मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।
मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।
मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।
रूह के तमाम सफ़ो पर लिखे सभी नन्हे ख्वाब कागज़ों पे उतरे थे,
मेरे साथ वो तमाम ख्वाब समेटके ले आया था मै।
शोर-ओ-गुल मेँ सच्ची ज़ुबान के ज़ायके से अरसो बाद मिला।
मेरी रूह उन सबके आलाव् से सना** था कल ।
शिफ़ा* मिल रही थी मुझे रफ्ता रफता ।
मैं कल रातभर रूह पलटता रहा ।