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तीन दिन भाग 5

तीन दिन भाग 5

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तीन दिन भाग 5

शुक्रवार 14 अगस्त रात 11 बजे

 

            घटना की पूरी जानकारी लेने के लिए सभी लोग झाँवरमल के कमरे में प्रविष्ट हुए। झाँवरमल अपने कमरे में बेसुध सा पड़ा था। रो-रो कर उसकी आँखों के पपोटे फूल गए थे। लोगों को अपने कमरे में आया देख वो फिर रोने लगा। सबने देखा कि उसकी बांह पर खरोंचने के ताजे निशान थे जो बादाम के नाखूनों से ही बने लग रहे थे। उन खरोंचों को देखते ही सबकी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गई और वे आपस में खुसुर-फुसुर करने लगे। झाँवर के अलावा और कोई घटना के समय बादाम के पास था भी नहीं। इन्ही बातों के आधार पर वे सभी झाँवर को एक स्वर से हत्यारा ठहराने लगे। अब रमन आगे बढे और उन्होंने झाँवर की आँखों में आँखें डाल कर कहा मेरे दोस्त! जरा पूरा किस्सा बताओ कि बादाम कब लापता हुई और तुम्हारी बांह पर यह खरोंच कैसी है?

                    झाँवर ऐसी दृष्टि से उन्हें देखता रहा मानो उनकी बात समझने में उसे काफी दिक्कत हो रही हो फिर काफी प्रयत्न पूर्वक बोला, "जब मैं और बादाम घूमने गए तो मैं थोड़ा आगे निकल गया और बादाम अपने वजनी शरीर के कारण धीरे धीरे आ रही थी। मैं आगे जाकर एक पेड़ के नीचे इंतजार करता रहा और बहुत देर तक बादाम नहीं आई तो में दौड़ भाग कर उसे तलाशने लगा पर वो नहीं मिली और इसी में मेरे हाथ पर किसी कांटेदार पेड़ की खरोंच भी लग गई। और वो फिर रोने लगा। लेकिन वे सब कठोर मुद्रा बनाये उसे घूरते रहे और गुंडप्पा ने शब्द चबा-चबा कर बोलना शुरू किया, झाँवरमल! अबी नाटक बंद करने का क्या? सबको मालुम पड़ गया है कि तुमने इच बादाम भाभी को कुएं में धक्का दिया है।

इतना सुनते ही झाँवर मानो विक्षिप्त सा हो गया उसने पास पड़ा हुआ पीतल का फूलदान उठा कर जोर से गुंडप्पा को दे मारा और चीख-चीख कर सबको गालियां देने लगा। कुत्ते साले! आये थे पिकनिक मनाने! एक तो मेरी बीवी मर गई ऊपर से मुझपर इल्जाम लगा रहे हैं! मैं सबको मार डालूँगा। किसी को नहीं छोड़ूंगा। और वह विक्षिप्तों की तरह चीजें उठा-उठा कर लोगों पर फेंकने लगा। 

उसकी उग्र मुद्रा देखकर चंद्रशेखर और गुंडप्पा ने लपक कर उसे दबोच लिया और पलंग की चादर से उसके हाथ पाँव बाँध दिए। अब वह हिल भी नहीं सकता था। फिर सब बाहर आ गए और विचार करने लगे कि क्या किया जाए। 

सभी उस क्षण को कोस रहे थे जब इस नामुराद पिकनिक का ख़याल रमन के दिमाग में आया था। रमन खुद परेशान हो गए थे। वे गहन सोच की मुद्रा में कुर्सी पर बैठे थे। छाया उनके घुंघराले बालों को सहलाती रही। अभी झाँवर विक्षिप्तावस्था में था हो सकता था कि सुबह तक वह नॉर्मल हो जाता। इतनी देर में सुदर्शन वहाँ आये और बोले रमन भाई! बादाम की बॉडी का क्या किया जाए? अंतिम संस्कार न किया तो सुबह तक बदबू उठने लगेगी। 

रमन ने सहमति में सर हिलाया और बोले सुदर्शन ! सुबह तक रुकना ही होगा। आखिर झाँवर ही तो उसका अंतिम संस्कार करेगा न! हो सकता है सुबह तक वो नार्मल हो जाए और ये भी कोई ज़रूरी नहीं है कि  उसने ही बादाम का खून किया है! हो सकता है कामना से भूल हुई हो और बादाम सचमुच फिसल कर मरी हो। अभी से कोई राय बनाना जल्दबाजी होगी। 

सुदर्शन ने सहमति में सर हिलाया और चले गए। 

वहाँ लगभग सभी महिलाओं को बहुत डर लग रहा था। उन्ही की एक साथी अब मृत अवस्था में बगल के कमरे में पड़ी है यह विचार ही भयोत्पादक था। मधुलिका अपने कमरे में सिसक रही थी और गुंडप्पा उसे ढाढ़स बंधा रहा था। मधु ने गुंडाप्पा से पूछा, "आखिर झाँवर ने बादाम को क्यों मारा होगा? गुंडप्पा बोला, "अरे बाबा! सिम्पल है न! मियाँ बीवी और वो! कोई पसन्द आ गया होगा मारवाड़ी बाबू को। अब बादाम भाभी तो फूल कर हाथी हो गई थी तो इधर मौका देख के कुएं में धक्का मार दिया रहेगा और क्या! 

यह सुनकर मधु और जोर जोर से हिचकियाँ लेकर रोने लगी। गुंडप्पा उसे चुप कराने लगा। इधर एक कमरे में बादाम बाई की फूली हुई लाश पड़ी थी तो दूसरे कमरे में उसका पति झाँवर बन्धी हुई अवस्था में पड़ा था। अजीब किस्मत थी।

कहानी अभी जारी है .......

क्या अगले दिन झाँवर मल ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया ? जानने के लिए पढ़िए भाग 6


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