दुर्लभ संयोग
दुर्लभ संयोग
आज से नौ साल पहले की ये बात है। हम लोग अपने शहर के सिविल लाइन में सरकारी मकान में रहते थे। वो मकान काफ़ी बड़ा था और बहुत बड़े कंपाउंड से घिरा था। पूरी कॉलोनी में पेड़ों की संख्या मकानों से ज़्यादा थी। शहर के बीचों बीच हमारी कॉलोनी छोटा मोटा जंगल लगती थी। खपरैल वाले मकान बहुत पुराने थे, अंग्रेजों के ज़माने के इन मकानों में अंदर से सीलिंग लगी हुई थी, इस वजह से गर्मियों में ये ठंडे रहते थे। हमारे मकान में पीछे की तरफ ऊंची दीवारों से घिरा हुआ बड़ा सा आंगन था। आंगन के तीन तरफ करोंदे, जामुन और इमारती लकड़ियों के बहुत से पेड़ थे। इन पेड़ों की छाया आंगन में भी आती थी।
जहां इतना सुरम्य वातावरण था, वहां एक बहुत बड़ा ख़तरा भी था, और वो खतरा था सांपों का। हमारे इलाके में काला नाग कई बार देखा गया, एक बार तो हमारे बाथरूम में भी घुस गया था। बाथरूम की नाली में जाली नहीं लगी थी, सांप शायद वहीं से अंदर अा गया था। बाक़ी पूरे घर में जालियां लगी थी, इसलिए सांप और बिच्छू घर के अंदर नहीं अा पाते थे। छप्पर में रेंगते सांप हमने कई बार देखे थे। परन्तु सीलिंग और जाली इन ज़हरीले जंतुओं को मकान के अंदर आने से रोक देती थीं। नाग सांप से हमें डर नहीं लगता था, क्योंकि इनकी प्रवित्ति इंसान से दूर जाने की होती है, परन्तु करैत, सांपों की एक ऐसी प्रजाति है, जो बिना खतरा महसूस किए भी डसने को तत्पर रहती है। हमारी कॉलोनी में करैत सांपों की एक से ज़्यादा प्रजातियां देखी गईं थीं। ये बेहद खतरनाक सांप है, इसने डंस लिया और समय पर एंटीवेनम
नहीं मिला तो मृत्यु तय है। हमारे अस्पतालों में रेबीज़ का टीका अक्सर अनुपलब्ध रहता है, तो एंटीवेनम समय पर मिल जाएगा, ये उम्मीद कम ही थी। सावधानी ही सुरक्षा थी, इसलिए हम दरवाज़ा खोलते समय बहुत एहतियात बरतते थे, क्योंकि करैत सर्प अक्सर दरवाजों पर चढ़ जाया करते थे, बच्चों को मैं दरवाज़ा खोलने नहीं देती थी, सुबह उठ कर पीछे और सामने का मुख्य दरवाज़ा हमेशा मैं ही खोलती थी।
बारिश के दिन थे, परन्तु बारिश हो नहीं रही थी। बहुत उमस वाला वातावरण था। सुबह के सवा छह बजे मेरी नींद खुली। ऊपरवाले का स्मरण कर, मैं उठ बैठी। मैं, पीछे का दरवाज़ा पहले खोलती थी। दरवाजे में ऊपर नीचे सिटकिनी थी और बीच में कुण्डी थी। दो पल्ले का दरवाज़ा था। पुराने ज़माने का दरवाज़ा था, बारिश में लकड़ी के फूल जाने से उसका एलाइनमेंट बिगड़ गया था, इस वजह से दरवाज़े के बीच में लगी कुण्डी पहले खोलनी पड़ती थी, फिर ऊपर नीचे की सिटकनी खुल पाती थी, अगर सिटकिनी पहले खोल दें, तो कुण्डी अटक जाती थी।
उस दिन मुझे उठने में थोड़ी देर हो गई। घड़ी, सवा छह बजा रही थी, जल्दी से प्रार्थना कर मैं पीछे का दरवाज़ा खोलने गई। हड़बड़ी में पहले ऊपर की सिटकिनी खोल दी, बीच वाली कुण्डी अटक गई, तो ध्यान आया कि पहले कुण्डी खोलना था, मैंने दरवाज़े को धक्का देकर, फिर से ऊपर वाली सिटकिनी लगा दी, इसके बाद कुण्डी खोली, फिर नीचे की सिटकिनी खोलने के बाद ऊपर की सिटकिनी खोली., दरवाज़ा खुल गया, जैसे ही दरवाज़ा खुला, पट की आवाज़ के साथ चौखट के ऊपर की तरफ से कुछ, ठीक मेरे सामने गिरा, मेरे पैर से सिर्फ दो इंच के लगभग दूरी पर....वो एक पुराना और थोड़ा मोटा करैत सांप था, जिसकी पीठ पर अजगर के समान धारियां थीं.., मैं स्तब्ध सी खड़ी की खड़ी रह गई। न गले से आवाज़ ही निकल पा रही थी, न ही अपनी जगह से हिलने की सुध थी.., घर में सब सोए हुए थे। सांप अधमरा सा था, और वो भी निश्चल पड़ा था, पता नहीं मैं कितनी देर यूं ही सम्मोहित सी खड़ी रही,अचानक मुझे पीछे से किसीने खींचा..., मेरे पति उठ गए थे, और सांप, उनकी नज़रों में अा गया था। बहरहाल, सांप को मार दिया गया।
उस दिन, अगर मैं समय पर उठ जाती, और पहले कुण्डी खोल, फिर सिटकिनी गिराके, दरवाज़ा खोलती, तो हो सकता था कि वो सांप मुझ पर गिरता। मेरी गलती, मेरे लिए वरदान बन गई, पहले सिटकिनी गिराकर, फिर दरवाज़े के पलड़ों को ज़ोर से दबाने से वो सांप दरवाज़े के बीच में दब गया था, घायल हो जाने की वजह से उसने मुझपर वार नहीं किया, शायद उसकी रीढ़ दो तीन जगह से चोटिल हो गई थी, इसी वजह से वो हिल नहीं पाया।
यह ईश्वरीय इच्छा थी, जो उस दिन एक साथ इतने संयोग हुए। अगर मैं समय पे उठ जाती, अगर मैं नियम से दरवाज़ा खोल देती, अगर सांप दरवाज़े के बीच नहीं दबता..., तो शायद आज आपको ये किस्सा सुनाने मैं रहती ही नहीं।