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Nitin Srivastava

Crime Drama Thriller

3.7  

Nitin Srivastava

Crime Drama Thriller

भ्रम

भ्रम

17 mins
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सड़क से कार को थोड़ा कच्चे में उतार कर दिलीप ने ब्रेक लगाया और पीछे मुड़ कर बोला,

"लो भाई पहुँच गये, मगर ध्यान से, सुना है यहाँ जगह - जगह धसकने वाली मिट्टी है ।"

रीना झटके से कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकली और बोली,

"अब तू फालतू डरा मत, यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है, ये सब अफवाह है।"

"अरे सुन मेरी झाँसी की रानी जरा आराम से चल, हो सकता है अफवाह हो मगर सतर्क रहने में कोई हर्ज तो नहीं है ना। सब साथ साथ रहेंगे ।"

माधव भी कार से बाहर आ गया । रीना ने मुँह बनाया और आगे बढ़ गई । पीछे पीछे गीता, अनुराग और दिलीप भी कार बंद करके आ गये । गीता घबराई आवाज में,

"जब सभी मना कर रहे थे तो यहाँ आने की जरूरत ही क्या थी, जानबूझकर तुम सब मुसीबत को बार बार दावत क्यों देते हो । पिछली बार भी रीना की दिलेरी के चक्कर में..."

वो कहते कहते चुप हो गई । दिलीप उसको समझाते हुए बोला, "तब में और अब में फर्क है ! यहाँ किसी तरह का कोई खतरा नहीं है , ये सब रेत धसकने की बात केवल सुनी सुनाई है शायद अफवाह ही हो।"

हालांकि गीता संतुष्ट नहीं लग रही थी फिर भी सबके साथ आगे चल दी ।

सड़क से उतरते ही दूर तक फैली रेत उसके आगे शोर मचाती गंगा नदी का तेज बहाव और सामने ऊंचा पर्वत, कुल मिलाकर रोमांचित करने वाला दृश्य था ऋषिकेश से थोड़ा आगे स्थित शिवपुरी नामक इस दर्शनीय स्थल का जो नदी के तेज बहाव और धसकने वाली रेत के लिए मशहूर है। सबसे आगे रीना भागती हुई नदी के बिलकुल पास तक पहुँच गई । पांचो अभी तक रेत के इस ओर ही खड़े थे । रीना हाथ हवा में हिला कर चिल्लाई,

"अरे अब आ भी जाओ कब तक डरते रहोगे, देखो मैं बिलकुल ठीकठाक हूँ यहाँ कुछ भी नहीं है ।"

बाकी दोनों तो आगे बढ़ गए मगर गीता अब भी हिचकिचा रही थी माधव ने उसकी ओर देखा तो उसके चेहरे पर अभी भी डर के भाव थे । वो शायद पिछली घटना की दहशत से बाहर नहीं आ पा रही थी। उसकी ओर देखते हुए पूरा वाकया माधव की आंखों के सामने घूम गया जब रीना इसी तरह धनौल्टी की बर्फ पर दौड़ गयी थी और अचानक फिसल कर गिर गई थी और उसके गिरने से गीता भी अपना संतुलन खो बैठी थी, दोनों फिसलते हुए बिलकुल पहाड़ के किनारे तक पहुँच गईं जिसके आगे गहरी खाई थी। रीना ने अपने को किसी तरह संभाल लिया मगर गीता न बचती अगर ऐन मौके पर दिलीप ने उसे पकड़ा नहीं होता । वहाँ भी सुरक्षा कर्मियों ने सभी को बर्फ पर संभल कर चलने की सलाह दी थी, मगर रीना सबको अनदेखा करते हुए गीता का हाथ पकड़ कर बर्फ पर दौड़ते हुए पहाड़ पर चढ़ने लगी और फिसल गई।

