कर्तव्य बोध
कर्तव्य बोध
"क्या कर रही हो चिन्नी," दादाजी ने चिन्नी से पूछा। "मैं आम का पौधा लगा रही हूँl"
"आम का ही क्यों, कोई और क्यों नहीं," दादाजी चिन्नी को चिढ़ाने के मूड में थे।
"अरे आप के लिये, आपको पसंद है, आपने बहुत सारे पेड़ लगाए, आम, अमरूद, शहतूत, केले, सीताफल और और..."
"अच्छा अच्छा बस कर, चल तेरा पौधा लगवा दें," दादा ने चिन्नी को गोद में उठा लिया। पौधारोपण हुआ।
शाम के समय चिन्नी, चिन्नी का भाई,और भी बच्चे दादा जी के पास आ बैठे। फरमाईश कर दी कहानी की। सब बच्चे चुपचाप बैठ जाओ,और ध्यान से सुनो, "ये बताओ, आज चिन्नी ने आम का पौधा क्यों लगाया?"
"हम आम खा सकें," एक बच्चे ने कहाl
दादाजी हँस पड़े, "ठीक है। और पेड़ों से हमें क्या क्या मिलता है?"
बच्चे चुप, फल-फूल केअलावा और क्या, एक बच्चा चिल्लाया, "हाँ होली में जलाने के लिये लकड़ी मिलती हैl"
दादाजी ने समझाया, "पेड़ से हमें फल-फूल, दवाई, गोंद, लकड़ी तो मिलती है। शुद्ध हवा, हरियाली, मिलती है। पेड़ न हो तो हमारा जीवन मुश्किल हो जाएगा। पेड़ पर्यावरण की रक्षा करते हैं। पेड़ अगर न हो तो बादल बरसेंगे कैसे। जीव-जन्तु बेहाल होँगे। सुन्दर रंगीन तितलियाँ, गौरैया हमारे आँगन में कैसे आयेंगीl"
"हाँ दादू, अभी तो अपने आँगन में कितनी चिड़ियाँ आतीं हैं फुदक-फुदक कर," चिन्नी खुद फुदक-फुदककर दिखाने लगी।
"पेड़ नहीं रहेंगे तो ताजी हवा नहीं मिलेगी, हम सब मर जाएँगे," चिन्नी का भाई चिंतित हो गया। मरने का डर समा गया। सारे बच्चे चिंतित हो गए।
"दादाजी तब तो बहुत पेड़ चाहिये, ताजी हवा के लिये," एक बच्चे ने पूछाl
"बिल्कुल, हम सबको खूब सारे पेड़ लगाने चाहिये,और उन्हें कटने से रोकना चाहिये। सोचो हरे-हरे पेड़ो से धरती सजी होगी, बादल बरसेंगे। चिड़िया आसमान मे पंख फैला उड़ा करेंगी। इन्द्रधनुष चमकेगा। पर्यावरण प्रदूषित नहीं होगा।"
"कोई मरेगा भी नहीं," चिन्नी का छोटा भाई बोला। दादाजी और सारे बच्चे जोर से हँस पड़े।
"दादाजी, हम अपने घर, स्कूल और बगीचों मे पेड़ लगाएँगे," बच्चे एक स्वर में बोले।
"शाबाश बच्चों ये हुई न बात, तो बोलो मेरे साथ -
पेड़ सभी लगाएँगे,
धरती को सजाएँगे।"
बच्चों ने दादाजी के साथ स्लोगन दुहराया।
हवा के तेज झोंको के साथ पेड़ो ने झूम-झूम कर अपनी खुशी प्रकट की। आखिर धरती के नौनिहालों को कर्तव्य बोध हो गया।अब वह सुरक्षित रहेगी।