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अपशगुनी

अपशगुनी

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हे भगवान, कितनी अपशगुनी लड़की है, क्यों मैं अपने बेटे की शादी इससे करने को तैयार हुई। सब लोगों ने कितना मना किया था मगर मैं ही पागल थी। मेरी मत ही मारी गयी थी, जो मैं तैयार हो गयी। अच्छा हुआ कि शादी नहीं हुई नहीं तो क्या हो जाता, अभी तो केवल एक्सीडेंट हुआ है। शादी हो जाती तो मेरे बेटे की जान पर बन आती। यह कहते हुये लीला देवी ने भरी हुई थाली जिसमें पूरा सुहाग का सामान था, दुल्हन के सामने फेंक दी और उल्टे पैर वापस चली गई और सब लोग जो उसके साथ आये थे वो भी वापस चले गये। 

यह सब मंगला की शादी में हो रहा था।  

मंगला मिश्रा जी की इकलौती लड़की थी, बड़े लाड प्यार से पाला था उन्होंने उसको, कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होने दी थी। जब वह ब्याह लायक हुई तो उन्होंने उसकी कुंडली पंडित को दिखायी तो पंडित ने उन्हें स्पष्ठ बताया कि मंगला का विवाह नहीं हो सकता। उसे अनिष्ट का मंगल दोष है जो भी उसे शादी करेगा वह जीवित नहीं बचेगा। मिश्रा जी इसी बात को लेकर परेशान रहने लगे।

मंगला का विवाह अब कैसे होगा। मिश्राइन ने भी सोच सोच कर अपना बी पी बढ़ा लिया, लाडली बेटी का विवाह कैसे होगा यही चिंता दोनो को सताने लगी मगर जवानी की दहलीज पर कदम रखती हुई मंगला के लिये यह बातें बेमानी थी। इनसे दूर वह अपने विवाह के सपनों में खो जाती थी। उसका सपनों का राजकुमार आएगा उसे घोड़े पर बिठाकर दूर देश ले जाएगा। 

इसी बीच मंगला के लिए एक रिश्ता आया। मिश्रा जी सम्पन्न परिवार से थे इसीलिए हर कोई उनसे रिश्ता जोड़ना चाहता था। मिश्रा जी सत्यवादी भी थे, उन्होंने लड़कों वालों को स्पष्ट बता दिया मंगला की कुंडली में दोष है मगर लड़के वालों ने कहां हम दोष नहीं मानते, हमें तो खानदानी लड़की चाहिए। मिश्रा जी, मिश्राइन बहुत खुश हो गये चलो हमारी बेटी का विवाह हो जाएगा। विवाह की तैयारियां होने लगी। पूरी हवेली को दुल्हन की तरह सजाया गया, मंगल गान होने लगे, मंगला भी मधुर मिलन के सपनो में खो गयी मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। विवाह के 2 दिन पूर्व संदेशा आया की जो दूल्हा है वह भाग गया और यह शादी अब नहीं हो सकती। मगर हाय री दुनिया इस चीज का भी दोष हमारी मंगला के माथे मढ़ दिया गया। 

जितने मुँह उतनी बातें, "यह तो अपशगुनी है इसकी शादी नही हो सकती, देखो दूल्हा ही भाग गया, इसकी तो किस्मत ही खराब है।" ऐसा किसी के साथ होता है क्या यह अपशगुनी है इसलिये तो हुआ और न जाने क्या क्या बातें। मंगला बिचारी जो सुखी जीवन के सपने देख रही थी उसके तो सपने ही टूट गए बेचारी। अब वह भी दुखी रहने लगी। 

2 महीने ही बीते होंगे की लीला देवी जो पास के शहर में रहती थी, अपने छोटे सुपुत्र के लिए मंगला का हाथ मांगने आ गई। उनका कहना था कि आजकल कौन कुंडली में विश्वास रखता है। जो होना है वह भगवान के हाथों में है। हम और आप क्या कर सकते हैं।

लीला देवी थोड़ी लालची महिला थी। उन्होंने अपने दोनों बड़े पुत्रो का विवाह सम्पन्न परिवारों में किया था औऱ मोटा दहेज लिया था। उन्हें पता था मिश्रा जी की इकलौती लड़की है मंगला, दान दहेज भी अच्छा खासा मिलेगा सो वो मंगला से विवाह के लिये राजी हो गयी। 

वैसे लीला देवी के घर भी धन की कोई कमी नहीं थी, उनके पति अपने जमाने मे जाने माने वकील थे, बड़े सुपुत्र ठेकेदारी करते थे, मंझले एक नामी अखबार में संपादक का काम करते थे। छोटे सुपुत्र रमेश बाबू जिनका रिश्ता मंगला के लिये आया था, अपने बाप के नक्शे कदम पर चल रहे थे, मतलब वकील थे। पति ने बहुत जल्दी लीला देवी का साथ छोड़ दिया, व भगवान के पास चले गये इस वजह से उनका व्यवहार परिवर्तित हो गया था और वह पैसे को ज्यादा महत्व देने लगी।

अब मंगला को भी डर लगने लगा था। वह भी खुद को अपशगुनी मानने लगी थी, वह इशारो में माँ को मना भी कर चुकी थी की माँ अब मुझे शादी नही करनी है, मगर मिश्राईन को तो बेटी का ब्याह करना था, उन्होंने मंगला की बातों को अनसुना कर दिया और ब्याह की तैयारी में लग गयी।

 विवाह की तैयारियां होने लगी, हवेली को दुल्हन की तरह सजाया गया मंगल गान होने लगे। सखियां चुहलबाजी करने लगी मगर मंगला का मन इन बातों में नहीं लग रहा था। उसे डर था कि कुछ न कुछ अवश्य हो जायेगा और वही हुआ, शादी वाले दिन सुबह दूल्हे की माँ कुछ लोगों के साथ सगुन का समान देने आयी थी, तभी समाचार आया कि दूल्हे का एक्सीडेंट हो गया है तो वह बिफर पड़ी और सारा तमाशा खड़ा कर दिया। 

मंगला रोने लगी ,और उसके माँ बाप भी। लीला देवी जा रही थी इतने में रमेश बाबू आये और अपनी माँ को वापस ले आये और मंगला के घर आकर बोले, "माँ आप यह शादी क्यो तोड़ रही हो, मंगला अपशगुनी नहीं है, माँ एक्सीडेंट बहुत भयंकर था, ट्रक की चपेट में आयी थी मेरी गाड़ी, मगर समय रहते में कूद गया जिससे मेरी जान बच गयी, माँ यह सब मंगला की वजह से हुआ, यह भाग्यशाली है, इससे मेरी शादी होने वाली थी इसलिए में बच गया, देखो कितनी मामूली सी चोट लगी है।"

वह इन सब बातों को नहीं मानते थे मगर अपनी माँ को विश्वास दिलाने के लिये ऐसा कह रहे थे। लीला देवी भले ही कैसी हो थी तो माँ ही बेटे की बात सुनकर आंखों में आंसू आ गये, रमेश बाबू की खूब बलैया ली और वह बोली, अब मेरे बेटे की शादी मंगला से ही होगी और मिश्राजी भावुक होकर सोच रहे थे अब मेरी बेटी पर से अपशगुनी का कलंक हट गया और मंगला ऐसा पति पाकर खुद को धन्य समझ रही थी। तय समय पर मंगला और रमेश बाबू सात जन्मों के बंधन में बंध गये।


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