उस घटना ने सभी को, खासकर गीता को बहुत डरा दिया था ! वो बहुत दिनों तक कहीं घूमने भी नहीं गई लेकिन रीना पर कोई असर नहीं था, वो अब भी वैसे ही बिंदास और दिलेर थी ।

माधव ने गीता का हाथ पकड़ा और उसे हिम्मत दी,

"घबराओ नहीं ! हम सब हैं ना, चलो हिम्मत करो और आगे बढ़ो, देखो सब रेत में चल रहे हैं और कोई खतरे वाली बात नहीं है ।" इतने में दिलीप भी भागता हुआ आ गया,

"चल ना मैं हूँ ना डरने वाली कोई बात नहीं है ।"

और वो उसका हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए आगे ले गया । कभी खुलकर कहा तो नहीं मगर जिस तरह दोनों एक दूसरे से पेश आते थे और एक दूसरे का ख्याल रखते थे उससे लगता था कि वो एक दूसरे को पसंद करते थे ।

दोनों हाथ पकड़े आगे आगे चल रहे थे और माधव उनके पीछे पीछे पुरानी बातें याद करता हुआ। पांचों की मुलाक़ात देहरादून इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले वाले दिन हुई थी। रीना के अलावा सब छोटे शहरों से पहली बार देहरादून जैसे शहर में आये थे जो अपनी खूबसूरती और जिंदादिली के लिए मशहूर था। रीना दिल्ली से थी, एकदम बिंदास और तेज तर्रार। गीता और रीना कॉलेज आने से पहले मिल चुके थे क्योंकि दोनों देहरादून में अपने रिश्तेदारों के यहां रुके थे जो इत्तेफ़ाक़ से पड़ोसी थे। माधव, दिलीप और अनुराग सुबह से ही हम एडमिशन फार्म भरने से लेकर फीस भरने और बाकी औपचारिकताओं में लगे हुए थे और इसी बीच बार बार मुलाकात होते होते सबकी आपस में जान पहचान हो गयी। शाम को सब काम ख़त्म करके सब वापस हो गए एक हफ्ते बाद आने के लिए जब क्लासेज शुरू होनी थीक्लासेस शुरू हुई और साथ साथ दोस्ती भी। कुछ दिन बाद सबने दिलीप को कई बार रीना और गीता से बात करते हुए देखा, बाद में पता चला कि तीनों ने कॉलेज के बाद कंप्यूटर क्लास भी ज्वाइन कर ली थी और वहाँ से इनकी दोस्ती हो गयी थी। धीरे धीरे पांचो की दोस्ती हो गयी और अपने गैंग से पहचाने जाने लगे। हर छुट्टी में सब कहीं न कहीं घूमने का प्लान बना लेते।

अचानक रीना की आवाज़ से माधव का ध्यान टूटा,

"आ जा गीता ! देख कितना मजा आ रहा है। चल रेस मिलाते हैं !" रीना जोर से बोली।

गीता ने वहीँ खड़े खड़े जवाब दिया,

"ना बाबा तू ही कर, रेस तेरी रेस के चक्कर में पिछली बार ऊपर ही पहुँच जाती।"

"कुछ नहीं होगा चल मैं भी हूँ रेस में, दिलीप और माधव भी हैं, जो जीतेगा सब उसे पार्टी देंगे, ठीक है !"

अनुराग ने सब की ओर इशारा करके कहा। माधव और दिलीप ने एक दूसरे की ओर देखा और दिलीप ने गीता की ओर देखा फिर एक हाथ से उसका हाथ पकड़ा, दूसरे हाथ से माधव का हाथ पकड़ा और सब रीना और अनुराग की ओर बढ़े । अनुराग ने रेस के लिए रास्ता निश्चित किया और सब नदी के साथ साथ दौड़ते हुए रेस लगाने लगे।

सबसे आगे अनुराग फिर रीना और दिलीप थे, माधव और गीता हमेशा की तरह सबसे पीछे । दौड़ते दौड़ते रीना का पैर एक पत्थर पर पड़ा और वो अपनी जगह से खिसक गया लेकिन वो संभल कर आगे बढ़ गई, वो एक क्षण के लिए ठिठकी और दिलीप को इशारा करके चिल्लाई,

"यहाँ थोड़ा ध्यान से !"

