थरथराती स्नेह की बाती
थरथराती स्नेह की बाती
याद आ गया उसे शादी होने के बाद गाँव में कदम रखते ही सुना था इस रीत के बारे में। और आज उसकी सास भी रख गई थी बड़ा सा पत्थर उस कोठरी में।
कुलदीपक ना आया तो जरूरत पड़ जायेगी ना उस पत्थर की .थरथराती स्नेह की बाती काँप रही थी।पर फिर कर बैठी वो फैसला यह कपंकपाने का वक्त नहीं था। यह पत्थर तो इस्तेमाल जरूर होगा पर सही जगह पर ।अपनी नवजात बेटी को गोद में लेकर दरवाजा खोल दिया उसने एक हाथ सें ....
दूसरे हाथ में था वही पत्थर बेटी की रक्षा के लिए।