उड़ान
उड़ान
हाय राम !” ये क्या है छोकरियाँ पैंट-शर्ट पहन कर घूम रही है और ये जो इन्हें सीखा रहा है वो भी मर्द है...ना बाबा ना, तौबा रे तौबा..मुझे नहीं भेजना अपनी रजनी को शहर ये क्रिकेट वृकेट जैसा खेल सिखवाने।” गांव में रहने वाली रजनी की माँ ने जब से बाजार में राशन वाले की दुकान पर चल रहे टेलीविजन पर क्रिकेट की कोचिंग की खबर देखी थी तब से बस बड़बड़ाये ही जा रही थी, घर पहुँचते ही राशन का थैला एक किनारे रख सीधा बोलने लग गई रजनी के बाऊजी से,
“देखो जी,मैं कहे देती हूँ हमारी रजनी बिटिया नहीं जाएगी शहर क्रिकेट सीखने, उसका टिकट अभी रद्द करवा दीजिये आप, क्या रखा है महिला क्रिकेट बनने में, चूल्हा चौका तो फिर भी संभालना पड़ेगा..ऊपर से लड़की जात, शहर में ना जाने कैसे कैसे लोग और देखा अभी हमने वहाँ के लोगो का पहनावा...यही गाँव में रहकर अपनी पढ़ाई कर ले फिर ओर दौ चार सालों में हाथ पीले कर देंगे फिर जैसे उसके ससुराल वाले चाहेंगे वैसा ही करें,वहाँ जाकर अपना सपना पूरा करें..हमारी ज़िम्मेदारी पूरी हो जाएगी।”
रजनी के बाऊजी अखबार पढ़ते-पढ़ते सारी बातें सुन रहे थे, उन्होंने शांति व धैर्य से काम लेना जरूरी समझा..कुछ देर बाद जब वो शांत हुई तो उन्होंने रजनी की माँ को कहा- “याद है तुझे जब मेरे साथ तेरा ब्याह हुआ था तब तूने मुझे बताया था कि तेरा सिलाई कढ़ाई में बड़ी दिलचस्पी थी लेकिन तेरे माँ-बाप ने अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के कारण यह कहकर तेरा ब्याह मुझसे कर दिया कि जैसा तेरा पति और ससुराल वाले चाहेगे तुझे बिल्कुल वैसे ही करना है ..और आज देख इसी चूल्हे चौके में तेरी पूरी जिंदगी निकल गयी और मैं तेरे लिए कुछ न कर पाया।”
रजनी की माँ के यह सारी बातें सुनकर आँसू निकल पड़े क्योंकि वो अपने सपने को कभी पूरा नहीं कर पाई थी..करती भी कैसे शादी के बाद ज़िम्मेदारिया जो कंधों पर आन पड़ी।
रजनी के बाऊजी की बातों पर वो तपाक से बोली- “भला कोई औरत शादी के बाद अपना सपना पूरा कर पाई है आज तक।”
तो फिर तूने यह कैसे सोच लिया कि हमारी रजनी शादी के बाद महिला टीम में शामिल होकर एक खिलाड़ी बनने का सपना पूरा कर सकेगी...खुद सोच, अपने दिल से पूछ कैसा लगेगा कि जब तू रजनी को खुद की तरह गृहस्थी में सम्पूर्ण रूप से खुद को भुलाकर झोंकते हुए देखेगी..उसके सपने को टूटता हुआ देखेगी..उसके अंदर के हुनर को पहचान...इस रूढ़िवादी सोच से बाहर निकल..जीने दे उसे अपने सपने को।
इतने में ही बाहर से रजनी दौड़ती हुई आयी और अपने बाऊजी के पास बैठी ही थी कि अचानक से माँ बोल पड़ी- “यहाँ बैठी-बैठी क्या करेगी, शहर जाने की तैयारी में चल हाथ बँटा मेरा।” घर में खुशहाली का माहौल बन गया।