फिर आगे दौड़ गई। दिलीप कूद कर आगे बढ़ गया लेकिन कुछ दूर जाकर वापस आ गया, शायद उसका अंदाजा सही था तब तक गीता वहाँ पहुँच चुकी थी और उसका पैर पड़ते ही उस जगह की रेत अंदर धंसने लगी, लड़खड़ाती गीता का हाथ पकड़ कर दिलीप ने एक ओर धकेल दिया । गीता मुँह के बल गिर गई, उठकर उसने पलट कर देखा तो उसकी चीख निकल गई ।

चीख सुनकर अनुराग और रीना भी ठिठक गये, दोनों वापस भागते हुए वहाँ पहुँचे तो वहाँ का नजारा सचमुच डरावना था । दिलीप लगभग कंधे तक रेत में धंसा हुआ था और माधव पूरी ताकत से उसे बाहर खींच रहा था गीता भी उसका साथ दे रही थी लेकिन उनकी कोशिश सफल नहीं हो रही थी । अनुराग उन लोगों की ओर देखकर चिल्लाया,

"थोड़ी देर इसे ऐसे ही रोकने की कोशिश करो मैं कहीं से रस्सी लेकर आता हूँ उसके बिना हम इसे बचा नहीं पाएँगे ।"

वो भाग कर सड़क की ओर गया और कुछ मिनटों में वापस आया लेकिन तब तक देर हो गई थी और दिलीप पूरी तरह रेत में समा चुका था । माधव सिर पकड़ कर घुटनों के बल बैठा था, रीना और गीता वहीं बैठ कर रो रही थीं ।

अनुराग भी उन लोगों को देखकर वहीं घुटने के बल बैठ गया ।

दो दिन बाद, माधव, अनुराग, रीना और गीता कालेज कैंटीन में उदास बैठे थे । माधव ने चुप्पी तोड़ी,

"जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ, हमें शायद वहाँ जाना ही नहीं चाहिए था, कल दिलीप के घर वाले उसका सामान लेने आने वाले हैं उनका सामना करना मुश्किल होगा ।"

गीता जोर जोर से रोते हुए बोली,

"मैं तो पहले ही कह रही थी ऐसी जगह जाना ही नहीं चाहिए था लेकिन इस रीना को हमेशा जोश सवार रहता है । इसी की वजह से ये सब..."

अनुराग उसकी बात काट कर बोला,

"ऐसा मत कहो, जो हुआ वो सिर्फ एक दुर्घटना थी ! किसी की कोई गलती नहीं है ।"

रीना चिल्लाई,

"बिलकुल गलती है ! सब इस गीता के कारण हुआ । मरना तो इसे था लेकिन वो बेवकूफ इसे बचाने के चक्कर में खुद मौत के मुँह में चला गया । मैं इसे कभी माफ नहीं कर सकती ।"

माधव और अनुराग आश्चर्य से एक दूसरे को देख रहे थे, उन्हें रीना का व्यवहार कुछ अजीब लग रहा था । गीता अभी भी मेज पर अपना मुँह छुपाये रोती जा रही थी ।

अगले दिन ग्यारह बजे डीन के आफिस से चारों का बुलावा आया, जब वो लोग आफिस में पहुँचे वहाँ दिलीप के मम्मी और पापा बैठे हुए थे । दिलीप के पापा का चेहरा बिलकुल भावहीन था मगर माँ की आँखें रो रो कर सूख गयी थीं। डीन ने चारों की ओर इशारा करके बताया,

"जब ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुयी तो ये चारों उसके साथ ही थे, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। "

दिलीप के पापा बोले,

"सच कह रहे हैं आप, होनी को कौन टाल सकता है ? इस बेचारी बच्ची की क्या गलती ! किसी को क्या पता की वहाँ की मिटटी ही धंस जाएगी। "

डीन,

"किसकी बात कर रहे हैं आप ?"

