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Bhim Bharat Bhushan

Fantasy

2.5  

Bhim Bharat Bhushan

Fantasy

उम्रदराज प्रेमी

उम्रदराज प्रेमी

2 mins
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बार-बार घड़ी देखकर टहल रहे डॉ.मेहता अब थकान का अनुभव कर रहे थे, अब वो आराम से बैठना चाहते थे| लेकिन नई दिल्ली के इस प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ थी कि पैर रखने तक की जगह नहीं थी| जैसे तैसे एक बैंच पर थोड़ी जगह मिली तो तेजी से बैठ गए |

पसीना पौछते हुए फिर से ट्रेन की अनाउंसमेंट सुनने की कोशिश करने लगे, अभी लखनऊ स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस पहुँचने में ३० मिनट बाकी थे | जीवन के लगभग 45 बसंत देख चुके, अविवाहित डॉ प्रदीप मेहता को जाने आज किस बात की जल्दी थी जो एक घंटे पहले से स्टेशन पहुचे थे | शायद किसी के आने की प्रतीक्षा थी इसीलिए वे बेचैनी भी महसूस कर रहे थे |

चुपचाप बैठकर शून्य में निहारते हुए न जाने कब अपने अतीत में विचरण करने लगे | 5 वर्ष पूर्व शिखा से उनकी मुलाकात लखनऊ की एक सेमिनार में हुई थी, जहाँ वह जीव विज्ञान की एक विशेष सेमिनार को अपने शोध कार्य के लिए अटेन्ड करने आई थी | अपनी आकर्षक और मोहक छवि से सबको अपना बनाने वाली शिखा को डॉ.मेहता न जानें कब दिल दे बैठे, पता ही नहीं चला | लेकिन समाज, परिवार और अपनी विशेष पहचान के चलते कभी कह नहीं पाए | शिखा ने स्वयं को स्थापित करने में उम्र के 38 साल लगा दिए | जितने भी विवाह प्रस्ताव आये ठुकरा दिए| उम्र के विस्तार के बाद प्रस्ताव भी आने बंद हो गए थे| डॉ.मेहता का प्रस्ताव एक मित्र के पत्र द्वारा मिला तो मना नहीं कर सकी | आज उसके आने की प्रतीक्षा में मन कौतुहल से भरा था, न जाने कितने ही सवालों की भीड़ भावनाओं और संभावनाओं के बीच झूल रही थी|

तभी पीछे से कंधे को जोर से हिलाने पर, डॉ मेहता का ध्यान टूटा, तो देखा शिखा उनके सामने खड़ी थी| जैसे सौन्दर्य की प्रतिमा और स्नेह का एक प्रकाशपुंज उनके समक्ष अचानक अवतरित हुआ हो|

डॉ.मेहता- (चौककर)"अरे,तुम कब आ गयी? ट्रेन आने का पता भी नहीं चला...."

शिखा-"डॉ.मेहता आप कहाँ खोये हुए हो? ट्रेन आये लगभग १० मिनट हो चुके हैं और पूरे प्लेटफार्म पर आपको तलाश कर मैं यहाँ पहुची हूँ| ये ही तो मुश्किल है आदमी की, जिसकी इतने समय तक प्रतीक्षा करता है उसके आने का पता नहीं चला और जब वो सामने आया भी तो उससे बेमाने सवाल करने लगता है| और इसी तरह जिंदगी भर समय की बेंच पर बैठे रहते है, उम्र की ट्रेन निकल जाती और पता भी नहीं चलता...काश, आपने 5 वर्ष पहले ध्यान दिया होता...विलम्ब अवसरों को दफना देता है डॉ.साहब ......अब चलिए"

डॉ.मेहता-"सही कहा तुमने, विलम्ब अवसरों को दफना देता है”

 


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