पिता का डर या उनका छिपा प्रेम
पिता का डर या उनका छिपा प्रेम
प्रिय ममता,
मेरी प्रिय पत्नी, मेरी अर्द्धांगिनी, मेरी गृहलक्ष्मी, मेरी प्रियंम्दा, ममता न जाने मैं तुम्हें कितने नामों से बुलाता था। हर वक्त बस तुम्हारी केशों की लटों में उलझा रहता था। तुम्हे याद है हमारी पहली सालगिरह, कैसे सब खराब हो गया था। उस बिन मौसम बरसात में, सबकुछ बर्बाद हो गया। तुम्हारी बाहर जाने की ख़्वाहिश उस बिन मौसम की बरसात के कारण कैसे दम तोड़ता नजर आया। ये भी मुझसे कहाँ छिपा था। फिर मैने ही तुम्हारी इस ख़्वाहिश को घर बैठे कैसे पूरा किया ये भी मैं ही समझ सकता था। और करता भी क्यों न उस दिन हमारी पहली सालगिरह जो थी।
उसके बाद जब तुम अपना ग्रेजुएशन पूरा करने की इच्छा मेरे सामने रखी वो भी मैने तुम्हें कहाँ मना कर पाया। क्योंकि वो तुम्हारी शादी के बाद की मुझसे पहली इच्छा थी। तो मेरा न करने का सवाल ही नहीं उठता था। तुम आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन तुम्हारे पिता नें तुम्हारी ख़ुशियों का गला घोट तुम्हारी शादी १८ साल की उम्र में मुझसे करवा दी। मैं भी कहाँ शादी करना चाहता था। मैं भी आगे पढ़ना चाहता था। लेकिन मेरे पिता की, तो उन्हे अपनी इज़्ज़त से ज्यादा प्यार था। उस शहर के बड़े दीवान जो ठहरे। पूरा इलाहाबाद उनके आगे सलाम कर अपना शीश झुकाता था। सभी उनसे और उनके गुस्से से डरते थे। तो मेरी क्या मजाल थी जो मैं शादी के लिए मना कर पाता। इसलिए मुझे तुमसे शादी करनी पड़ी। आखिर हम दोनों की उस वक्त उम्र ही क्या थी, शादी के लिए, तुम १८ की और २१ का, बस इतना ही तो अंतर था हम दोनों की उम्र में। पर हम दोनों के सपने एक थे, हमारा लक्ष्य एक था।
ममता हम दोनों नें साथ में उम्र के तकाजे देखे हैं। एक दूसरे का साथ हर मोड़ पर दिया। एक दूसरे की बात, बिना एक दूसरे के जताए समझी है। हम दोनों जब मिले तब कहाँ था हमारे बीच प्यार, प्यार का मतलब भी हम दोनों ठीक से नहीं समझते थे। बस इतना था कि हर जोड़े की तरह हम दोनों के बीच कभी मन मुटाव नहीं हुआ। क्योंकि हम दोनों ही जानते थे कि हमें एक दूसरे से क्या चाहिए, एक वक्त, हाँ एक वक्त ही तो चाहिए था हम दोनों को एक दूसरे को समझने और जानने के लिए। लेकिन जैसे जैसे वक्त बीतता गया और हम दोनों के उम्र बढ़ती गयी। वैसे वैसे हमारे बीच का रिश्ता और गहराता गया। हम दोनों के बीच प्यार पनपता गया। और हम दोनों एक दूसरे के करीब आ गये, इतने करीब कि हमारे प्यार की निशानी तुम्हारे अंदर, तुम्हारे गर्भ में जन्म ले चुकी थी। जानती हो ममता जब तुमने मुझे बताया कि तुम मेरे बच्चे की माँ बनने वाली हो। सच पूछो ममता मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।
मैं अपनेआप को सबसे भाग्यशाली समझने लगा था। लेकिन जब मेरे हाथों में हमारा बच्चा आया तो मेरी न जाने कहाँ ख़ुशियाँ उड़न छू हो गयी। क्योंकि तुमने एक बेटी को जन्म दिया था। और ममता वो पहली बार था जब हम दोनो के विचार एक दूसरे से टकराए थे। और मैं वहीं हमारी बच्ची को छोड़ कमरे से बाहर चला गया। पता नहीं उस वक्त किस बात का गुस्सा था मुझे उस दिन। मैं न चाहते हुए भी तुम्हारे करीब नहीं जा पा रहा था।