वो इस बात पर थोड़ा हड़बड़ा गए,

"जी वो मुझे कोई बता रहा था कि दिलीप किसी लड़की को बचाने के चक्कर में वहां फंस गया था।"

कोई और कुछ बोलता इससे पहले गीता बोल पड़ी,

"मैं ही वो बदनसीब लड़की हूँ जिसे बचाने के चक्कर में उसकी जान गयी।"

और वो फिर रोने लगी। दिलीप के पापा थोड़े संतुष्ट से हो गए मगर उसकी मम्मी रोने लगी मगर इसके बाद भी उन्होंने निगाह ऊपर नहीं उठाई। थोड़ी ही देर में वो सब बाहर निकल गए। दिलीप के मम्मी पापा दिलीप का सामान लेकर चले गए और बाकि चारों अपनी क्लास में चले गए। क्लास के बाद माधव अपने कमरे में चला गया फिर अचानक उसे याद आया कि वो अपनी एक किताब क्लास में भूल गया। वो भाग कर क्लास में गया, किताब वहीँ मेज पर थी वो किताब लेकर वापस कमरे की ओर जाने लगा कि तभी उसे गलियारे के दूसरी ओर से कुछ जानी पहचानी आवाज सुनाई दी। वो धीरे धीरे आवाज की ओर बढ़ा, पास पहुँचने पर उसे बातें साफ़ सुनाई देने लगी।

"देख अनुराग, मेरा दिमाग ख़राब मत कर ! मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ। यहाँ मेरी जिंदगी में भूचाल आ गया और तू मुझे प्रोपोज़ कर रहा है। तेरा दिमाग ठिकाने पर नहीं है। तू जा यहाँ से।" ये रीना की आवाज थी।

"देख रीना पिछली बार तूने कहा था वो तुझमें इंटरेस्ट ले या न ले पर तू उसका इंतज़ार करेगी लेकिन अब तो वो इस दुनिया में ही नहीं रहा तो इंतज़ार का कोई सवाल ही नहीं है।" अनुराग की आवाज सुनाई दी।

झुंझलाहट भरी आवाज में रीना बोली,

"इतनी मुश्किल से तीसरी बार में जाकर जीत के इतने करीब पहुंची थी लेकिन दिलीप की एक गलती ने जीत को हार में बदल दिया।"

अनुराग, "मतलब ?"

रीना, "मैंने जब दिलीप को प्रोपोज़ किया तब उसने मुझे बताया था कि वो गीता को पसंद करता है और उसके सिवा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकता, मैंने तभी इस गीता को रास्ते से हटाने की कोशिश शुरू कर दी थी लेकिन हर बार ये बच जाती थी जैसे बर्फ पर मैंने जान बूझ कर उसे खाई की ओर धकेला लेकिन दिलीप ने उसे बचा लिया। इस बार तूने जब रेस वाला रास्ता बताया तो मैं तरह निश्चिन्त थी कि इस बार वो नहीं बचेगी क्यूंकि मैंने पहले वो जगह देख रखी थी। लेकिन मेरी किस्मत ही ख़राब निकली। अब जो भी हो इसने मेरा प्यार छीना है वो भी हमेशा के लिए मैं इससे जिन्दा तो नहीं रहने दूंगी।"

अनुराग आश्चर्य से बोला,

"बड़ी खतरनाक है तू तो लेकिन तेरी वजह से मेरा काम हो गया।"

रीना, "क्या मतलब ? मुझसे दूर रहना वरना अच्छा नहीं होगा।"

