाई हुई होंगी।” इतना कहकर त्रिपाला कुटिल मुस्कान के साथ खिड़की में से गहरी नींद में सोई हुई चंद्रिका को देखती है।

उधर किसी के झगड़ने की आवाज से चंद्रिका की नींद खुलती है। कोई बहुत जोर जोर से चिल्ला कर उसका नाम ले रहा था। उसने ध्यान से आवाज सुनी तो उसे समझ में आया कि वो आवाज़ शेखर की थी।

उसने उठकर दरवाजा खोला और बाहर निकल कर देखा तो शेखर शशांक से उसका नाम लेकर झगड़ा कर रहा था। चंद्रिका ने शशांक को पहली बार देखा था इसलिए उसे ये बात थोड़ी सी अजीब लग रही थी कि शेखर किसी दूसरे व्यक्ति से उसके लिए झगड़ा कर रहा था लेकिन किसलिए?

चंद्रिका उन दोनों का झगड़ा रोकने के लिए बाहर के गलियारे की ओर भागी जहां शेखर का झगड़ा शशांक से हो रहा था। वहां पहुंचकर उसने देखा कि शेखर शशांक पर चिल्ला रहा था। वो शशांक से कह रहा था- “देखो शशांक, चंद्रिका को भूल जाओ क्योंकि इसमें ही हम तीनों की भलाई है।”

शेखर की बात सुनकर शशांक ने शांत हो कर कहा- “मैं भी तो तुमसे यहीं कह रहा ‌‌हूँ कि तुम्हें चंद्रिका को भूल जाना चाहिए क्योंकि वो तुमसे नहीं बल्कि मुझसे प्यार करती हैं।”

यह सुनकर चंद्रिका चौंक जाती हैं। इससे पहले कि चंद्रिका इस बारे मे कुछ सोचती, शेखर ने अपने कुर्ते की जेब में से एक धारदार खंजर निकाला और शशांक की ओर कहते हुए बढ़ने लगा- “चंद्रिका केवल मुझसे प्यार करती हैं और उसे मुझे ही प्यार करना होगा।”

इधर चंद्रिका शेखर के हाथ में खंजर देखकर डर गई। उसने शेखर को रोकने के लिए आवाजें भी लगाई लेकिन शेखर तो जैसे कुछ सुन ही नहीं रहा था। वो तो बस धीरे-धीरे शशांक की ओर बढ़ रहा था। उसके सिर पर जुनून सवार हो चुका था। शशांक अपनी जान बचाने के लिए पीछे की ओर जा रहा था कि तभी उसका पैर एक खंभे से टकराया और शशांक को आभास हुआ कि अब उसका बचना नामुमकिन हैं।

शेखर शशांक के करीब आ चुका था और इससे पहले कि चंद्रिका आगे बढ़ कर शेखर को कुछ गलत करने से रोक पाती, शेखर ने ख़ंजर शशांक के पेट मे उतार दिया। यह देखकर चंद्रिका जोर से चीखी। एक पल बाद उसे एहसास हुआ कि वो पलंग पर ही थी और वहाँ पर कोई बर्तन भी नहीं थे। चंद्रिका बहुत घबराई हुई थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह एक भयानक सपना था या सच?

फिर उसे अपने चेहरे पर कुछ गीला सा महसूस हुआ उसने हाथ से छूकर देखा तो उसके होश उड़ गए क्योंकि उसके चेहरे पर खून के छींटे थे। 

जारी........



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