और ममता घर आने के बाद तुमने मुझे कितनी बार हमारी बेटी का चेहरा दिखाना चाहा, मेरी गोद में देना चाहा। और मैं हर बार किसी न किसी बहाने वहाँ से चला जाता। शायद मैं अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहता था। या यूँ कहूँ एक पिता के डर से, हाँ ममता एक पिता का डर ही तो था जो मुझे उससे दूर कर रहा था। तुम मुझसे बार बार पूछती कि आखिर मेरे अंदर इतना बदलाव कैसे आ गया। और मैं हर बार तुमसे यही कहता कि समय आने पर सब पता चल जाएगा। खुशी भी एक पिता के प्यार से हमेशा वंचित रही। वो जैसे जैसे बड़ी होती जा रही थी। एक पिता का डर भी वैसे वैसे बड़ा होता जा रहा था। ममता तुमने ही उसे एक पिता और माँ दोनों के हिस्से का प्यार दिया। दोनों की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। और उसे हर काले साये से दूर रखा। उसे सुरक्षित रखा। लेकिन ममता मैं एक पिता की भूमिका नहीं निभा पाया। एक अच्छा पिता नहीं बन पाया। क्योंकि मैने अपने डर को दूर करने की कभी कोशिश ही नहीं की। ममता तुम मुझसे जब भी पूछती कि आखिर मेरे इस डर की वजह क्या है? और मैं हमेशा टाल जाता, लेकिन आज मैं तुम्हें बताऊँगा कि आखिर मुझे किस बात का डर था।
ममता जानती हो मेरी एक छोटी बहन थी और उसने ख़ुदकुशी कर ली थी जानती हो क्यों? क्योंकि उसके साथ कुछ गलत हुआ था। कुछ बहुत ही बुरा, शर्मनाक और जानती हो वो सब किसने किया हमारे ही चाचा जी ने। हाँ ममता मेरे ही चाचा ने, मेरे ही अपने घर में उन्होने ऐसा करने की जुर्रत की। जब पापा और मैने किंंशा की लाश को पंखे से झूलते देखा तो हम दोनों के ही पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी। पापा तो अचेत अवस्था धरातल पर गिर पड़े और मैं अपने आपको संभालकर पापा को संभालने की कोशिश कर ही रहा था कि मेरी नजर किंशा के लिखे खत पर पड़ी जिसमें हमें पता चला कि वो रोज़ रात को उसका मुँह दबाकर कितनी बेरहमी से उसके साथ.... बदसलूकी करते थे। और फिर किंशा के शरीर पर पड़े जख्मों के निशान दिखे जो उस खत में लिखे शब्दों की सच्चाई बयाँ कर रहे थे। हमने चाचा को अपने घर से क्या उस शहर से तो निकाल दिया लेकिन उनके ज़ख्म आज भी इस दिल में ताज़ा थे। हाँ ममता यही वजह थी, मेरे एक अच्छे पिता न बन पाने का कारण यही था। कि एक पिता और एक भाई ने जिस तरह अपनी बच्ची, अपनी बहन को उस वहशी दरिंदा से नहीं बचा पाया। कि कहीं कल को खुशी को भी मैं अगर इसी तरह न बचा पाने में नकामयाब हुआ तो मैं अपनेआप को कभी माफ़ न कर पाता।
लेकिन ममता तुमने हमारी बेटी खुशी को सुरक्षित रखते हुए आज उसे किसी अच्छे और ईमानदार और एक अच्छे लड़के के हाथ में उसका हाथ देने जा रही हो। सच पूछो तो मैं भी अपनी बेटी के लिए इतना अच्छा लड़का नहीं ढूँढ पाता। ममता आज तुमने मेरी आँखें खोली है। कि अगर इंसान चाहे तो अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाते हुए अपने परिवार की रक्षा कर सकता है। ममता मैं आज उसकी शादी के दिन एक पिता की जिम्मेदारी निभाना चाहता हूँ, एक पिता बनना चाहता हूँ। उसका कन्यादान कर उसे अपने गले से लगा उसकी विदाई में खूब रोना चाहता हूँ। मैं अपनी बेटी खुशी को खुद अपने हाथों से उसे उसकी डोली में बिठाना चाहता हूँ। बोलो ममता क्या मुझे ये अधिकार दोगी। क्या आखिरी बार मुझे एक पिता का डर मिटा कर एक पिता का फर्ज़ निभाने दोगी। बोलो ममता मुझे कन्यादान करने दोगी....।
तुम्हारा और हमारी बेटी का अपराधी
जीवन