अनुराग, "क कुछ नहीं कुछ नहीं।"

सब सुनकर माधव को चक्कर आने लगे, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।

किसी ने माधव के कंधे पर हाथ रखा, माधव ने घबरा कर पीछे देखा तो नवीन सर खड़े थे। नवीन सर कॉलेज एडमिन और सिक्योरिटी के इचार्ज थे साथ ही हॉस्टल के वार्डन भी। माधव एक सीधा साधा और पढ़ने में तेज लड़का था इसलिए सभी की तरह नवीन सर भी उसे पसंद करते थे। माधव का घबराया चेहरा देख कर उन्हें चिंता हुई,

"क्या बात है माधव ? कोई परेशानी है तो मुझे बताओ।"

एक बार तो वो डर गया लेकिन फिर उनके बार बार पूछने पर उसने सारी बात उन्हें बता दी साथ ही उसने ये भी कहा कि उसे अनुराग की भूमिका पर भी शक है । नवीन सर भी चिंतित हो गए क्योंकि एक तरफ किसी की इन्साफ दिलाना जरूरी था दूसरी ओर अपने ही कॉलेज के बच्चों पर इल्जाम आने से कॉलेज की प्रतिष्ठा पर भी दाग लग सकता था। नवीन सर ने उसे कमरे में जाकर आराम करने को कहा और खुद डीन के कमरे की ओर चले गए। नवीन सर ने पूरी बात डीन को बताई जिसे सुन कर डीन का भी दिमाग कुछ देर के लिए घूम गया। लेकिन फिर दोनों ने सोच समझ कर ये फैसला किया कि पहले दोनों के साथ सख्ती के साथ बात करके सच्चाई का पता लगाना पड़ेगा।अगले दिन डीन ने रीना और अनुराग को ऑफिस में बुलाया, वहां नवीन सर भी मौजूद थे। डीन सर ने सबसे पहले रीना की ओर देख कर कहना शुरू किया,

"देखो हमने तुम्हें यहां कुछ जरूरी बात करने के लिए बुलाया है, शुरू करने से पहले तुम दोनों को ये बता देना चाहता हूँ की जो भी पूछा जाये उसके बारे में जितना भी सच पता है बता देना क्योंकि हमें पता है की सच तुम जानते हो। अगर कुछ भी छुपाने की कोशिश करोगे तो तुम्हारे लिए मुश्किल होगी।"

रीना और अनुराग ने आश्चर्य से एक दूसरे की ओर देखा फिर सामने देख कर एक साथ बोले,

"ऐसी कौन सी बात है सर ?"

नवीन सर ने बोलना शुरू किया,

"दिलीप की मौत दुर्घटना नहीं थी।"

वो एक मिनट रुक कर बोले,

"हमें ये बात पता है, और अब हम तुमसे जानना चाहते हैं की सच क्या है, क्या हुआ था ? ठीक ठीक बताओ।"

दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी, अनुराग हकलाते हुए बोला,

"सर ये आप क्या कह रहे हैं। दिलीप हम चारों के सामने रेत के अन्दर धंस गया था। आप चाहें तो गीता और माधव को भी बुला लीजिये। उसकी मौत एक दुर्घटना ही थी।"

नवीन सर गंभीर आवाज में बोले,

"हो सकता है उसकी मौत रेत में धंसने से हुई हो लेकिन उसे वहाँ तक जान बूझ कर पहुँचाया गया था। मुझे ये भी पता है की तुममे से किसने ये साजिश रची है लेकिन मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ।"

"नहीं नहीं सर मैंने कोई साजिश नहीं की वो तो रीना... "

