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Ruchi Madan

Tragedy

5.0  

Ruchi Madan

Tragedy

माँ कोई नहीं तुझसा यहाँ

माँ कोई नहीं तुझसा यहाँ

4 mins
520


माँ-बाप होना बड़ी जिम्मेदारी होता है। हर वक़्त बच्चो की चिंता, उनकी पढ़ाई उनके खाने की चिंता। कितना कुछ सोचते हैं माँ बाप अपने बच्चों के लिये।

बच्चे अपनी ही धुन मैं रहते हैं। कुछ बाते सुनी और कई अनसुनी कभी तो इतना गुस्सा आता हैं की। इनसे कुछ नहीं होगा बस हमें दुखी करने के लिये ही पैदा हुए है।

मेरे दो बच्चे हैं एक बेटी और एक बेटा, दोनों मैं चार साल का फर्क है। बेटी पढ़ने और हर चीज़ मैं अच्छी हैं और समझदार भी हैं।

मेरा बेटा क्या बताऊ गजब का शैतान। कुछ नहींं समझता हर बात अपनी मन की करता हैं।

उसकी रोज कोई ना कोई शिकायत आती रहती है और मैं टेंशन मैंं आ जाती हूँ। सारा दिन वो डाट खाता हैं मुझे बिल्कुल आदत नहीं हैं किसी की बाते सुनके मुझे बहुत गुस्सा आता हैं।

पता नहीं क्या करेगा या अपनी ज़िन्दगी मैं। बस ये ही फ़िक्र रहती है मुझे पर वो वैसे का वैसा मस्त अपनी ही दुनिया में।

और फिर एक दिन स्कूल से फोन आया कि प्रिंसिपल ने आप को बुलाया हैं बेटे की कोई शिकायत हैं। मेरी तो हालत ही ख़राब की अब क्या किया इसने मैं क्या करूँ इसका। हम दोनों स्कूल पहुँचे प्रिंसिपल ऑफिस के पास कई लोग बैठे थे। वो भी शायद अपने बच्चों की वजह से ही आये थे मैं तो बहुत टेंशन मैं थी कैसी औलाद हैं कितना दुखी करती हैं।

मेरे सामने एक लेडी बैठी थी। पता नहीं क्यूँ पर उसकी आंखें बहुत उदास थी। मुझे लगा इसकी औलाद ने भी इसको बहुत दुखी कर रखा होगा तभी बेचारी इतनी दुखी हैं। थोड़ी देर हो गई। चपरासी नाम लेता था और बच्चों के माँ-बाप अंदर जाते थे। काफ़ी लोग जा चुके थे। बस आखिर मैं वो लेडी और हम दोनों ही रह गये थे

उस लेडी के पास एक बड़ा सा किट था जिसमे कुछ सामान था।

एक छोटा सा कमजोर सा बच्चा धीरे-धीरे उसके पास आया। उस लेडी ने उसे प्यार से अपनी बाहों में भर लिया। पर उसकी आँखों में जो आँसू थे वो उसको हमसे और अपने बच्चे से भी छुपा रही थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था मैं कोशिश कर रही थी की उनकी तरफ ने देखूँ पर फिर भी मेरी नज़र उस तरफ चली ही जाती थी। एक तो अपने बेटे की वजह से मैं पेरशान थी। दूसरा उस लेडी को देख कर भी मुझे लगा रहा था की वो इतना दुखी क्यूँ है।

फिर उन्होंने अपने बेटे को सोफे पर बिठाया और उससे बातें करते हुए अपना डिब्बा खोला उसमे कोई मशीन थी। जिसमे से उसने अपने बेटे के हाथ की ऊँगली में एक सुई पिक की और ब्लड निकाला बच्चे ने उफ़ तक नहीं की मैं कभी उस बच्चे को कभी उसकी माँ को देख रही थी।

माँ ने तो अपने आँसू पोंछ लिये थे सभी से छुपा के पर वो बच्चा अपनी माँ के चेहरा देखे जा रहा था और इतना छोटा बच्चा अपना दर्द भूल के अपनी माँ को हँस के दिखा रहा था उस बच्चे को, शुगर थी।

माँ उसके चेकअप के लिये आयी थी। मुझे ऐसा लगा रहा था की इतनी छोटी सी उम्र मैं ये बीमारी ये क्या करेगा और इसके माँ-बाप भी क्या कर सकते हैं इसके लिये।

तभी हमारा नो आ गया और हम ऑफिस मैं चले गये बेटे की शिकायत तो मिलनी ही थी पर साथ मैं ये भी सुनने को मिला की पढ़ने मैं बहुत अच्छा है। हर कॉम्पीटिशन मैं भाग लेता है अगर ध्यान दे तो बहुत कुछ कर सकता है। अब मुझे उस पर कोई गुस्सा नहीं आ रहा था।

वो शैतान तो है पर बहुत एक्टिव भी हैं बस खाली नहीं बैठ सकता। उसकी हरकतों से हम थक जाते हैं पर वो नहीं आज लगा रहा था की कुछ तो कर ही लेगा और एक वो माँ है जो अपने बच्चे को स्कूल भेजते हुए भी डरती होगी। हर वक़्त उसके ठीक होने के लिये सोचती होंगी सारी जिंदगी इस बीमारी के साथ जीना कितना मुश्किल है।

जब वापिस बाहर आये तो बच्चा धीरे-धीरे वापिस जा रहा था और उसकी माँ उसे देखे जा रही थी।


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