ना दी उसने भीख
ना दी उसने भीख
ना दी उसनेभीखऔरभगवान को दूध चढ़ा आया
कितनी ईमानदारी से वो अपना धर्म निभा आया
सजदे में रहे सर हर पहर और बदनज़र किसी की जानिब उठा आया
ख़ुदा से करीब होने काफिर वो दावा कर आया
क़मर में बंधा खंजर और मोहल्ले में एक इज़्ज़त गयी उतर
वो बड़ी शान से अपनी पगड़ी पर एक नया रंग फेर आया
हर इतवार को सब से पहले पहुँचता वो गिरिजाघर
सुबह बीवी पर ज़ुल्म करके जो कल रात देर से घरआया