अनुराग घबराई आवाज में बोला ।

"क्या बकवास कर रहे हो, मैंने कुछ नहीं किया । रेस का रास्ता तुमने तय किया और तुम उस पर सबसे आगे थे फिर भी तुम्हें कुछ नहीं हुआ । इसका मतलब तुम्हें उस जगह के बारे में पता था इसलिए तुम बच कर निकल गये लेकिन सर इसने हमें आगाह नहीं किया जिससे हम खतरे में पड़ गये । मैंने तो दिलीप को बचाने के लिए उसे आगाह भी किया था मगर उसने गीता को बचाने की कोशिश की और खुद वहाँ धंस गया । अगर साजिश हुई है तो वो अनुराग ने ही की होगी ।"

अनुराग बौखला गया,

"ये बिलकुल झूठ बोल रही है, इसने मुझे खुद बताया था कि ये गीता को मारना चाहती थी इसलिए उसे जानबूझकर वहाँ ले गई लेकिन गलती से दिलीप मर गया । ये सब इसकी ही साजिश थी ।"

"सर अनुराग झूठ बोल रहा है, ये सब इसने ही किया है और इस साजिश का एक गवाह भी है ।"

ये आवाज माधव की थी और सबने पलट कर उसकी ओर देखा, उसके साथ कोई और भी था।

माधव के साथ संजीव खड़ा था, संजीव और अनुराग छात्रावास में एक ही कमरे में रहते थे । माधव संजीव को लेकर डीन के आफिस में दाखिल हुआ । माधव,

"सर संजीव को कुछ ऐसी बातें पता हैं जो शायद इस मामले में रोशनी डाल सकती हैं । संजीव तुम्हें जो कुछ भी पता है डीन सर को बताओ।"

संजीव घबराया हुआ सा लग रहा था, उसने एक बार माधव की ओर देखा फिर अनुराग की ओर जो उसे बुरी तरह घूर रहा था । डीन सर की आवाज गूँजी,

"किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं है, तुम्हें जो कुछ भी पता है हमें बता दो, जो भी गुनाहगार है उसे सजा मिलनी चाहिए ।"

संजीव ने धीरे से बोलना शुरू किया,

"सर मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं है, मैंने कुछ बातें सुनी थीं वो ही मैंने माधव को बतायीं ।" रुक कर वो दुबारा बोला,

"करीब दो हफ्ते पहले की बात है अनुराग देर रात किसी से बात कर रहा था जिसमें इसने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन इसने पहाड़ी नदी के किनारे रेत में धंसने की बात की और इसने उससे ये भी कहा कि उसका काम हो जायेगा केवल वो काम की कीमत तैयार रखे। आज जब माधव मेरे पास आकर अनुराग की पिछली गतिविधियों के बारे में पूछ रहा था तो मुझे ये बात याद आ गयी। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानता।" अभी संजीव की बात पूरी ही हुई थी कि अनुराग बाहर की ओर भागा लेकिन दरवाज़ा खोलते ही सामने दो सिक्योरिटी गार्ड खड़े थे उन्होंने उसे पकड़ा ओर उसे लेकर वापस अंदर आ गए।

डीन ने जोर की आवाज में कहा,

"तुमने भाग कर सारी अटकलों को सच साबित कर दिया है इसलिए तुम्हें मैं आखिरी मौका दे रहा हूँ सब सच सच बता दो वर्ना पुलिस के पूछने का तरीका जरा अलग होता है। "

अनुराग रोते हुए डीन के पैरों में गिर गया,

"सर मुझे बचा लो मैंने कुछ नहीं किया है अगर मुझे सजा हुई तो मेरे मम्मी पापा मर जायेंगे उनके लिए ही मैं लालच में आ गया। मुझे पैसों का लालच दिया गया था दिलीप को मारने के लिए और ये एक दुर्घटना लगे इसलिए ये सब साजिश की गयी।

