जीवन की दूसरी पारी
जीवन की दूसरी पारी
पैंसठ वर्ष के रामबाबू आज घर से ज्यों ही टाईट जींस और टी.शर्ट ,चश्मा और टोपी पहन बन ..ठन बाहर निकले ,हर किसी की नजर उन पर ही टिकी हुई थी ।लोग कहने लगे लगता है बूढ़ा सठिया गया है ।कल ही की बात है रामबाबू अपने लिए और अपनी संगीनी के लिए अपनी पेईंग गेस्ट रोमा ,जिसे वे अपनी बेटी मानते थे को साथ लेकर माल से शापिंग कर आये थे।
लेकिन सरलाजी उनकी मिसेज ने साफ साफ कह दिया.. "लगता है आप सठिया गये है ,थोड़ा लोगों का तो ख्याल कर लेते अब इस उम्र मे ये क्या जुनून सवार हुआ है ।आपको जो करना है करो मै ऐसे बेढंग कपड़े नही पहनूँगी और ना ही आपके साथ आऊंगी।"
अगले दिन सुबह सवेरे उठ ट्रेक सूट पहन लिया उन्होंने सरलाजी के लिए भी ट्रेक रख दिया "पहन ले बुढिया अच्छा फिल करेगी ।"
लेकिन सरलाजी ने तो मुहं बना दिया कहा.. "आपसे कहा ना आप करो ये बचकानी हरकतें हमसे ना होगी ।"
इतने मे रोमा ने आवाज लगाई .."चले क्या बाबा आप रेडी हैं मार्निंग वाक के लिए ।"
"हाँ हाँ बेटा मै तो तैयार हूँँ पर ये तुम्हारी बूढ़ी अम्मा"?
"क्या हुआ माँ आप तैयार नही हुई "?रोमा ने पूछा।
रोमा उन्हें माँ बाबा से ही संबोधित करती थी खून का रिश्ता ना सही पर वह उनके सगों से भी बढ़करकर थी।
"नहीं बेटा, तेरे बाबा तो सठिया गये हैं ,पर तू तो समझदार है ना।"
अरे, चल बेटा इस बुढिय़ा की बात मत सुन और वे चल दिये।
यह सिलसिला चार पाँच दिन तक चलता रहा रामबाबू यूँ ही तैयार हो बाहर निकल जाते अब तो पास पड़ोस के लोग उन्हें सनकी समझने लगे थे।
एक दिन रामबाबू शाम को घर आये तो उन्होंने देखा सरला सिसक सिसक कर रो रही थी ।
"क्या हुआ सरला? तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना क्या हुआ? कुछ तो बोलो ,ये लो पानी पी लो। क्या हुआ कुछ बोलती क्यों नही मेरा मन घबरा रहा है।"
रोते हुए सरलाजी ने कहा .."आपको पता है आपकी इन हरकतों कु वजह से लोग क्या क्या बाते बना रहे हैं।अपना नहीं तो कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज रखो।"
सरलाजी को चुप कराते हुए रामबाबू ने कहा..
"चुप रहो सरला सुनो मेरी बात...
दो-दो जवान बेटों के होते हुये हमने ने क्या क्या सपने संजोए थे। पोता पोती खेलाएंगे भरा- पूरा परिवार होगा पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था जिन बच्चो को पढ़ा लिखाकर लायक बनाया वे हमें अकेले छोड़ विदेश जा बसे।घर वीरान सा हो गया जीने की कोई उम्मीद ही नहीं बची थी।लेकिन एक दिन मैंने सोचा जो चले गये उनका शोक कब तक मनाएंगे, वैसे भी सारी जिंदगी जिम्मेदारियों को बोझ ढ़ोते ढ़ोते चली गई। अब तो चलो एक बार जी लो जो सपने जिम्मेदारियों को पूरा करते करते अधूरे रह गये ।उन्हें अब पूरा कर लो ।बाकी अगर तुम मेरे साथ हो तो मुझे किसी की फिक्र नहीं है। कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना।"
अगले दिन सरलाजी सुबह सवेरे उठ ट्रैकसूट पहन तैयार हो गई।"सुनो जी मै तैयार हूँ चले क्या।"
सरलाजी को देख रामबाबू देखते ही रह गये ।
यूं क्यों आंखें फाड़ फाड़ देख रहे हो?
तुम्हें देख रहा हूँ आज भी वैसी की वैसी दिख रही हो जैसी चालीस साल पहले दिखती थी।
एक बार ये बुढ़ापे का परदा अपनी आँखों से हटा दो फिर दुनिया अपने आप रंगीन नजर आयेगी।