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Adarsh Kumar

Inspirational

2.5  

Adarsh Kumar

Inspirational

मेरी कहानी

मेरी कहानी

2 mins
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वो किसी उधेड़भुन में बैठा था..हाथ में कलम थी और सामने पन्ने बिखरे पड़े थे न जाने क्या लिखना चाह रहा था। पर कुछ तो था जो उसके मनोमस्तिष्क पर हावी था जिसे वो शब्द देना चाह रहा था। अचानक उसने लिखा माँ और कलम चल पड़ी..

उसका अतीत उसके दिमाग में एक चलचित्र की भांति चल पड़ा। महज आठ वर्ष का था वो जब उसकी माँ बीमार पड़ी थी। पूस की हाड़कंपाती ठिठुरती ठण्ड में पप्पुआ निकल पड़ा था अपनी माँ के लिए भोजन की तलाश में। पिछले सात दिनों से उसकी माँ काम करने भी नहीं गयी थी तो समाज के ठेकेदारों के घरों की बची जूठन मिलने का भी कोई प्रावधान न था। वो सड़क पर गया लोगो के चेहरे देखता उनसे मिन्नतें करता। फ़रियाद करते करते वो थक गया था.. अंततः उसे चोरी का रास्ता सूझा..

बगल के बजरंग ढाबे पर खाना खाते एक युगल की प्लेट से दो रोटियाँ उठाकर पूरी ताकत के साथ भागा वो। पीछे भागे कुछ उसकी उम्र के बाल श्रमिक जो ढाबे पर काम करते थे वो मालिक की नजरों में आने के लिए सरपट उसके पीछे भागे। वो भूख था जिंदगी की पहली दौड़ हार गया..बहुत पिटा था वो उस दिन रोटियाँ निचे गिर ख़राब हो गयी थी.. किसी तरह खुद को सहेज वो रोटियाँ उठा कर लंगड़ाता हुआ घर पंहुचा। आवाज लगाई माँ..माँ..माँ खामोश थी। उसे लगा माँ देर में आने की वजह से रूठ गयी..प्यार से पुचकारा। कोई जवाब नहीं.. डरा सहमा मोहल्ले के लोगो को बुलाकर लाया। पहली बार उसे दुःख का एहसास हुआ। उसके सर से माँ का साया उठ चूका था।

रोहन मल्होत्रा जो उसके पड़ोसी थे निःसंतान थे उसे अपने घर ले आये थे। आज वो एक प्रतिष्ठित लेखक था और कहानी लिख रहा था..पूरी हो गयी कहानी। लेकिन वो उसे शीर्षक क्या दे तभी उसे एक वृद्धा दरवाजे पर दिखाई दी जो शायद कुछ भोजन की तलाश में आई थी अपने बेटे के लिए..उसकी आँखों में आंसू आ गए। उसने खाना दिया और बूढी माँ को विदा किया... दौड़कर अपने स्टडी रूम में गया और कहानी का शीर्षक दिया... मेरी कहानी।


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