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ARUN DHARMAWAT

Drama

1.0  

ARUN DHARMAWAT

Drama

किनारों के बीच

किनारों के बीच

3 mins
473


"ओह अमित ....आई मिसिंग यू बेडली, प्लीज़.... आ जाओ ना इंडिया, बहुत याद आती है तुम्हारी।"

निधि ने जब फोन पर अमित को कहा तो दोनों ही इमोशनल हो गए .... 

अमित मल्टी नैशनल कंपनी में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, जो डेपुटेशन पर विदेश गया हुआ है। निधि भी सी ए है जो अच्छे पैकेज पर अपने ही देश में जॉब कर रही है। दोनों की मुलाकात सोशल मीडिया पर होती है। फ्रेंडशिप से आगे इनबॉक्स चैटिंग और फिर प्यार के जज़्बात हिलोरें लेने लगते हैं। प्यार का इज़हार होने के बाद अमित इंडिया आता है निधि से मिलता है। दोनों साथ साथ घूमते हैं, वक़्त बिताते हैं और ये प्यार, शादी के निर्णय में बदल जाता है। दोनों अपनी इंगेजमेंट रिंग भी एक दूजे की पसंद से खरीद लेते हैं और बहुत जल्द पहनाने का वादा करते हैं।

अमित मध्यम परिवार का लड़का है जिस पर अपने वृद्ध माता पिता की जिम्मेवारी भी है।

निधि एक महत्वाकांक्षी लड़की है जो जीवन में आगे बढ़ना चाहती है उसका सपना है महानगर में अपना फ्लैट हो गाड़ी हो और आराम की सभी चीजें हो। इसीलिए उसने अभी से एक फ्लैट बुक करवा दिया जिसकी हर महीने किश्त देने के बाद उसके पास अपना खर्चा चलाने के लिए पर्याप्त राशि ही बचती है। निधि को अपने इस फ्लैट के लिए पूरे पच्चीस साल तक किश्त चुकानी है। 

उधर अमित जो डेपुटेशन पर गया है उसे कंपनी पूरे पांच साल तक रहने को बाध्य करती है। अपने परिवार की जिम्मेवारी और नौकरियों के अकाल को देखते हुए अमित विदेश में ही रहने को बाध्य है। 

निधि, अमित को कहती है वो यदि नौकरी छोड़ कर उससे शादी करके विदेश आ जाती है तो अमित को ही उसके फ्लैट की किश्त चुकानी होगी। 

अमित समझ नहीं पाता, क्या करे .... न वो नौकरी छोड़ सकता है ना इंडिया आ सकता है और न निधि की नौकरी छुड़वा सकता है।

एक दिन अमित, निधि से कहता है-

"सुनो निधि ....आज हम दोनों की उम्र पेंतीस साल है और हम दोनों ही अपनी अपनी मजबूरियों में फंसे हुए हैं तुम मेरी खातिर हमारी शादी की खातिर अपना फ्लैट निकाल दो और शादी करके मेरे साथ विदेश आ जाओ। जरा सोचो निधि पच्चीस साल तक किश्त देने का मतलब हम दोनों साठ की उम्र तक न ठीक से रह पाएंगे और न जी पाएंगे बल्कि जीवन की सांझ ढलने तक कर्जदार बने रहेंगे और इस बीच हमारे परिवार का क्या होगा । हमने कोई बेबी चाहा तो उसका पालन पोषण, पढ़ाई लिखाई कैसे होगी मैं और तुम क्या अपना सामान्य जीवन जी पाएँगे ?.....बताओ निधि।"

"अमित ..... मेरा सपना है महानगर में मेरा अपना फ्लैट हो, क्या तुम चाहते हो मैं अपना ये सपना तोड़ दूँ ? नहीं अमित नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती मैं अपने सपने को नहीं तोड़ सकती।"

दोनों के दरमियान एक सन्नाटा व्याप्त हो जाता है ..... दोनों अपनी अपनी इंगेजमेंट रिंग हाथों में लिए सोचते रह जाते हैं, सोचते रह जाते हैं। 

जिम्मेवारी और महत्वकांक्षा के दो किनारों के बीच ख़ामोशी का गहरा समंदर बह निकलता है ...!


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