माँ बेटे की दुआ
माँ बेटे की दुआ
एक वक़्त की बात है। एक गाँव था जहाँ पर तक़रीबन 300 घर थे। दो साल हो गए थे और उस गाँव में बारिश नहीं हो रही थी। धीरे धीरे वहां के लोग अपनी ज़मीन बेच कर जाने लगे। सारे झाड़ पानी की कमी से फल देना बंद कर चुके थे। जानवर मरने लगे थे।
पंचायत बिठाई और मश्वरा हुआ की क्या किया जाए की इस साल बारिश हो जाए। बूढ़े बुजुर्ग कहने लगे कि हमसे ज़रूर कुछ गलती हुई है कि ऊपर वाले ने बरसात को रोक लिया है। चंद लोगों ने हवन करवाया। चंद लोगों ने नमाज़ें पढ़ी। चंद लोग दान पुण्य करने लगे। बस अपनी अपनी कोशिशें करने लगे पर कुछ भी फ़र्क़ नहीं हुआ। जदोजेह्द के बाद सब मायूस हो गए थे।
एक बुजुर्ग ने कहा की हम सब गाँव के लोग एक जगह जमा होंगे। दुआ करेंगे और तौबा करेंगे हमारे ही कर्मो की वजह से ये सब हो रहा है। शायद इसी से हमारा पाप धूल जाए।
दूसरे दिन सब लोग मैदान में जमा हो कर दुआएं मांगने लगे , मगर कुछ न हुआ। ऐसा ही तीन दिन तक चलता रहा। तीसरे दिन एक लड़का बग्गी में अपनी माँ के साथ दूसरे गाँव से सफर करता हुआ आ रहा था। उसने देखा की सब लोग एक जगह जमा हुए है , उसने एक आदमी से पूछा की ये सब लोग यहाँ क्यों जमा है?
सारा मामला सुनने के बाद उसने कहाँ की क्या मैं भी आप लोगों की दुआ में शामिल हो सकता हूँ। वो हंस कर बोले की हम तीन दिन से यहाँ दुआ कर रहे है और कुछ भी नहीं हुआ ,चलो भाई तुम भी कोशिश कर लो।
उसने मैदान से हट कर आगे बढ़ा और अपनी माँ का आँचल पकड़ा और कहा “ऐ मेंरे रब, मेंरी माँ के रब, तू मेंरा रब है और इन सबका भी रब है। इन से जो भी पाप हुआ है तू इनको माफ़ कर। मैंने आज तक माँ की कोई बात को इंकार नहीं किया और उनकी बहुत सेवा की है। मेंरी माँ भी इतनी नेक आँचल है की कभी कोई पाप नहीं किया। कभी किसी का बुरा नहीं किया। सिर्फ और सिर्फ तुझे खुश करने। आज तुझको ये सब पुण्य का वास्ता दे कर मांग रहे है , हमारी दुआ की लाज रख ले।
रब को ये दुआ इतनी पसंद आयी के अचानक से बादल घिर आये और बूँद बूँद बारिश बरसने लगी। जब लोगों ने लड़के से पूछा की तुमने ऐसा क्या कहा कि रब ने बारिश बरसा दी। उसने जवाब में कहा, “उस रब के ख़ज़ाने में कोई कमी नहीं है। कमी तो हम में है जो हमको माँगना नहीं आता। अगर सच्चे दिल से मांगे तो वो ज़रूर पूरा करेगा”