मुझे पता था की रीना गीता से नफरत करती है और उसे मारना चाहती है क्यूंकि मैं रीना और दिलीप के बीच की बात सुन चुका था, इसलिए मैंने ही रीना को ऐसी जगहों के बारे में जानकारी दी जहां जाकर वो गीता को मारने की कोशिश करे और जब गीता खतरे में होगी, दिलीप गीता को बचाने की कोशिश जरूर करेगा और जैसे ही वो मौत के मुंह में पहुंचेगा तो मैं थोड़ी और मदद करके अपना काम कर लूंगा, इस तरह मुझपर कोई शक भी नहीं करेगा। मैंने जानबूझ कर रेस का रास्ता ऐसा चुना जो ठीक उस जगह से जाता था जहां की रेत अन्दर को धंसती है। मुझे पता था रीना भी इस जगह के बारे में जानती है इसलिए उसको उकसाना आसान था। रीना को लग रहा था गीता इस बार बच नहीं पायेगी लेकिन ऐन मौके पर दिलीप ने उसे धक्का दे दिया और खुद लड़खड़ा कर वहीं गिर गया। मैं अपनी कामयाबी पर खुश तो था मगर कोई उसे बचने की कोशिश न कर पाए इसलिए सबको उलझाकर रस्सी लेने चला गया थोड़ी देर मैं लौटा तब तक काम हो चुका था और मैं उस जगह मौजूद भी नहीं था जिससे मुझपे शक नहीं जा सकता था। मैंने कभी भी उस इंसान से खुल कर बात नहीं की जिससे कि अगर कोई बात सुने भी तो उसे पता न चले कि क्या बात हुई है, मगर न जाने कैसे माधव और संजीव को शक हो गया।

डीन सर गंभीर आवाज में बोले,

"लगभग सारी बातें साफ़ हो गयी हैं सिवाय एक बात के, वो इंसान कौन है जो तुम्हें दिलीप को मारने के लिए पैसे दे रहा था और वो ऐसा क्यों कर रहा था ?"

अनुराग,

"सर मुझे दिलीप के पापा ने पैसे देने की बात की थी, उन्हें ये बात पता थी की मैं और दिलीप एक ही लड़की को पसंद करते हैं और वो लड़की रीना है। "

माधव,

"तू बातों को उलझाने की कोशिश मत कर, दिलीप के पापा उसे क्यों मारना चाहेंगे ?"

अनुराग,

"मैं कुछ उलझा नहीं रहा जो सच है वही बता रहा हूँ, दिलीप के पापा उसे इसलिए मारना चाहते थे क्यूंकि वो उनका सौतेला बेटा था और एक हज़ार करोड़ के बिज़नेस का अकेला मालिक जो उसके असली पिता ने अपनी वसीयत में उसके नाम कर रखा था। दिलीप की मम्मी ने अपने दोस्त और कंपनी के जनरल मैनेजर के साथ मिलकर उनकी हत्या करवा दी और उसी से शादी कर ली। शादी के बाद उन लोगों को पता चला कि सारा बिज़नेस दिलीप के नाम है इसलिए वो बहुत सालों से उसकी हत्या का षड़यंत्र रच रहे थे। मैं एक गरीब परिवार से हूँ मेरे पापा बहुत मेहनत करके भी मेरी पढाई का खर्च मुश्किल से उठा पा रहे हैं इसलिए मैं पैसो की लालच में आ गया और...."

वो बोलते बोलते रो पड़ा। डीन सर और नवीन सर ने एक दूसरे की और देखा फिर कुछ निर्णय लिया और पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करवा दी।

दिलीप के पापा और मम्मी को हत्या के षड़यंत्र के लिए उम्र कैद की सजा हुयी। अनुराग को गवाही देने की वजह से सजा में राहत मिली और केवल सात साल की सजा हुई। रीना को षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से कॉलेज से निकल दिया गया। कॉलेज में सभी को आगाह किया गया कि जो भी कॉलेज से बाहर जायेगा वो सिक्योरिटी को बताएगा की कहाँ जा रहा है और कब तक आएगा जिससे ऐसी किसी घटना को भविष्य में होने से रोका जा सके !


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